नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को बड़ी राहत मिली है. उनके खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया है. उन्होंने तकनीकी आधार पर इसे खारिज कर दिया है. इस फैसले से विपक्ष को तगड़ा झटका लगा है. कांग्रेस समेत 7 दलों ने सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया था.

दरअसल महाभियोग प्रस्ताव पर 71 में से 7 रिटायर्ड सांसदों के हस्ताक्षर थे. इसलिए वेंकैया नायडू ने तकनीकी आधार पर इसे खारिज कर दिया. उपराष्ट्रपति ने महाभियोग के प्रस्ताव को राजनीति से प्रेरित बताया. उन्होंने 20 पन्नों का आदेश दिया है.

इधर प्रस्ताव खारिज होने पर भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि कांग्रेस ने न्यायपालिका को भी नहीं छोड़ा, उस पर भी हमला किया. कांग्रेस ने लोकतंत्र पर हमला किया और जजों को भी सुपरसीड किया गया.

क्या होता है महाभियोग?

महाभियोग प्रस्ताव राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ लाया जाता है. संसद के किसी भी सदन में इसे लाया जा सकता है. लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तखत और राज्यसभा में पेश करने के लिए कम से कम 50 सांसदों के दस्तखत की जरूरत होती है.

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है. हस्ताक्षर होने के बाद प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है. ये प्रस्ताव राज्यसभा के सभापति या लोकसभा स्पीकर में से किसी एक को सौंपना पड़ता है. राज्यसभा के सभापति या लोकसभा स्पीकर पर निर्भर करता है कि वे प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं या फिर रद्द. अगर प्रस्ताव स्वीकार होता है, तो आरोप की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया जाता है. इस कमेटी में एक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद् शामिल होते हैं.

इसके बाद अगर कमेटी जज को दोषी पाती है तो जिस सदन में प्रस्ताव दिया गया है, वहां इस रिपोर्ट को पेश किया जाता है. ये रिपोर्ट दूसरे सदन को भी भेजी जाती है. जांच रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से समर्थन मिलने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए चीफ जस्टिस को हटाने का आदेश दे सकते हैं.