नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में पंचायत के जरिए चुने गए शिक्षकों को नियमित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों के बराबर वेतन देने के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने एक समान वेतन देने के मामले में मुख्य सचिव की अध्यक्षता कमेटी बनाने का आदेश दिया और कहा कि कमेटी देखे कि इन शिक्षकों को नियमितों के समान वेतन देने के लिए क्या कुछ और टेस्ट वगैरह लाए जा सकते हैं.
मामले में अगली सुनवाई अब 15 मार्च को होगी. जस्टिस ए के गोयल और यूयू ललित की पीठ ने कहा कि वेतन आज नहीं, तो कल बराबर करना ही होगा. ये शिक्षक राज्य में कुल शिक्षकों का 60 प्रतिशत हैं. कोर्ट ने कहा कि ये असमानता सही नहीं है और उन्हें बराबरी पर लाना चाहिए.
पंचायत के जरिए 2006 में और इससे पहले चुने गए 3.5 लाख शिक्षकों को एक समान वेतन देने के लिए सरकार को 10 हज़ार करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करने होंगे. इन शिक्षकों को सरकार अभी 6000 रुपए हर महीने देती है, जबकि नियमित शिक्षकों को सरकार अभी 6000 रुपए हर महीने देती है. जबकि नियमित शिक्षकों को 50 हजार रुपए हर महीने मिलते हैं.
पटना हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि जब स्कूल एक है, योग्यता एक है, बच्चे एक है, काम भी एक है, तो वेतन में असमानता क्यों. राज्य सरकार ने इस आदेश को चुनौती दी है. सरकार ने कहा कि इससे राज्य पर 28 हजार करोड़ रुपए का भार पड़ेगा. वहीं इससे बिहार के 3.5 लाख शिक्षकों को लाभ मिलेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी बनाया पार्टी
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले में केंद्र सरकार को भी पार्टी बना दिया है और एएसजी पी एस नरसिम्हा से कहा है कि वो सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहें. राज्य की ओर से अधिवक्ता गोपाल सिंह, गोपाल सुब्रमण्यम, मुकुल रोहतगी ने बहस की.
उन्होंने कहा कि पंचायत शिक्षकों का काम एक जैसा नहीं है. वे पंचायत क्षेत्र में ही रहते हैं, जबकि नियमित शिक्षकों का ट्रांसफर राज्यभर में होता है. वहीं उनका चयन भी इतना कठिन नहीं होता है. उनके लिए एक पब्लिक नोटिस निकाला जाता है और मेरिट के आधार पर चयन कर लिया जाता है.