
Rajasthan News: राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र में राजस्थान विश्वविद्यालय विधियां संशोधन विधेयक-2025 को लेकर जोरदार बहस हुई। सरकार ने ‘कुलपति’ शब्द को बदलकर ‘कुलगुरु’ करने का प्रस्ताव रखा, जिस पर विपक्ष ने कड़ी आपत्ति जताई।
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने कुलपति शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि यह संस्कृत साहित्य से लिया गया है और प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, “आज कुलपति शब्द अच्छा नहीं लग रहा, आखिर इसकी वजह क्या है? बीजेपी सनातन धर्म की बात करती है, लेकिन यह नाम परिवर्तन सिर्फ पाखंड से ज्यादा कुछ नहीं। कांग्रेस ने ही संस्कृत निदेशालय की नींव रखी थी, अब कुलपति का नाम बदल दिया, तो कुलाधिपति का क्या करेंगे?”

‘कुलगुरु की योग्यता भी होनी चाहिए’
विधायक डॉ. सुभाष गर्ग ने कुलपति और कुलगुरु के अंतर पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि कुलपति अस्थायी पद होता है, जबकि कुलगुरु स्थायी। उन्होंने सरकार से पूछा, “राजस्थान के शिक्षाविद कुलपति बनने के लिए तरस जाएंगे, आखिर क्यों? क्या राजस्थान के लोग कुलपति नहीं बन सकते? कुलगुरु की योग्यता भी तय होनी चाहिए।”
‘सरकार सिर्फ नाम बदलने में व्यस्त’
कांग्रेस विधायक हरिमोहन शर्मा ने सरकार पर योजनाओं और संस्थानों के नाम बदलने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “यह सरकार नाम परिवर्तन को लेकर रिकॉर्ड बना रही है।” इस पर स्पीकर वासुदेव देवनानी ने आपत्ति जताई और कहा कि सिर्फ विधेयक पर चर्चा करें। नेता प्रतिपक्ष ने जवाब दिया, “नाम परिवर्तन पर चर्चा गलत कैसे हो सकती है?”
‘बड़ी अटैची देने वाला बन जाता है कुलपति’
विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति पैसों के आधार पर हो रही है। उन्होंने कहा, “जो बड़ी अटैची (रिश्वत) देता है, उसे कुलपति बना दिया जाता है। इससे नई पीढ़ी का नुकसान हो रहा है।”
‘अधिकारियों के कहने पर नाम बदला’
पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक शांति धारीवाल ने कहा कि सरकार ने अधिकारियों के सुझाव पर ‘कुलपति’ शब्द बदलने का निर्णय लिया और विधेयक सदन में पेश किया।
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