धार्मिक ज्ञान: ज्येष्ठ मास, जिसे हिंदी में ज्येष्ठ मास या ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष कहा जाता है, हिन्दू कैलेंडर में विशेष महत्व रखता है। प्रतिपदा शुक्रवार से 24 मई से होने जा रही है। इस मास को विशेष आदान-प्रदान और पूजा-अर्चना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस मास में भगवान विष्णु का त्रिविक्रम रूप पूजन किया जाता है और इसके पीछे कई रोचक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं। त्रिविक्रम रूप पूजा के पीछे कई महत्वपूर्ण कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो हमें विष्णु भगवान के महानता और अद्भुत लीलाओं के बारे में बताती हैं।

त्रिविक्रम रूप का महत्व
त्रिविक्रम रूप को भगवान विष्णु का एक प्रमुख रूप माना जाता है, जिसमें विष्णु भगवान अपनी विशाल विक्रम (कद) द्वारा तीन लोकों का विस्तार करते हैं। इस रूप में विष्णु भगवान की विद्या, शक्ति और महानता प्रकट होती है। इसे ज्येष्ठ मास में पूजा जाता है ताकि भक्त विष्णु भगवान के शक्तिशाली रूप का आदर कर सके और उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर सके।

पूजा विधि
त्रिविक्रम रूप की पूजा में आराधना करने के लिए विधिवत तरीका अनुसरण किया जाता है। पूजा की शुरुआत में भक्त त्रिविक्रम रूप के मूर्ति को एक पवित्र स्थान पर स्थापित करते हैं। मूर्ति को पवित्र पानी से स्नान कराया जाता है और उसे सुगंधित चंदन और रोली से सजाया जाता है। इसके बाद भक्त द्वारा पूजन के लिए धूप, दीप, फूल, फल, सुपारी, नारियल आदि उपचार प्रदान किए जाते हैं। त्रिविक्रम रूप की पूजा के दौरान भक्तों को विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु स्तोत्र, विष्णु चालीसा और अन्य प्रमुख मंत्रों का जाप करना चाहिए। इससे भक्त की आत्मिक एवं मानसिक शुद्धि होती है और उन्हें भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

ज्येष्ठ माह में क्या करें?

  1. ज्येष्ठ माह में जल का दान करना बड़ा ही पुण्य फलदायी माना जाता है. इस वजह से ज्येष्ठ माह में राहगीरों को पानी पिलाना चाहिए. उनके लिए प्याऊ की व्यवस्था करनी चाहिए. पशु पक्षियों को भी पानी पिलाना चाहिए. विष्णु कृपा से व्यक्ति के सभी कष्ट मिट जाते हैं.
  2. ज्येष्ठ माह में भगवान विष्णु, शनि देव, हनुमान जी की पूजा करने का विधान है. इन देवों की पूजा करने से व्यक्ति को कार्यों में सफलता मिलती है. जाने-अनजाने में किए गए पाप से मुक्ति मिलती है.
  3. ज्येष्ठ में बड़ा मंगल या बुढ़वा मंगल के दिन व्रत रखकर हनुमान जी की पूजा करने का विधान है. जो विधि विधान से 4 बड़े मंगलवार का व्रत करता है और वीर बजरंगबली की पूजा करता है, उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
  4. इस माह में जल की पूजा का महत्व है क्योंकि इस माह में गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी दो बड़े व्रत एवं पर्व हैं. ये दोनों ही जल के महत्व को बताते हैं. गंगा दशहरा गंगा के अवतरण की महिमा का बखान करता है. गंगा के स्पर्श मात्र से पाप मिटते हैं और मोक्ष मिलता है, वहीं निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशी व्रतों के बराबर पुण्य देती है.

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