

विधायकजी प्रमुख पद पर भी हैं, कल ध्यानाकर्षण तो आना ही था
विधानसभा सत्र के दौरान एक बीजेपी विधायक का ध्यानाकर्षण चर्चा का विषय रहा। उक्त दिन की विधानसभा की कार्यवाही जैसी ही समाप्त हुई, संबंधित विभाग को सूचना लग गई कि कल फलां विधायकजी संबंधित विभाग के मंत्रीजी का ध्यान आकर्षित करेंगे। विधानसभा की कार्यवाही से विधायक बाहर ही नहीं निकले थे कि मंत्री स्टाफ में ध्यानाकर्षण की जानकारी आग की तरह फैली। मंत्री स्टाफ के अधिकारी आपस में बात करते हुए नजर कि विधायकजी ने आज ही मुलाकात की थी। विधायकजी पार्टी में प्रमुख पद पर भी हैं, ऐसे में कल की कार्यवाही में ध्यानाकर्षण तो आना ही था।
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जैसे जांच कराकर ऐहसान कर रहे हों
अपने क्षेत्र के पैंडिंग काम या किसी गड़बड़ी के मामले को जोरशोर से उठाने का समय किसी भी विधायक को विधानसभा सत्र के दौरान ही मिलता है। विधानसभा सत्र के दौरान दोनों दलों के विधायकों ने प्रश्नकाल में इसका पूरा लाभ उठाने का प्रयास किया। वाक्या एक दिन चले प्रश्नकाल के बीच का है। विपक्षी दल के एक विधायक जो-जो अनदेखियां और गड़बड़ियों का जिक्र करते गए, संबंधित विभाग के मंत्रीजी सहज भाव से जांच करवाने का आश्वासन देते रहे। प्रश्नकाल के बाद विधायकजी सदन के बाहर कहते हुए सुनाई दिए कि “मंत्रीजी जांच करने का आश्वासन तो ऐसे दे रहे थे, जैसे जांच करवाकर कोई अहसान कर रहे हों।”
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आटे में नहीं, नमक में आटा
एक कहावत तो आपने सुनी होगी, “आटे में नमक चल जाता है”, लेकिन नमक में आटा डाला जाए तो फिर सोचिए। दरअसल, यहां बात हो रही है एक योजना और उसके भुगतान की। योजना के तहत गांव के हर घर तक जल उपलब्ध कराया जा रहा है। योजना के तहत पाइप लाइन भी बिछाई गई। सप्लाई के लिए पूरा सिस्टम तैयार किया गया। वाटर सप्लाई टेस्टिंग भी हुई और लोगों को पानी भी मिला। यह दावा हमारा नहीं बल्कि जिम्मेदार अधिकारियों की सरकारी रिपोर्ट का है। लिहाजा प्रदेश के आठ जिलों में भुगतान भी बड़ी फुर्ती से कर दिया गया। लेकिन, वास्तविकता तो यह है कि आठ जिलों के लगभग 30% गांव में अधिकारियों के तमाम दावों के बाद एक बूंद पानी आज तक नहीं पहुंचा। पानी का जुगाड़ तो गांव वाले जैसे तैसे कर ही रहे हैं, लेकिन कंपनी ने अधूरे काम का 100% भुगतान का जुगाड़ गजब का जमाया। मामला शिष्टाचार का था तो भुगतान भी कर दिया गया, गजब की बात है। अधिकारियों ने माननीय मंत्री जी और माननीय सांसद जी के गृह ग्राम को तक नहीं छोड़ा और दोनों माननीय सब कुछ जानने के बावजूद भी चुप हैं। यह चुप्पी भी शिष्टाचार की बड़ी परिभाषा है।
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गजब का सिस्टम – जितनी उतनी जेब भारी
“आयुष्मान” केंद्र सरकार की ऐसी योजना जिससे अधिकारी तो अधिकारी बल्कि अस्पताल भी मालामाल है। मध्य प्रदेश में आयुष्मान योजना को लेकर पहले भी कई गड़बड़ियां सामने आई। तमाम प्रशासनिक उठा पटक के बाद भी इन पर लगाम नहीं लग सकी। गांव के गरीब मरीज के नाम पर बड़ा खेल चल रहा है। छोटे से लेकर बड़े अस्पतालों तक कमीशन का खेल, फिर कारनामों को छुपाने अधिकारियों से मिलीभगत। सुनने में आया है कि 6 अस्पतालों की गड़बड़ियों का काला चिट्ठा भी तैयार किया गया। लेकिन कार्यवाही महीनों तक फाइल पर एक दस्तखत के लिए इंतजार करती रही। हालांकि और अस्पतालों का रसूख पर कम और नगद पर ज्यादा भरोसा रहा है। लिहाजा मामला ठंडा पड़ गया है। कुछ आरटीआई भी लगाई गई थी लेकिन अब इनका जवाब ही नहीं मांगा गया तो फिर आगे की बात खत्म। गजब का सिस्टम है.. जो लाचारी में भी रोजगारी ढूंढ ही लेता है।
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