(सुधीर दंडोतिया की कलम से)
मंत्रीजी बेकाम के
दर्जा राज्यमंत्री का, लेकिन विभागीय काम कुछ भी नहीं. विभागीय काम का बंटवारा नहीं होने से प्रदेश के एक नेताजी ऐसी ही स्थिति से जूझ रहे हैं. विभाग में कैबिनेट मंत्री पहले से हैं, लेकिन अब तक काम-काज का बंटवारा नहीं हुआ तो मंत्रीजी के खाते में कुछ भी नहीं आया है और उन्हें इसी बात का मलाल है. नेताजी को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव की आचार संहिता हटते ही कामकाज मिल जाएगा, लेकिन लोकसभा चुनाव की आचार संहिता हटने के बाद भी ऐसा नहीं हो सका.
बीजेपी से बढ़ाए संपर्क
लोकसभा चुनाव के बीच बीजेपी ने कांग्रेस नेताओं पर जमकर डोरे डाले. कांग्रेसियों को कई ऑफर दिए गए तो कई वादे भी किए गए. इसके लिए भाजपा ने बकायदा न्यू ज्वाइनिंग टोली का गठन किया. BJP के ऑफर के बीच कांग्रेस के कई नेता बीजेपी में आते-आते भी रह गए. दरअसल ये नेता समय पर डिजीसन नहीं ले पाए. अब चुनाव के परिणाम आने के बाद इन्होंने बीजेपी से संपर्क साधना शुरू कर दिया है. चुनाव निपट गए हैं, ऐसे में बीजेपी को इनकी जरूरत है या नहीं. यह सब आने वाले दिनों में ही देखने को मिलेगा.
कांग्रेस को लाडली बहना योजना का डर बरकरार
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के इतिहास की सबसे बुरी हार हुई है. कांग्रेस के पटियों पर जब चर्चा का दौर शुरू होता है तो वो हार के लिए खुद की कमियों का नहीं लाडली बहना योजना को जिम्मेदार बताते हैं. नेताजी बकायदा लाडली बहना का आंकड़ा बताते है और कहा जाता है बीजेपी की तो गिनती ही हर लोकसभा में चार लाख से शुरू हुई थी तो हम चुनाव कैसे जीत सकते थे. अब एमपी के कांग्रेस नेताओं को कौन समझाए की कर्नाटक में कांग्रेस महिलाओं को 2 हजार और फ्री बस सेवा दे रही उसके बावजूद भी वहां कांग्रेस सिर्फ 9 सीट जीती है और 17 सीट बीजेपी, हार किसी योजना के कारण नहीं खुद की कमजोर रणनीति और गुटबाजी के कारण हो रही है.
भाजपा विधायकों की बढ़ी धड़कनें
लोकसभा चुनाव में दस प्रतिशत अधिक वोट शेयर टारगेट के बीच कई विधायकों की विधानसभाओं में वोट प्रतिशत उल्टा कम हो गया. पहले विधायकों का मानना था कि 400 पार की जीत के जश्न में यह सब गौण हो जाएगा, लेकिन अब संगठन स्तर पर इस पर मंथन होने जा रहा है. इसकी भनक लगते ही ऐसे विधायकों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं, क्योंकि कम वोटिंग को लेकर उनके पास कोई ठोस जवाब नहीं है. सबसे अधिक पशोपेश में वो हैं जो प्रदेश सरकार में मंत्री हैं.
परिणाम का असर, दिल्ली दरबार पूछ परख खत्म!
मध्यप्रदेश कांग्रेस का आने वाला भविष्य क्या होगा इसको लेकर नेता और कार्यकर्ता सभी चिंतित है पार्टी के नेताओं को समझ नहीं आ रहा आखिर वो अगले चार साल क्या करें. भविष्य का डर सता रहा है साथ ही खुद का राजनीतिक संकट भी गहराता जा रहा है. देश में भले ही परिणाम सुखद हो लेकिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस का हाल क्या हुए है. विधानसभा और लोकसभा चुनाव में वो जगजाहिर है, परिणाम के बाद से दिल्ली दरबार में भी एमपी के किसी नेता की पूछ परख नहीं हो रही है, जिनकी होती थी वो भी हाशिये पर है. किसी जमाने में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी समेत कई नेताओं की दिल्ली में तूती बोलती थी.
दरोगा जी का नास्ता
भोपाल के एक टीआई साहब को मनोहर रेस्टोरेंट का नाश्ता बड़ा पसंद है. साहब के आने से पहले ही उनका पसंदीदा नाश्ता केबिन में पहुंच जाता है, जब तक साहब नाश्ता करते हैं चेंबर में किसी को दाखिल नहीं होने दिया जाता है. टीआई साहब को थाना कुछ दिन पहले ही मिला है. लगता है साहब को भोपाल रास आने लगा है.
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