नई दिल्ली। पूरे देश में रामलीलाओं का मंचन और राम की जय-जयकार हो रही है. शनिवार को बुराई के अंत के प्रतीक के रूप में विजयादशमी मनाई जाएगी. वहीं दूसरी ओर शुक्रवार को मथुरा में लंकेश्वर का जयघोष गूंजने लगा. सारस्वत समाज ने रावण की पूजा कर पुतला दहन का विरोध किया.राम की लीलाएं श्रीष्कृण की जन्मभूमि संग महाविद्यालय के मैदान में भक्ति का संदेश देती रहीं तो कृष्णप्रिया यमुना के किनारे शुक्रवार को शिव के भक्तों ने त्रिकालज्ञ रावण की पूजा की. दरअसल, लंकेश भक्त मण्डल के संस्थापक संघ प्रमुख ओमवीर सारस्वत एडवोकेट कई साल से रावण, कुम्भकरण, मेघनाथ आदि के पुतले फूंकने का विरोध करते आ रहे हैं. वह दल-बल सहित यमुना के किनारे स्थित शिव मंदिर में पहले शिव और बाद में लंकेश्वर की पूजा अर्चना-गुणगान करते हैं. सारस्वत ने इस साल भी रावण के पुतले फूंकने का विरोध किया और लंकेश की पूजा का ऐलान किया.सारस्वत कहना है कि रावण परम विद्वान थे, राम, लक्ष्मण ने भी अंत समय उनसे शिक्षा ली. दूसरे, किसी भी व्यक्ति का अंतिम संस्कार एक बार होता है. रावण का दहन हर वर्ष करना अनुचित है. मथुरा-बरेली सड़क मार्ग पर यमुना के उस पार श्मशान के पास स्थित शिव मंदिर में रावण पूजा कार्यक्रम आयोजित किया. रावण का स्वरूप कुलदीप अवस्थी ने धारण किया. कुलदीप ने रावण जैसी मूंछें और चेहरा मोहरा बनाने के लिए मेकअप करने वालों का सहारा लिया. इसमें सारस्वत वंश के अलावा अन्य रावण भक्त भी शामिल हुए.