Rajasthan News: उत्तर भारत में शीतला सप्तमी (बासौड़ा) का पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है, लेकिन राजस्थान के नागौर जिले में इस दिन शोक का माहौल रहता है। दरअसल, 18वीं सदी में इसी दिन नागौर के राजा अमर सिंह राठौड़ का निधन हुआ था, जिसके कारण यहां सप्तमी को शीतला माता की पूजा नहीं की जाती। नागौर में यह पर्व सप्तमी के बजाय अष्टमी को मनाया जाता है।

राजा अमर सिंह राठौड़ की मृत्यु से जुड़ी परंपरा

विश्व हिंदू परिषद के धार्मिक आयोजन समिति अध्यक्ष पुखराज सांखला के अनुसार, नागौर राजघराना जोधपुर के अधीन था। ऐतिहासिक घटनाओं के अनुसार, राजा अमर सिंह राठौड़ की सप्तमी के दिन मृत्यु हो गई थी, जिसे अशुभ माना गया और तब से यहां अष्टमी को शीतला माता की पूजा की जाने लगी।

बासी खाने की परंपरा

नागौर में सप्तमी के दिन ही अगले दिन के लिए भोजन तैयार कर लिया जाता है, जिसे अष्टमी को खाया जाता है। परंपरा के अनुसार, मठरी, त्रिकुटा सब्जी, सूखी सब्जी, पापड़ी, पूरी आदि भोजन बनाए जाते हैं, ताकि वे खराब न हों और अगले दिन माता को भोग लगाया जा सके।

वैज्ञानिक कारण: बासी भोजन क्यों खाते हैं?

शीतला अष्टमी पर बासी भोजन खाने की परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं।

  1. पाचन तंत्र को आराम: गर्मी के मौसम में पाचन तंत्र कमजोर हो सकता है, और बासी भोजन हल्का होता है, जिससे पाचन पर अधिक दबाव नहीं पड़ता।
  2. ऊर्जा की बचत: बासी भोजन शरीर को ठंडक देता है और गर्मी में अतिरिक्त ऊर्जा खर्च होने से बचाता है।
  3. मौसमी बदलाव के अनुकूलन: यह परंपरा शरीर को बदलते मौसम के अनुरूप ढालने में मदद करती है। गर्मी में ताजा और गर्म खाने की बजाय ठंडा और हल्का भोजन शरीर के लिए अधिक लाभकारी माना जाता है।

अष्टमी को होती है माता शीतला की पूजा

शीतला अष्टमी के दिन सुबह-सुबह माता को ठंडे भोजन का भोग लगाया जाता है। यह परंपरा आज भी नागौर में कायम है, जो इस पर्व को राजस्थान के अन्य हिस्सों से अलग बनाती है।

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