रायपुर। जिलाध्यक्षों और ब्लॉक अध्यक्षों के चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज़्यादा आसानी सरगुजा और बस्तर संभाग में हुई. जबकि सबसे मुश्किल पेंच रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग संभाग में फंसा है. मंगलवार को पार्टी नेताओं की बैठक में सरगुजा संभाग के अध्यक्षों के चयन में टीएस  सिंहदेव को फ्री हैंड दे दिया गया था. जबकि बस्तर के चुनाव में भी ज़्यादा मुश्किलें नहीं आईं.

पार्टी के आला नेताओं की टकराहट रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर संभाग की नियुक्तियों में हो रही है. इसकी वजह है पार्टी के तमाम दिग्गज इसी इलाके से आते हैं. सभी नेता अपने चहेतों को जिले और ब्लॉक में कमान देना चाहते हैं ताकि चुनाव के वक्त उन्हें टिकट पाने और लड़ने में मनमाफिक फैसला लेते बने.

रायपुर के पदों पर भूपेश बघेल, सत्यनारायण शर्मा,  धनेंद्र साहू,  मोहम्मद अकबर, मेयर प्रमोद दुबे अपनी-अपनी पसंद के उम्मीदवार को देखना चाहते हैं. लेकिन अमितेष शुक्ल ने भी अपने नाम दे दिए. उनका दावा है कि उनके पिता श्यामचरण शुक्ल और चाचा वीसी शुक्ल की राजनीतिक विरासत वही संभाल रहे हैं. इसलिए श्यामाचरण और विद्याचरण के समर्थकों को जगह दिलाने के लिए उन्हें आगे आना होगा. भूपेश बघेल की दलील है कि चूंकि रायपुर राजधानी है इसलिए उन्हें तमाम कार्यक्रमों को संचालित करने लिए फ्री हैंड मिलना चाहिए. लेकिन यहां मोहम्मद अकबर के भी समर्थक भारी तादाद में हैं. लिहाज़ा उन्हें भी फिट करना है. सत्यनारायण यहां से चुनाव भी लड़ेंगे इसलिए वो उनकी नज़र खासतौर से ब्लॉक अध्यक्षों और ग्रामीण के जिलाध्यक्ष पर है. यही हाल धनेंद्र साहू का है. जो अभनपुर के विधायक हैं. रायपुर शहर अध्यक्ष में एक नाम हरदीप सिंह बेनीपाल का भी सामने आ रहा है.

इसी तरह गरियाबंद के पदों पर अमितेष ने अपने नाम दे दिए क्योंकि उनकी विधानसभा सीट राजिम इसी ज़िले में आती है. महासमुंद की सीटों पर भी अमितेष अपना दावा जताना नहीं छोडे़े. राजनीतिक सुत्रों के मुताबिक अमितेष की योजना अपने बेटे भवानी प्रसाद शुक्ल को यहां से लोकसभा चुनाव लड़ाने की है. लेकिन महासमुंद पर नज़र पूर्व पीसीसी प्रमुख धनेंद्र साहू की भी नज़र है. जहां 2014 में उन्होंने टिकट पाने की कोशिश की थी. लिहाज़ा वो भी अपनी पसंद का अध्यक्ष यहां देखना चाहते हैं.

सबसे ज़्यादा मुश्किल में दुर्ग की नियुक्तियों को लेकर है. यहां से मोतीलाल वोरा, भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू, रविंद चौबे, बदरुद्दीन कुरैशी जैसे दिग्गज नेता हैं. जिनके लोगों को सेट करना है लिहाज़ा यहां पर आमराय बनाना मुश्किल है. हालांकि केवल साजा ब्लॉक में दिलचस्पी दिखाकर रविंद्र चौबे ने इस मुश्किल को थोड़ा कम करने की कोशिश की है.

बिलासपुर में अजीत जोगी के जाने के बाद कोई स्वाभाविक दावेदार नहीं है. अटल श्रीवास्तव और पार्टी में नए नवेले शैलेष पांडेय भूपेश खेमे के माने जाते हैं इसलिए भूपेश यहां अपने आदमी को बिठाना चाहते हैं. चरणदास महंत यहां के पुराने नेता हैं. इसलिए वो चाहते हैं कि उनके लोगों को जगह दी जाए. लेकिन जब संभाग की जांजगीर सीट पर भूपेश ने चरणदास को फ्री हैंड नहीं दिया तो महंत भड़क गए. बड़े नेता महंत के इस रुख को देखकर हैरान थे. इससे पहले किसी ने अपने राजनीतिक जीवन में महंत को इस तरह नाराज़ होते नहीं देखा था. हांलाकि भूपेश ने इसे महज़ अफ़वाह बताया है.

बहरहाल, बंद कमरे में सहमति, समझौते और असहमति के बीच जो हुआ उसका क्या नतीजा आया इसका फैसला 25 सितंबर को ही आएगा.