कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे की खबर सच है पर क्या कांग्रेस के लिए ये झटका है ? क्या आज गुलाम नबी आजाद और उनके गुट के लोग जिस तरह से पार्टी को शर्मिंदा करते रहे उसके बाद भी कोई झटका बचता है ? मोदीजी के आंसू जिस गुलाम के लिए निकलते हो तो सोचिये उनके आंसुओं ने तब क्या आजाद का पूरा भविष्य देश के सामने नहीं रख दिया था ?

जिस अंदाज में गुलाम नबी आजाद की नरेंद्र मोदी ने तारीफ की थी, आजाद का कांग्रेस से इस्तीफा क्या उसी दिन देश ने नहीं देख लिया था. क्या उसी दिन से आजाद के इस्तीफे की अटकलें नहीं शुरू हो गई थी ? जाहिर है, शतरंज की इस बिसात पर आजाद घोड़े को कब आगे करना है उस उचित समय की प्रतीक्षा थी और वो समय नजदीक आ चुका था.

एक ओर देश सबसे बड़ी चुनौतियों से घिरा हुआ है, दूसरी ओर पहली बार देश की सबसे बड़ी पार्टी के सबसे बड़े नेता इन चुनौतियों को स्वीकार कर कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ने का शंखनाद करते हैं. कांग्रेस जब इस कदर आंदोलित न थी तभी सरकार ने उसका कांग्रेस मुक्त भारत के नाम पर फातिहा पढ़ना शुरू कर दिया था. चुन -चुन कर कांग्रेस की सरकारें किस तरह गिराई गईं और गिराई जा रहीं, देश देख रहा है.

जितनी कांग्रेस की सरकारें गिरीं कांग्रेस पार्टी भारत से मुक्त तो दूर और ज्यादा लड़ने लगीं. राहुल -प्रियंका लगातार सड़कों पर जूझते रहे. धक्का-मुक्की के शिकार तक हुए, देश ने देखा. बीजेपी के लिए कांग्रेस की ये लड़ाई चिंता का सबब बनी. कारण साफ है राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी को फिलहाल कांग्रेस ही रिप्लेस कर सकती है, ये सचाई है.

तस्वीर ऐसी बन रही कि एक ओर कांग्रेस मुक्त भारत के सपने कि धज्जियां उड़ गई, दूसरी ओर किसानों ने गुब्बारे की हवा निकाल दी. देर से ही सही पर किसानों के सामने इस सरकार को झुकने का अभिनय करना पड़ा पर राजनैतिक तौर पर बीजेपी ने अपने आने वाले दुर्दिनों को भांप लिया. बीजेपी का एनडीए टूट -टूट कर आधा होता जा रहा तो वहीं महंगाई, बेरोजगारी , भ्रष्टाचार से बढ़ते आक्रोश से बीजेपी को लगते धक्के और कांग्रेस को भविष्य में और भी लाभ मिलते देख बीजेपी की नींद उड़ी हुई थी.

खासकर, कश्मीर से कन्याकुमारी भारत -जोड़ो अभियान कहीं इस सरकार के लिए अंतिम कील न साबित हो जाए, ये बौखलाहट बढ़ते छापों के बीच देखी जा सकती थी. जब सिर्फ राहुल -सोनिया से पूछताछ पर कांग्रेस के बड़े देशव्यापी प्रदर्शनों से बड़ी हलचल हो गई तो कश्मीर से कन्याकुमारी भारत जोड़ो अभियान की तैयारियों से इनकी कैसे नींद उड़ी होगी, जरा सोचिये ? इसी पृष्ठभूमि में गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस छोड़ना देखिए.

कश्मीर से कन्याकुमारी भारत जोड़ो यात्रा से पहले कमेटी छोड़ने से लेकर पार्टी छोड़ने की खबरों से इस यात्रा को जितना नुकसान हो सकता है उतना पहुंचाने की कवायद हो रही. इस अबके सबसे बड़े आंदोलन पर सबसे बड़े हमले की तैयारी है और अपने कई दिनों से सहेजे गए ‘कार्ड’ को सही अवसर पर छोड़ा गया.

सवाल है कांग्रेस में 51 सालों तक रहे गुलाम नबी आजाद, जिन्हे कांग्रेस ने हमेशा सर्वोच्च पदों से नवाजा तब कांग्रेस से दूरी क्यों नहीं बनाते जब उन्हें केंद्रीय मंत्री, दो बार 2 बार लोकसभा सांसद बनाया गया, जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री बनाया, 5 बार राज्य सभा सांसद बनाया गया. कभी नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता है, पिछले 42 सालों में कई पदों पर रहे. क्या देश उन्हें इस बात के लिए माफ करेगा कि ऐसे समय पर जब सोनिया गांधी चेकअप के लिए अमेरिका गई हुई हैं, बीमारी से जूझ रही हैं, ठीक ऐसे वक्त हमेशा कुर्सी पर बने रहने वाले ने कुर्सी की खातिर घटिया आरोपों का एक पुलिंदा रिटर्न गिफ्ट के तौर पर दिया ?

जब ये केंद्रीय मंत्री थे या जब ये मुख्यमंत्री थे, उस दौर से आज राहुल ज्यादा परिपक्व और पूरे समय लड़ाई के मैदान में हैं, फिर आजाद का ये बचकाना व्यवहार बयान आज किसके गले में उतरेगा ? जाहिर है बिसात पर एक घोडा जो कभी आजाद था आज गुलाम की तरह ठीक सबसे बड़े आंदोलन के ठीक पहले आगे बढ़ाया गया. यहां सवाल ये बिलकुल नहीं है कि आजाद बीजेपी ज्वाइन करेंगे या नहीं. कांग्रेस छोड़कर दो तरह से लोगों ने बीजेपी को समृद्ध किया. एक सीधे बीजेपी में शामिल होकर, दूसरा अलग पार्टी बनाकर भी बीजेपी से चिपके रहकर, तीसरा आरिफ मोहम्मद खान बनकर भी सेवा की जा सकती है. आप कांग्रेस छोड़कर कांग्रेस के खिलाफ जाते हैं वो भी सबसे बड़े आंदोलन से पहले तो कितनी अपार संभावनाएं हैं, जरा सोचिये ?