Pradosh Vrat Katha : रवि प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. जिस प्रकार वर्ष में 24 एकादशियाँ होती हैं, उसी प्रकार प्रदोष भी 24 होते हैं. व्रत एकादशी या प्रदोष के दिन करना चाहिए. इस बार प्रदोष 15 सितंबर रविवार को आ रहा है.

शास्त्रों में इस दिन का विशेष महत्व है. इस पवित्र दिन व्रत रखने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है. साथ ही यह तिथि भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए सबसे उत्तम मानी गई है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह दिन शिव पूजन के लिए विशेष होता है. 

रवि प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha)

प्रदोष व्रत को लेकर कई मिथक हैं जिनमें से एक मिथक आज हम आपको बताएंगे. एक प्राचीन कथा है कि अम्बापुर गाँव में एक ब्राह्मणी रहती थी. उसके पति की मृत्यु हो गई, जिससे वह भीख मांगकर गुजारा करने लगी. एक दिन जब वह भीख मांगकर लौट रही थी तो उसे दो छोटे बच्चे दुखी अवस्था में मिले, जिन्हें देखकर वह बहुत परेशान हो गई.

वह सोचने लगी कि इन दोनों बच्चों के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई. कुछ समय बाद बच्चा बड़ा हो गया. एक दिन ब्राह्मणी दोनों बालकों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास गई. उन्होंने शांडिल्य ऋषि को प्रणाम कर दोनों बच्चों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की.

तब शांडिल्य ऋषि ने कहा, “हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ देश के राजा के राजकुमार हैं. राजा गंधर्भ के आक्रमण से उसका राज्य छिन गया. अत: उन दोनों को राज्य से निकाल दिया गया है.’’ यह सुनकर ब्राह्मणी बोली, ‘’हे ऋषिवर! कृपया उसका राज्य वापस पाने के लिए कोई उपाय बताएं. इस पर ऋषि शांडिल्य ने उसे प्रदोष व्रत करने के लिए कहा. इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने पूरी श्रद्धा से प्रदोष व्रत किया. उन्हीं दिनों विदर्भ राजा के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई.

दोनों शादी के लिए राजी हो गए. यह जानकर अंशुमती के पिता ने गंधर्भ राजा के खिलाफ युद्ध में राजकुमारों की मदद की, जिसके कारण राजकुमारों ने युद्ध जीत लिया. प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन राजकुमारों को उनका राज्य वापस मिल गया. इससे प्रसन्न होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में विशेष स्थान दिया, जिससे ब्राह्मणी को उसकी गरीबी से छुटकारा मिल गया और वह सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगी.