जांजगीर-चांपा। जिले में एक ऐसा गांव है जहां होली के पांचवे दिन याने रंग पंचमी को लाखों की संख्या में लोग जुड़ते हैं. यहां मेला और संत समागम होता है और शिव जी की बारात निकलता है. मंदिर से चांदी की पालकी में सवार होकर पंचमुखी महादेव अपने श्रद्धालुओं के साथ निकलते हैं और नागा साधु वैष्णव संत मिलकर इस बारात में शामिल होते हैं. इस नजारा को देखने के लिए लोगों को साल भर से इंतजार रहता है.
हम बात कर रहे हैं नवागढ़ ब्लाक के पीथमपुर गांव में बसे कलेश्वर नाथ बाबा की. इस मंदिर की मान्यता है कि शिव लिंग स्वयं-भू है और इसके द्वार पर मांगी गई हर मांग पूरी होती है. सावन में माह भर और शिवरात्रि में शिव जी की विशेष पूजा और श्रृंगार किया जाता है, लेकिन रंग पंचमी के दिन स्वयं भोले नाथ अपने श्रद्धालुओं के बीच पहुंचते हैं और उनकी मनोकामना पूरी करते हैं.
100 साल से भी अधिक समय से निकलती आ रही है शिव बारात
बाबा कलेश्वर नाथ के मंदिर से शिव की बारात कब से निकल रही है, इस पर जानकारों का मानना है कि सन 1920 से शिव बारात निकाली गई और चाम्पा जमींदार इस परम्परा का आज भी निर्वहन करते आ रहे हैं.
नागा साधु का शौर्य प्रदर्शन और शाही स्नान होता है आकर्षण का केंद्र
हसदेव नदी के तट में बसे पीथमपुर गांव में पंचांग के हिसाब से इस बार 30 मार्च को रंग पंचमी मनाया जाएगा. पीथमपुर में निकलने वाली शिव बारात की तैयारी शुरु कर दी गई है. नागा साधुओं का आगमन शुरू हो गया है और मेला के लिए भी तैयारी की जा रही है.
बारात में निकलने वाली चांदी की पालकी का वजन डेढ़ क्विंटल
बाबा कलेश्वर नाथ की बारात में सबसे आकर्षक दूल्हा याने भोले भंडारी और उनका पालकी ही होता है. जानकारों के मुताबिक, इस पालकी को 1930 के दशक में राजा दादूराम शरण सिंह के समय रानी उपमा कुमारी ने चांदी की पालकी बनवाई थी. मंदिर परिसर में रहते समय उन्हें किसी विद्वान ने चांदी की पालकी में शिव बारात निकालने की सलाह दी और रानी ने बनारस से डेढ़ क्विंटल चांदी की पालकी बनवाई. इससे आज भी शिव जी की बारात निकालने की परंपरा है और पंच धातु से बने शिव जी की पंचमुखी प्रतिमा भी स्थापित करते हैं.
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