नोबेल शांति पुरस्कार का ऐलान कर दिया गया है. बड़ी आस लगाकर बैठे और 8 युद्ध रुकवाने का दावा करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यह पुरस्कार नहीं मिला है. बल्कि वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को यह सम्मान दिया गया है. बता दें कि, ट्रंप पिछले कई दिनों से इस पुरस्कार को पाने की चाहत जाहिर कर रहे थे. यहाँ तक की उन्होंने इसे अमेरिका के सम्मान तक से जोड़ दिया था.

बता दें कि, यह दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान है, जो उन लोगों को मिलता है जो शांति, भाईचारा और दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं. अमेरिकी राष्‍ट्रपति ने दुनिया को कितना बेहतर बनाया है, इस पर अलग से बहस हो सकती है. लेकिन, ट्रंप खुद को इस मामले में इतिहास पुरुष मानते हैं. हालांकि, पुरस्कार देने वाली जूरी को ऐसा नहीं लगता है.

मारिया मचाडो वेनेजुएला की नेता प्रतिपक्ष हैं उन्होंने वहां पर लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने और तानाशाही से लोकतंत्र की ओर अपने देश को ले जाने के लिए लगातार संघर्ष किया है. वह पेशे से इंजीनियर बताई जातीं है.

उम्मीदवारी रोकी गई, लेकिन हिम्मत नहीं हारी

2024 के चुनाव से पहले मचाडो विपक्ष की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार थीं, लेकिन शासन ने उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी. इसके बाद उन्होंने दूसरे विपक्षी उम्मीदवार एडमुंडो गोंजालेज उरुटिया का समर्थन किया. सैकड़ों वॉलंटियर ने सियासी सीमाओं से परे जाकर चुनाव में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए जमकर मेहनत की.

धमकियों, गिरफ्तारियों और यातना के जोखिम के बावजूद लोगों ने मतदान केंद्रों पर निगरानी रखी और सुनिश्चित किया कि परिणामों से किसी तरह की छेड़छाड़ नाहो. हालांकि सरकार ने चुनाव परिणाम मानने से इनकार कर दिया और सत्ता नहीं छोड़ी. पिछले साल मचाडो को छिपकर जीवन बिताने पर मजबूर होना पड़ा, लेकिन गंभीर धमकियों के बावजूद उन्होंने देश नहीं छोड़ा.

नोबेल कमेटी ने अपने बयान में कहा, ‘वेनेज़ुएला, जो कभी अपेक्षाकृत लोकतांत्रिक और समृद्ध देश था, अब एक निर्दयी तानाशाही राज्य में बदल चुका है जो मानवीय और आर्थिक संकट से जूझ रहा है. आज अधिकांश वेनेज़ुएलावासी भयंकर गरीबी में जी रहे हैं जबकि कुछ लोग सत्ता के शीर्ष पर बैठकर देश की संपत्ति लूट रहे हैं. राज्य की हिंसक मशीनरी अब अपने ही नागरिकों पर दमन कर रही है. करीब 80 लाख लोग देश छोड़कर जा चुके हैं, और विपक्ष को चुनावी धांधली, कानूनी धमकियों और जेलों के ज़रिए दबाया गया है.’

ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार न मिलने पर वाइट हाउस ने दी प्रतिक्रिया

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार न मिलने पर उनके सहयोगी व वाइट हाउस के डॉयरेक्टर ऑफ कम्युनिकेशन स्टीवन चेउंग ने X पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने लिखा, “ट्रंप शांति समझौते करते रहेंगे, युद्ध समाप्त करते रहेंगे और जान बचाते रहेंगे। नोबेल समिति ने साबित कर दिया है कि वह शांति से ज़्यादा राजनीति को महत्व देते हैं।”

कैसे होता है नामांकन

2025 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन 2024 के सितंबर से शुरू हो गए थे. प्रक्रिया ये है कि कोई भी बड़ा प्रोफेसर, पूर्व राष्ट्रपति, या शांति संगठन वाला शख्स किसी को नामित कर सकता है. बस एक ऑनलाइन फॉर्म भरना होता है, जिसमें ये बताना पड़ता है कि वो शख्स शांति के लिए क्या कर रहा है. हां, खुद को नामांकन देने की इजाजत नहीं होती है. नामांकन की आखिरी तारीख 31 जनवरी होती है. यानी, ट्रंप ने 20 जनवरी को शपथ ली थी, और उसके 11 दिन बाद नामांकन दाखिल करने का समय खत्‍म हो गया. इस बार 2025 के लिए 338 लोग या संगठन इस अवार्ड के लिए नामित हुए हैं. इनमें 244 लोग और 94 संगठन हैं. इन सभी नामों को 50 साल तक गुप्त रखा जाएगा. ताकि कोई हेरफेर न हो. यही नियम है.

