रायपुर। छत्तीसगढ़ किसान सभा (सीजीकेएस) ने लघु व मध्यम किसानों के हितों की अनदेखी करते हुए केंद्र की भाजपा-नीत मोदी सरकार द्वारा क्षेत्रीय समग्र आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) नामक समझौते में भारत को भागीदार बनाने की तीखी निंदा की है. इसके खिलाफ अखिल भारतीय किसान सभा सहित विभिन्न किसान संगठनों द्वारा 4 नवम्बर को आहूत देशव्यापी विरोध आंदोलन में शिरकत की घोषणा की है.

आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि इस समझौते में भारत की भागीदारी से देश की कृषि व घरेलू अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि इस समझौते में प्रावधान है कि इसमें शामिल देश एक-दूसरे के यहां बिना किसी प्रतिबंध या टैक्स के अपना माल भेज सकते हैं. इसके कारण भारतीय बाजार विदेशी सस्ते माल से पट जाएंगे और इसका हमारी खेती-किसानी, सब्जी, मछली, अनाज और मसाला उत्पादक किसानों, पशुपालक किसानों के दूध-डेयरी के काम और उद्योग-धंधों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा और वे तबाह हो जाएंगे.

किसान सभा नेताओं ने रेखांकित किया है कि पहले ही भाजपा के अटल सरकार के राज से विश्व व्यापार संगठन के निर्देश पर खाने-पीने की 1500 वस्तुओं के आयात पर लगी मात्रात्मक पाबंदी हटा लेने से किसान संकट में है. अब यह समझौता ‘करेले पर नीम चढ़ा’ साबित होगा.

उन्होंने बताया कि इस समझौते के कारण दुग्ध उत्पादों के आयात पर जो 64% टैक्स लगता है, उसके हट जाने के कारण आयातित दुग्ध उत्पाद इतने सस्ते हो जाएंगे कि हमारे देश के पशुपालक किसान पूरी तरह तबाह हो जाएंगे, जो उनकी आजीविका का एक बड़ा स्रोत है। भारत में दूध पाउडर 260 रुपये किलो बेचा जाता है, जबकि प्रमुख आयातक देश न्यूज़ीलैंड की लागत 170 रुपये आती है और टैक्स मिलाकर वह इस देश में 300 रुपये किलो बेचा जाता है. यदि न्यूज़ीलैंड का दूध पाउडर 170 रुपये में बिकेगा, तो भारतीय किसानों का क्या हश्र होगा, आसानी से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि यही स्थिति औद्योगिक उत्पादों की होने वाली है और यही कारण है कि ऑटोमोबाइल, स्टील, टेक्सटाईल उद्योगों सहित पूरा औद्योगिक जगत भी इस समझौते का विरोध कर रहा है.

इस समझौते को मजदूर-किसान विरोधी नवउदारवादी नीतियों का हिस्सा बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारा देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है, इसके बावजूद मोदी सरकार कॉर्पोरेट तबकों को ही भारी राहत देने की ही नीति पर चल रही है। इस नीति के खिलाफ छत्तीसगढ़ के किसानों को भी लामबंद किया जाएगा और 4 नवम्बर को जिला, तहसील, पंचायतों के स्तर पर रैलियां, प्रदर्शन, धरने, पुतला दहन, आमसभा के कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे और भारतीय कृषि व उद्योगों को संरक्षण देने के लिए स्थानीय अधिकारियों के जरिये प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपे जाएंगे.