धीरज दुबे,कोरबा. देवताओं की शक्ति वाला दुर्लभ ब्रह्मकमल मिला है। ब्रह्मकमल हिमालय की वादियों में होता है और सिर्फ रात में ही खिलता है सुबह होते ही इसका फूल अपने आप बंद हो जाता है. कोरबा के आर पी नगर फेस-2 में पीजी कॉलेज कोरबा की प्राध्यापक प्रतिभा पुंडलिक व शिवानी पुंडलिक के यहां बुधवार की रात में 09.30 बजे खिला है. अंग्रेजी संकाय की प्रोफेसर शिवानी पुंडलिक ने बताया कि इस पुष्प की कलम वे 5 वर्ष पहले पुणे से लाई थी। एक वर्ष बाद से ही इसमें फूल आने शुरू हो गए। यह फूल वर्ष में एक बार जुलाई से सितंबर के बीच संभवतः सावन मास में अधिकतर खिलता है। आज परिवार के सभी सदस्यों ने इस पुष्प के एक साथ दर्शन किये, हम हर साल की ही भांति कुमकुम व हल्दी से इनकी पूजा किये। इसके बाद फूल को देखने के लिए कॉलोनी वासियों की भीड़ लग रही है।
यह विशेष संयोग ही है कि नाग पंचमी के दिन उनके निवास में 5-5 ब्रह्मकमल एक साथ एक ही पौधे में खिले है। जबकि उनके घर में 3 अन्य पौधे भी है, जिनमें अभी पुष्प खिलना बाकी है। किवदंती है कि किसी भी घर में ब्रह्म कमल का खिलना व दर्शन करना दोनों शुभ होते है। यह अत्यंत सुंदर चमकते सितारे जैसा आकार लिए मादक सुगंध वाला पुष्प है। ब्रह्म कमल को हिमालयी फूलों का सम्राट भी कहा गया है। यह कमल आधी रात के बाद खिलता है इसलिए इसे खिलते देखना स्वप्न के समान ही है। ऐसी मान्यता है कि अगर इसे खिलते समय देखकर कोई कामना की जाए तो शीघ्र पूरी हो जाती है। प्रोफेसर पुंडलिक हर रोज 16 घंटे कार्य करती है। वे कॉलेज स्टाफ के साथ छात्रों को भी हर संभव मदद करती है। मेघावी छात्रों को निःशुल्क कोचिंग प्रदान करने वाली शिवानी पुंडलिक IQAC में समन्वयक भी है। इसके अलावा वे समाजसेवी कार्य के लिए हर समय तत्पर रहती है। उनके पति संदीप पुंडलिक व जेठ संजय पुंडलिक पेट्रोलियम कारोबारी है।
इसे ना तो खरीदा जाता और ना ही बेचा जाता
ब्रह्मकमल औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। साथ ही पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है। इस फूल की विशेषता यह है कि जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति बनकर उभर आती है। ब्रह्मकमल न तो खरीदा जाता और न ही इसे बेचा जाता है। इसकी पंखुडिय़ों से टपका जल अमृत समान होता है।
रात में खिलता और सुबह मुरझाता है
किंवदंती यह भी है कि जो भाग्यशाली होते हैं वही इसे खिलते हुए देखते हैं और यह उन्हें सुख-समृद्धि से भर देता है। इसका खिलना एक अनोखी घटना है। यह अकेला ऐसा कमल है जो रात में खिलता है और सुबह होते ही मुरझा जाता है।
60 प्रजातियों की हुई है पहचान
उत्तराखंड में इसे ब्रह्म कमल, हिमाचल में दूधा फूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है। ब्रह्ममकमल ही ऐसा फूल है। जिसकी पूजा की जाती है। यह हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है। यह हिमालय की पहाड़ी ढलानों या 3 से 5 हजार मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। सुंदरता तथा दैवीय गुणों के कारण इसे उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी घोषित किया गया है। वर्तमान में भारत में इसकी लगभग 60 प्रजातियों की पहचान की गई है। जिनमें से 50 से अधिक प्रजातियां हिमालय में ही पाई जाती हैं। उत्तराखंड में यह विशेष तौर पर पिंडारी से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुंड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक पाया जाता है।
देवताओं का प्रिय फूल
यह फूल देवताओं का प्रिय फूल माता जाता है इसकी विशेषता यह है कि जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति बन कर उभर आती है। ब्रह्म कमल न तो खरीदा जाना चाहिए और न ही इसे बेचा जाता है। इस दुर्लभ पुष्प की प्राप्ति आसानी से नहीं होती। हिमालय में खिलने वाला यह पुष्प देवताओं के आशीर्वाद सरीखा है।