जबलपुर। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने स्थानीय भाषा की वकालत की है वहीं उन्होंने कहा है कि न्यायाधीशों को किसी व्यक्ति, संस्था के विचार से मुक्त होना चाहिए।राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय में युक्ति विवेक का भी सहारा लिया जाना चाहिए। न्यायायिक एकेडमी में भविष्य के न्यायाधीश बनाए जाते हैं। इसलिए सभी परिस्थितियों से निपटने की जरूरत होती है। न्यायाधीश को किसी व्यक्ति, संस्था के विचार से मुक्त होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषाई सीमाओं के कारण लोगों को संघर्ष करना पड़ता है। मैं खुश हूं कि मेरे निवेदन पर 9 भाषाओं में फैसले सुनाए जाते हैं। मेरा निवेदन है कि सभी हाईकोर्ट अपनी स्थानीय भाषाओं में फैसले जारी करें। राष्ट्रपति अपनी दो दिन की मध्यप्रदेश यात्रा में जबलपुर पहुंचे हैं। जहां वे जबलपुर में आयोजित न्यायिक परिचर्चा में शामिल हुए। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और सीजेआई एसए बोबड़े भी शामिल हुए।

वहीं कार्यक्रम में शामिल सीजेआई एसए बोबड़े ने कहा कि ये कार्यक्रम एक नई प्रक्रिया का आरंभ है। समय के साथ विकसित होते कानून की समझ ज़रूरी है। ज्यूडिशियल ट्रेनिंग के तौर तरीकों को बदलना होगा। उत्कृष्टता स्थापित करने के लिए अच्छे बदलाव ज़रूरी है।

वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने परिचर्चा में बोलने के लिए मास्क हटाने की इजाजत मांगी। उन्होंने कहा कि कल ही कोरोना टेस्ट निगेटिव आया। मास्क लगाकर बोलने, पहचानने में मुश्किल होती है। उन्होंने कहा कि ये मंथन ऐसा हो जिससे अमृत निकले, परिचर्चा के नतीजों को लागू करने में सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी। आम आदमी को ही सुखी करना न्यायपालिका और विधायिका का मकसद है। न्याय से आत्मिक सुख मिलता है । न्याय का सुख मिलने पर ही जनता न्यायपालिका के साथ जाती है। न्याय जल्द और सस्ता देने की कोशिश होनी चाहिए। न्यायपालिका में लाखों केस लम्बित हैं। प्रदेश सरकार जजों के रिक्त पद भरने की कोशिश करेगी। मप्र सरकार इस परिचर्चा के नतीजों को लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल ने कहा कि कोरोना संकटकाल में भी न्यायपालिका ने न्याय देने का काम नहीं रोका। न्यायपालिका सरकार की रीढ़ है। जजों का प्रशिक्षण आवश्यक और महत्वपूर्ण है। मामलों के जल्द निराकरण के लिए जागरूकता ज़रूरी है। जल्द न्याय के लिए ट्रेनी जजों को तकनीक की ट्रेनिंग भी ज़रूरी है। न्याय की गुणवत्ता भी जल्द न्याय में ज़रूरी है। ज्यूडिशरी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद कितनी ज़रूरी इस पर भी मंथन होना चाहिए। बदनामी के डर से आज भी महिलाएं शिकायतें दर्ज नहीं करवा पाती। गुजरात मे नारी अदालतों की पहल अनुकरणीय है। यौन हिंसा के प्रति संवेदना से न्याय प्रक्रिया संचालित हो । महिला अपराध पर शिकायत मिलते ही न्याय प्रक्रिया शुरू होना ज़रूरी है।