रायपुर। पुलिस मुख्यालय में डीआईजी सीसीटीएनएस/एससीआरबी के रूप में पदस्थ आईपीएस डॉ. संतोष सिंह के संयुक्त राष्ट्र के शांति सुदृढ़ीकरण से जुड़े शोध विषय पर लिखित किताब का प्रकाशन दिल्ली के प्रतिष्ठित मानक पब्लिकेशन ने किया। आईपीएस डॉ. संतोष ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह और डीजीपी अरुण देव गौतम को किताब की प्रति भेंट की।
शीत युद्ध के बाद इक्कीसवीं सदी में दुनिया में हिंसाग्रस्त राष्ट्रों में शांति को चिरस्थाई बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के शांति-रक्षा (पीस कीपिंग) और शांति-स्थापना (पीस मेकिंग) प्रयासों से आगे बढ़कर अपेक्षाकृत नए कार्य जैसे शांति-निर्माण या सुदृढ़ीकरण (पीस बिल्डिंग) कार्यों पर जोर देने की आवश्यकता हो गई है। इस सदी में संयुक्त राष्ट्र के यूएन पीसबिल्डिंग कमीशन के पर्यवेक्षण में किए जा रहे गृह युद्ध से जूझ रहे देशों और युद्धग्रस्त क्षेत्रों में पीस-बिल्डिंग मिशन काम कर दुनिया में शांति प्रयासों को बहुत मजबूत कर रहे हैं। यह किताब दुनियाभर में चल रहे इन शांति प्रयासों के सिद्धांत और वास्तव में धरातल पर हो रहे कार्यों की समालोचना करती है। संतोष सिंह की यह किताब विदेश नीति के नीति-निर्धाताओं, प्रैक्टीसनर्स व छात्रों के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध होगा। देश के अंदर के हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में भी स्थायी शांति स्थापित करने के लिए आवश्यक तत्वों की समझ बढ़ाने में मदद करेगा।


उल्लेखनीय है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता करने में दृढ़ता के साथ प्रतिबद्ध है और विभिन्न देशों में कार्यरत शांति सेनाओं में दुनिया में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से तीसरे नंबर पर है। 1950 से अब तक हमारे देश ने 49 शांति मिशनों में भाग लिया है और लगभग 2 लाख शांति सैनिकों का योगदान किया है। वरिष्ठ भारतीय पुलिस और सैन्य अधिकारी शांति मिशनों में भाग लेते हैं।

आईपीएस संतोष सिंह ने हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग से डॉक्टरेट की डिग्री और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) नई दिल्ली से अंतर्राष्ट्रीय संबंध विषय में एमफिल और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) वाराणसी से राजनीतिशास्त्र में एमए किया है। एम फिल के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में विकासशील देशों की भागीदारी पर उन्होंने शोध-प्रबंध लिखा था। उनके विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय शोध जर्नल में उनके अनेकों शोध-पत्र प्रकाशित हुए हैं।
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