नई दिल्ली। अगर कुछ अप्रत्याशित नहीं हुआ तो बिहार के मौजूदा राज्यपाल रामनाथ कोविंद का भारत का 14वां राष्ट्रपति बनना तय है. दलित नेता रामनाथ कोविंद एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं. ये बात उनके हक में दूसरी पार्टियों को लामबंद कर सकती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा हो जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से बात करके समर्थन मांगा. रामनाथ कोविंद का नाम सार्वजनिक करने से पहले बीजेपी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी तथा मुरली मनोहर जोशी को बता दिया था.

इस चुनाव में आंकड़ों पूरी तरह से उनके पक्ष में है. एनडीए के घटक दलों में शिवसेना को छोड़कर सभी ने नरेंद्र मोदी द्वारा चयनित प्रत्याशी को समर्थन देने का ऐलान किया था. तमिलनाडु में सत्तारूढ़ ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) तथा आंध्र प्रदेश में सत्तासीन तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी) भी राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए प्रत्याशी को समर्थन देने का ऐलान कर चुके हैं.

इन दोनों दलों के अतिरिक्त रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा के तुरंत बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री तथा तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने भी उन्हें समर्थन की घोषणा कर दी है.

अब जो पार्टी कोविंद का विरोध करेगी उसे ये डर रहेगा कि उसे दलित विरोधी होने का आरोप झेलना पड़ सकता है. कांग्रेस समेत समूचे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) तथा वामदलों, तृणमूल कांग्रेस आदि विपक्षी पार्टियों को फैसला करना होगा कि वे राष्ट्रपति पद के लिए अपना प्रत्याशी खड़ा करना चाहते हैं या एनडीए के प्रत्याशी को ही समर्थन देंगे.

हालांकि कांग्रेस ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में सावधानी बरतते हुए यह तो कहा है कि बीजेपी ने रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा कर एकतरफा फैसला किया है लेकिन कोविंद तथा उनकी उम्मीदवारी को लेकर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है. एनडीए के घटक शिवसेना ने भी प्रत्याशी के नाम की घोषणा के बाद फैसला करने की बात कही थी, और संभावना है कि दलित नेता कोविंद के लिए शिवसेना समर्थन दे दे.

उधर, रामनाथ कोविंद के रिश्ते बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से भी अच्छे रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर-विरोधी होने के बावजूद बिहार के इन दोनों दिग्गजों के लिए रामनाथ कोविंद का विरोध करना आसान नहीं होगा.  क्योंकि न सिर्फ कोविंद साफ-सुथरी छवि के नेता रहे हैं, बल्कि दलित भी हैं, सो, पिछड़ों के उत्थान की राजनीति करने वाले नीतीश और लालू के लिए एनडीए ने संकट पैदा कर दिया है.

ठीक यही स्थिति उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी  प्रमुख मायावती की होगी, क्योंकि ये दोनों नेता भी दलितों और पिछड़ों की ही राजनीति करते रहे हैं. हांलाकि इस मसले पर अगर आडवाणी या मुरली मनोहर जोशी का क्या रुख होता है ये काफी अहम रहेगा. क्योंकि दोनों नेताओं के साथ पार्टी का बड़ा तबका खड़ा है.