शिखिल ब्यौहार, भोपाल। मध्यप्रदेश में स्कूली शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए काम नई-नई प्लानिंग पर अमल किया जा रहा है। कापी-किताबों के बोझ से दबे बचपन को उभारने के लिए सरकार ने एक और कदम उठाया है। दरअसल, सरकार ने अब निजी और सरकारी स्कूली छात्र-छात्राओं की कक्षा के हिसाब से स्कूली बैग का वजन तय कर दिया है। इसके अलावा प्रदेश के सभी स्कूलों में एक दिन बैग विहीन दिवस भी होगा। इस संबंध में स्कूल बैग पॉलिसी के तहत लोक शिक्षण संचालनालय ने आदेश भी जारी कर दिए हैं।
जारी आदेश में बताया गया है सभी स्कूलों में पॉलिसी की गाइडलाइन को चस्पा करना होगा। साथ ही अभिभावकों को भी स्कूल बैग पॉलिसी की जानकारी देने की जिम्मेदारी भी शाला प्रबंधन की होगी। गाइडलाइन के पालन के लिए जिला शिक्षा अधिकारी को समय-समय पर औचक निरीक्षण का आदेश भी दिया गया है। यदि किसी भी प्रकार की कोताही बरती गई तो निजी स्कूल प्रबंधन समेत सरकारी स्कूलों के अधिकारियों पर कार्रवाई भी की जाएगी।
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ऐसे समझे बस्ते का वजन और स्कूली क्लास
– पहली और दूसरी कक्षा में छात्र-छात्राओं के लिए अधिकतम बस्तों के बजन की सीमा 2.2 किलो।
– तीसरी से पांचवी कक्षा तक अधिकतम वजन सीमा अधिकतम ढाई किलो।
– छठवीं और सातवीं कक्षा के बैग वेट की सीमा अधिकतम तीन किलो।
– आठवीं कक्षा की 4 किलो तो 9वी और 10वीं की साढ़े चार किलो वजन।
– 11वीं और 12वीं क्लास के बैग वेट की सीमा शाला प्रबंधन समिति करेगी तय।
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बाल आयोग की अनुशंसा पर हुआ अमल
पांच साल पहले मध्यप्रदेश बाल आयोग में पालक और अभिभावक संघ ने शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें बताया गया था कि मिशनरी स्कूलों की मनमानी से न सिर्फ अतिरिक्त किताबों-कापियों को खरीदने का दबाव डाला जाता है। इससे बच्चों के बैग का न सिर्फ वजन बढ़ता है बल्कि यह सीधे तौर पर अभिभावकों की जेब पर स्कूल माफियाओं का डांका भी है।
एम्स की रिपोर्ट में भी इन बातों का उल्लेख
स्कूली बच्चों के बैग वेट को लेकर एम्स ने भी रिपोर्ट जारी की थी। इसमें बताया गया था कि बच्चों के कंधों पर रोजाना और बस्ते का वजन भी घातक है। इससे न सिर्फ बच्चों की हाइट ग्रोथ पर असर पड़ता है बल्कि उनके कंधों की मांसपेशियों भी कमजोर हो जाती है। इसके अलावा रक्तचाप, मानसिक तनाव, रीढ़ की हड्डी की समस्या समेत कई अन्य समस्या भी आशंका होती है।
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