नई दिल्ली: भारतीय सिनेमा में ‘ट्रेजडी क्वीन’ के नाम से मशहूर अभिनेत्री महजबीं बानो उर्फ मीना कुमारी का आज जन्मदिन है. अपनी खूबसूरती ने सभी को अपना कायल बनाने वाली मीना कुमारी की याद में गूगल ने डूडल बनाया है. तीन दशकों तक बॉलीवुड पर राज करने वाली मीना कुमारी ने कई फिल्मों में ऐसा अभिनय किया कि उन्हें ‘साहब बीवी और गुलाम’ के गीत ‘न जाओ सैयां छुड़ाके बैयां..’ के लिए आज भी याद किया जाता है. बहुत कम लोग जानते है कि अभिनेत्री होने के साथ-साथ मीना कुमारी एक उम्दा शायारा और पार्श्वगायिका भी थीं.
मीना कुमारी का जन्म मुंबई में 1 अगस्त, 1932 को हुआ था. उनका असली नाम महजबीं बानो था. मीना के पिता अली बख्स पारसी रंगमंच के कलाकार थे और उनकी मां थियेटर कलाकार थीं. कहा जाता है कि दरिद्रता से ग्रस्त उनके पिता अली बक़्श उन्हें पैदा होते ही अनाथ आश्रम में छोड़ आए थे चूंकि वे उनके डॉक्टर गड्रे को उनकी फ़ीस देने में असमर्थ थे. हालांकि अपने नवजात शिशु से दूर जाते-जाते पिता का दिल भर आया और तुरंत अनान आश्रम की ओर चल पड़े. पास पहुंचे तो देखा कि नन्ही मीना के पूरे शरीर पर चीटियां काट रहीं थीं. अनाथ आश्रम का दरवाज़ा बंद था, शायद अंदर सब सो गए थे. यह सब देख उस लाचार पिता की हिम्मत टूट गई, आंखों से आंसू बह निकले. पिता ने झट से अपनी नन्हीं-सी जान को साफ़ किया और अपने दिल से लगा लिया. अली बक़्श अपनी चंद दिनों की बेटी को घर ले आए. समय के साथ-साथ शरीर के वो घाव तो ठीक हो गए किंतु मन में लगे बदकिस्मती के घावों ने अंतिम सांस तक मीना का साथ नहीं छोड़ा.
इसके अलावा मीना कुमारी की बड़ी बहन शमा (खुर्शीद जूनियर) और छोटी बहन मधु (बेबी माधुरी) भी फिल्म अभिनेत्री थीं. मायानगरी के जानकार बताते हैं कि मीना कुमारी का बचपन बहुत ही तंगहाली में गुजरा था. उन्होंने जीवन के दर्द को जीया इसलिए उनकी फिल्मों में कोई भी दुख का दृश्य उनके अभिनय से जीवंत हो उठता था. मीना कुमारी ने ज्यादातर दुख भरी कहानियों पर आधारित फिल्मों में काम किया. इसलिए उन्हें हिंदी फिल्मों की ट्रेजिडी क्वीन कहा जाता है. महजबीं पहली बार 1939 में फिल्म निर्देशक विजय भट्ट की फिल्म ‘लैदरफेस’ में बेबी महज़बीं के रूप में नज़र आईं. 1940 की फिल्म ‘एक ही भूल’ में विजय भट्ट ने इनका नाम बेबी महजबीं से बदल कर बेबी मीना कर दिया. 1946 में आई फिल्म बच्चों का खेल से बेबी मीना 13 वर्ष की आयु में मीना कुमारी बनीं. बचपन में झेले इस दुख ने उनका ताउम्र पीछा नहीं छोड़ा. फिल्मों में उन्होंने काफी दौलत और शौहरत कमाई. अपनी खूबसूरती, अदाओं और बेहतरीन अभिनय से सभी को अपना दीवाना बना चुकीं मीना कुमारी की जिंदगी में दर्द आखिरी सांस तक रहा. वह जिंदगी भर अपने अकेलेपन से लड़ती रहीं.
ताउम्र रही प्यार की तलाश
मीना कुमारी को मशहूर फिल्मकार कमाल अमरोही में अपने प्रति प्यार की भावना नजर आई. उन्होंने कमाल से ही निकाह कर लिया. लेकिन उन्हें कमाल की तीसरी पत्नी का दर्जा मिला. लेकिन इसके बावजूद कमाल के साथ उन्होंने 10 साल बिताए. मगर धीरे-धीरे मीना कुमारी और कमाल के बीच दूरियां बढ़ने लगीं और फिर 1964 में मीना कुमारी कमाल से अलग हो गईं. बताते हैं कि धर्मेंद्र की वजह से कमाल और मीना कुमारी के रिश्तों में खटास आई. मीना कुमारी की मौत के 20 साल बाद कमाल अमरोही भी 11 फरवरी 1993 को दुनिया से रुखसत हो गए. कमाल अमरोही को उसी कब्रिस्तान में दफनाया गया जहां मीना कुमारी की कब्र थी. यहां तक की कमाल अमरोही को मीना कुमारी की कब्र के साथ ही दफनाया गया. ये कब्रगाह मुंबई में ईरानियों के कब्रिस्तान रेहमतबाद कब्रिस्तान में मौजूद है.
मीना अपनी कब्र पर ये लिखवाना चाहती थी
फ़िल्म पाकीजा के रिलीज़ होने के तीन हफ़्ते बाद मीना कुमारी की तबीयत बिगड़ने लगी. 28 मार्च 1972 को उन्हें बम्बई के सेंट एलिज़ाबेथ अस्पताल में भर्ती करवाया गया. 31 मार्च 1972, गुड फ्राइडे वाले दिन दोपहर 3 बजकर 25 मिनट पर महज़ 38 वर्ष की आयु में मीना कुमारी ने अंतिम सांस ली. पति कमाल अमरोही की इच्छानुसार उन्हें बम्बई के मज़गांव स्थित रहमताबाद कब्रिस्तान में दफनाया गया मीना कुमारी इस लेख को अपनी कब्र पर लिखवाना चाहती थीं.
‘वो अपनी ज़िन्दगी को एक अधूरे साज़, एक अधूरे गीत, एक टूटे दिल, परंतु बिना किसी अफसोस के साथ समाप्त कर गई ‘