Lalu Yadav Stopped Advani Rath: 23 अक्टूबर 1990 बिहार की सियासत में एक ऐसा दिन, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी की राम रथ यात्रा को समस्तीपुर में रोककर पूरे देश में सुर्खियां बटोरीं थी. यह घटना न केवल बिहार बल्कि भारतीय राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई.

आडवाणी की यह रथ यात्रा, जो अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से शुरू हुई थी, सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने का कारण बन रही थी. लालू यादव ने इसे रोककर न केवल बिहार को संभावित दंगों से बचाया, बल्कि खुद को एक धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में स्थापित किया.

रथ यात्रा और उसका मकसद

दरअसल सितंबर 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा शुरू की थी, जिसका उद्देश्य विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और संघ परिवार के राम मंदिर आंदोलन को समर्थन देना था. यह यात्रा 25 सितंबर को शुरू हुई और 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचने वाली थी. यात्रा के दौरान आडवाणी ने कई राज्यों में सभाएं कीं, जिससे हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ रहा था. कई जगहों पर सांप्रदायिक दंगे भड़क चुके थे, खासकर गुजरात, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में.

लालू यादव का कड़ा रुख

लालू प्रसाद यादव, जो मार्च 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, ने इस यात्रा को बिहार में प्रवेश करने से पहले ही रोकने का फैसला किया. उनकी चिंता थी कि यह यात्रा बिहार में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ सकती है. अपनी आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना’ मेरी राजनीतिक यात्रा में लालू ने इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा, “मैंने आडवाणी से पूरी शालीनता से कहा कि, आप दंगा फैलाने वाली अपनी यात्रा रोक दीजिए. बहुत परिश्रम से हमने बिहार में भाईचारा कायम किया है. अगर आप दंगा यात्रा निकालेंगे तो हम छोड़ेंगे नहीं.”

लालू ने आडवाणी से दिल्ली में मुलाकात की और यात्रा रोकने की अपील की, लेकिन आडवाणी ने उनकी बात नहीं मानी और कहा, “देखता हूं कौन माई का दूध पिया है जो मेरी रथ यात्रा रोकेगा.” इसके जवाब में लालू ने पलटवार करते हुए कहा, “मैंने मां और भैंस दोनों का दूध पिया है, आइए बिहार बताता हूं.” यह बयान बाद में काफी चर्चित हुआ.

समस्तीपुर में हुई थी गिरफ्तारी

लालू ने रथ यात्रा को रोकने के लिए पूरी रणनीति बनाई थी. शुरुआत में धनबाद या सासाराम में आडवाणी को गिरफ्तार करने की योजना थी, लेकिन यह योजना लीक हो गई. आखिरकार, 23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया. लालू के निर्देश पर तत्कालीन पुलिस अधिकारी आर.के. सिंह (जो बाद में मोदी सरकार में मंत्री बने) ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया. आडवाणी को हिरासत में लेकर दिल्ली भेज दिया गया.

तो मंदिर में घंटी कौन बजाएगा?

आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद लालू ने बिहार की जनता को संबोधित करते हुए कहा, “हम अपने राज्य में दंगा-फसाद फैलने को नहीं देंगे. जहां बखेड़ा खड़ा करने का नाम लिया, चाहे राज रहे या राज चला जाए, हम इस पर कोई समझौता नहीं करेंगे. देशहित में अगर इंसान ही नहीं रहेगा तो मंदिर में घंटी कौन बजाएगा?” यह भाषण सोशल मीडिया पर वर्षों बाद भी वायरल हुआ, जिसमें लालू की धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द की प्रतिबद्धता झलकती थी.

…और गिर गई लालू की सरकार

आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद केंद्र में वी.पी. सिंह की सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार गिर गई इस घटना ने लालू को राष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त नेता के रूप में उभारा, खासकर मुस्लिम और यादव (एमवाई) वोटरों के बीच, जिन्हें वे हमेशा से प्रतिनिधित्व करते थे. हालांकि, इस कदम ने भाजपा को हिंदू वोटों को एकजुट करने का मौका भी दिया, जिसका फायदा उसे 1991 के चुनावों में मिला. लालू की इस कार्रवाई को उनके समर्थक आज भी सामाजिक न्याय और सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल मानते हैं.

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