वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर. रायगढ़ जिले के बजरमुड़ा गांव की जमीन अधिग्रहण में कथित 300 करोड़ रुपये के अतिरिक्त मुआवजा घोटाले की जांच के लिए दाखिल जनहित याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने याचिका में सीबीआई/ईडी जांच, एफआइआर दर्ज करने और 300 करोड़ की वसूली की मांग की थी. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की इस मामले में सीधी व्यक्तिगत रुचि है और यह वास्तविक जनहित याचिका नहीं है. हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए दोहराया कि पीआईएल का उद्देश्य केवल सार्वजनिक हित के लिए होना चाहिए, न कि निजी लाभ या प्रसिद्धि. कोर्ट ने याचिकाकर्ता की सुरक्षा राशि भी जब्त करने का आदेश दिया. वहीं प्रभावित पक्षों को कानून अपने अधिकार पाने की स्वतंत्रता दी गई. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की खंडपीठ में हुई.


याचिकाकर्ता अधिवक्ता दुर्गेश शर्मा ने कोर्ट में याचिका लगाई थी कि, पूरे मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच सीबीआई से कराई जाए. दोषी अधिकारियों, कर्मचारियों और ग्रामीणों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई हो.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उन्होंने कई बार राजस्व मंडल, ईडी और अन्य जांच एजेंसियों को शिकायत दी, लेकिन कोई ठोस आपराधिक कार्रवाई नहीं हुई. वहीं राज्य सरकार और अन्य पक्षों ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि, यह याचिका वास्तविक जनहित याचिका नहीं है. याचिकाकर्ता स्वयं अधिवक्ता हैं. इस विवाद को वे व्यक्तिगत रुचि और पेशेवर लाभ के लिए उठा रहे हैं.
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों (बलवंत सिंह चौफाल, अशोक कुमार पांडे, गुरपाल सिंह, होलिका पिक्चर्स इत्यादि मामलों) का हवाला देते हुए साफ किया है कि झूठी या निजी मकसद वाली पीआइएल से न्यायपालिका का समय बर्बाद होता है और असली पीड़ितों को न्याय से वंचित होना पड़ता है. कोर्ट ने कहा कि दुर्गेश शर्मा की सीधी और व्यक्तिगत भागीदारी इस विवाद में दिख रही है, इसलिए यह याचिका जनहित नहीं बल्कि व्यक्तिगत हित की है.
याचिकाकर्ता दुर्गेश शर्मा खुद अधिवक्ता हैं और बजरमुड़ा जमीन अधिग्रहण मुआवजा को वे पहले भी अलग-अलग मंचों पर उठा चुके थे. इससे यह साफ हो गया कि उनकी इस याचिका में जनहित कम और व्यक्तिगत/पेशेवर हित ज्यादा है. कोर्ट ने कहा कि पीआईएल का मकसद केवल तभी स्वीकार होगा जब उसमें सार्वजनिक नुकसान, आम जनता के अधिकार या किसी बड़ी सामाजिक समस्या का पहलू हो. लेकिन इस मामले में प्रभावित पक्ष भूमि मालिक या अन्य ग्रामीण खुद अदालत नहीं आए, बल्कि अधिवक्ता ने उनकी ओर से याचिका दायर की.
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