कमेटी नामांकन लिस्‍ट को शार्ट लिस्‍ट करती है

31 जनवरी के बाद नोबेल संस्थान सारे नामांकन चेक करता है. जो फर्जी या गलत होते हैं, हटा दिए जाते हैं. फिर फरवरी के मध्य में ये लिस्ट नॉर्वेजियन नोबेल कमेटी को दे दी जाती है. ये कमेटी पांच लोग मिलकर बनाते हैं, जिन्हें नॉर्वे की संसद चुनती है. ये लोग सारी लिस्ट देखते हैं और एक छोटी-सी लिस्ट बनाते हैं, जिसमें कुछ खास लोग या संगठन होते हैं, जिन्हें फिर और जांचना होता है. ये काम बड़ा जटिल है, क्योंकि अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के हिसाब से शांति के लिए बड़ा योगदान चाहिए.

एक्‍सपर्ट ओपिनियन: अप्रैल तक का काम

लिस्ट छोटी हो जाने के बाद कमेटी कुछ खास सलाहकारों और नॉर्वे या दुनिया भर के विशेषज्ञों से मदद लेती है. ये लोग नामांकित लोगों पर लंबी-चौड़ी रिपोर्ट बनाते हैं. अप्रैल तक पहली रिपोर्ट तैयार हो जाती है, जिसमें ये बताया जाता है कि फलां शख्स ने शांति के लिए क्या किया. जैसे किसी जंग को रोकना या मानवाधिकारों की रक्षा करना. कमेटी इन रिपोर्टों को पढ़ती है और अगर जरूरत पड़ी तो और जानकारी मांगती है. ये सब बड़ा गोपनीय होता है.

मीटिंग्स का दौर: फरवरी से सितंबर

फरवरी से सितंबर तक कमेटी बार-बार मिलती है. वो हर नामांकित शख्स पर गहराई से बात करते हैं और धीरे-धीरे लिस्ट को और छोटा करते हैं. गर्मियों में और रिपोर्टें आती हैं, जिससे काम आसान हो जाता है. कमेटी का सचिवालय इस दौरान उनकी मदद करता है. ये सारी बातें गुप्त रहती हैं, ताकि कोई बाहर वाला दबाव न डाल सके. हालांकि, ट्रंप और अमेरिकी प्रशासन में उनके सहयोगियों ने समय समय पर इस कमेटी का जिक्र करके दबाव बनाने की कोशिश की है.

आखिरी फैसला: अक्टूबर में

अक्टूबर की शुरुआत तक, यानी ज्यादा से ज्यादा 1 अक्टूबर तक, कमेटी वोटिंग करती है. बहुमत से फैसला होता है कि कौन जीतेगा. ये फैसला पक्का होता है, कोई अपील नहीं कर सकता. विजेता का नाम तब तक गुप्त रहता है, जब तक घोषणा न हो.

ऐलान: अक्टूबर के पूरे हफ्ते का पहला शुक्रवार

विजेता का नाम अक्टूबर के पहले पूरे हफ्ते के शुक्रवार को ओस्लो में बताया जाता है. इस बार 2025 में ये 10 अक्टूबर को सुबह 11 बजे (सीईएसटी) होगा. प्रेस कॉन्फ्रेंस होती है, जिसे पूरी दुनिया देखती है.

पुरस्कार समारोह: 10 दिसंबर

10 दिसंबर को ओस्लो सिटी हॉल में बड़ा समारोह होता है. विजेता नोबेल लेक्चर देता है, मेडल, डिप्लोमा और करीब 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (भारतीय रुपयों में अभी करीब 10 करोड़ रुपए) की राशि लेता है. ये सब टीवी पर दिखाया जाता है.

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