Rajasthan News: शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन बाड़मेर का प्राचीन जोगमाया गढ़ मंदिर श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ है. सुबह चार बजे से ही भक्तों की लंबी कतारें लग जाती हैं, ताकि मां दुर्गा के दर्शन कर सकें.

1400 फीट ऊंचाई और 1000 सीढ़ियां

यह मंदिर 1400 फीट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. ऊपर पहुंचने के लिए करीब 1000 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. रास्ता कठिन जरूर है, लेकिन श्रद्धालुओं के लिए यह एक आध्यात्मिक यात्रा होती है. मंदिर की ऊंचाई से बाड़मेर शहर का नजारा देखने लायक होता है.

बाड़मेर से भी है पुराना इतिहास

माना जाता है कि 16वीं शताब्दी में बाड़मेर के शासक राव भीमजी ने इस मंदिर की स्थापना की थी. इसके बाद ही उन्होंने शहर को बसाया. यानी जोगमाया गढ़ मंदिर का इतिहास खुद बाड़मेर से भी पुराना है. सदियों से यह मंदिर इस क्षेत्र की आस्था का केंद्र रहा है.

युद्ध के दिनों का चमत्कार

1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान इस मंदिर ने अपनी चमत्कारिक शक्ति का अहसास कराया. स्थानीय लोगों के मुताबिक, बाड़मेर पर जब भीषण बमबारी हुई, तब कई लोग मंदिर की सीढ़ियों पर जाकर शरण लिए. चारों ओर बम गिरे, लेकिन मंदिर और यहां मौजूद लोग सुरक्षित रहे. पुजारी बताते हैं कि लोग आज भी मानते हैं कि मां जोगमाया ने ही उस समय भक्तों की रक्षा की थी.

नवरात्रि में भक्ति का जश्न

नवरात्रि के दौरान यहां का दृश्य और भी अद्भुत हो जाता है. सुबह-शाम की आरती में सैकड़ों लोग शामिल होते हैं. लाउडस्पीकर पर गूंजते भजन और मंत्र पूरे इलाके को भक्तिमय बना देते हैं. भीड़ को देखते हुए प्रशासन और पुलिस ने खास इंतजाम किए हैं.

भक्तों का कहना है कि 1000 सीढ़ियां चढ़ने की थकान माता के दर्शन के बाद गायब हो जाती है. यही कारण है कि यह मंदिर सिर्फ पूजा का स्थान नहीं, बल्कि बाड़मेर की संस्कृति और अटूट आस्था का प्रतीक बन चुका है.

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