लखनऊ. आमतौर पर जिस अनाज को मोटा कहकर वक्त के साथ भुला दिया गया, वही अनाज सेहत का असली खजाना है. भले ही बाजार में कई वरायटी हो, नए प्रयोग हो रहे हों लेकिन पोषक तत्वों की अधिकता अब भी मोटे अनाजों में ही है. इतना ही नहीं इनके खाने पीने से ढेर सारी बीमारियों से निजात मिलता है. सांवा और कोदो लुप्तप्राय हो रहे अनाज हैं. इसके प्रयोग से कैल्शियम की कमीं तो दूर होगी, साथ ही महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गो के लिए किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है. सांवा और कोदो से आधुनिक पीढ़ी के अधिकांश लोगों को तो इनके नाम भी याद नहीं होंगे. खूबियां तो दूर की बात हैं. कहने को तो ये मोटे अनाज हैं, पर खरे हैं. विशेषज्ञों की मानें तो चावल में 6.8 प्रतिशत प्रोटीन, 78.2 काबोर्हाइड्रेट, 10 प्रतिशत आयरन और कैल्यिशम होता है. जबकि सावां में प्रोटीन 11. 6, काबोर्हाइड्रेट 74.3, आयरन 14, कैल्शियम 121 मिली ग्राम होता है. कोदो में 8.3 प्रोटीन, काबोर्हाइड्रेट 63.9, आयरन 27, कैल्शियम 188 मिली ग्राम होता है.

अन्तराष्ट्रीय मिलेट वर्ष-2022 के जरिए योगी सरकार इन मोटे पर खरे अनाजों की खूबियों के प्रति लोगो और किसानों को जागरूक करेगी. उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 की घोषणा भारत के ही प्रस्ताव पर की है. लिहाजा इसमें भारत खासकर कृषि बहुल उत्तर प्रदेश की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो जाती है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में मिलेट रिवॉल्यूशन का जिक्र कर इस बाबत संकेत भी दे दिया था. वैसे भी भारत 2018 को मिलेट वर्ष के रूप में मना चुका है.

इसी क्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर कृषि विभाग ने अन्तराष्ट्रीय मिलेट वर्ष में मोटे अनाजों के प्रति किसानों एवं लोगों को जागरूक करने के लिए व्यापक कार्ययोजना तैयार की है. इस दौरान राज्य स्तर पर दो दिन की एक कार्यशाला आयोजित की जाएगी. इसमें विषय विशेषज्ञ 250 किसानों को मोटे अनाज की खेती के उन्नत तरीकों, भंडारण एवं प्रसंस्करण के बारे में प्रशिक्षित किया जाएगा. जिलों में भी इसी तरह के प्रशिक्षण कर्यक्रम चलेंगे.

खेती को प्रोत्साहन के लिए प्रस्तावित

इसी क्रम में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत जिन जिलों में परंपरागत रूप से इनकी खेती होती है उनमें दो दिवसीय किसान मेले आयोजित होंगे. हर मेले में 500 किसान शामिल होंगे. इसमें वैज्ञानिकों के साथ किसानों का सीधा संवाद होगा. खूबियों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए रैलियां निकाली जाएंगी. राज्य स्तर पर इनकी खूबियों के प्रचार-प्रसार के लिए दूरदर्शन, आकाशवाणी, एफएम रेडियो, दैनिक समाचार पत्रों, सार्वजिक स्थानों पर बैनर, पोस्टर के जरिए आक्रामक अभियान भी चलाया जाएगा.

डीआरडीओ के कृषि वैज्ञानिक डॉ संजय द्विवेदी कहते हैं कि कठिन हालातों में उगने की क्षमता के अलावा दोनों फसलें पोषक तत्वों का खजाना हैं. कभी ये दोनों फसलें चावल के विकल्प के रूप में प्रयोग होती थीं. लेकिन पोषक तत्वों के लिहाज से चावल इनके सामने कहीं ठहरता नहीं. कोदो में चावल की तुलना में करीब तीन गुना कैल्शियम मिलता है. इसी तरह चावल की तुलना में सावां में तीन गुने से अधिक फास्फोरस मिलता है.

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