राउज एवेन्यू कोर्ट(Rouse Avenue Court) के सीजेएम दीपक कुमार ने दिल्ली की निचली अदालतों में चल रहे सबसे पुराने केसों में से एक में फैसला सुनाया. 1986 में दर्ज बैंक फ्रॉड मामले में, दिल्ली निवासी एसके त्यागी को मुख्य आरोपी बनाया गया था. उन पर जालसाजी, महत्वपूर्ण दस्तावेजों से छेड़छाड़ और बैंक खातों में हेरफेर कर लाखों रुपये गबन करने के आरोप लगे थे.

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जनवरी 2025 में, लगभग चार दशक तक चले इस मामले में 78 वर्षीय एसके त्यागी को राउज एवेन्यू कोर्ट ने दोषी ठहरने का निर्णय दिया. अब उन्हें दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट ने दोषी ठहराया है.

अदालत ने सुनाई ‘टिल राइजिंग ऑफ कोर्ट’ की सजा

राउज एवेन्यू कोर्ट ने एसके त्यागी की उम्र को ध्यान में रखते हुए ‘टिल राइजिंग ऑफ कोर्ट’ की सजा सुनाई. इस सजा का अर्थ है कि अब उन्हें अदालत के दिनभर के कार्यकाल तक हिरासत में रहना होगा, जो कि उनकी सजा की अवधि होगी.

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क्या है पूरा मामला?

दरअसल, एसके त्यागी और अन्य आरोपियों पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 1984-85 में पंजाब एंड सिंध बैंक को धोखा दिया था, जाली दस्तावेज और बहुमूल्य दस्तावेज बनाए, बैंक के खातों में फर्जी क्रेडिट डालने और बैंक के खातों को गलत तरीके से दिखाने के लिए चेक क्लियर करवाए.

इस मामले की जांच पूरी होने के बाद आरोपियों पर चार्जशीट लगाई गई. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति प्राप्त करना), धारा 467 (बहुमूल्य प्रतिभूतियों आदि की जालसाजी), धारा 477A (खातों में हेराफेरी) और धारा 120B (आपराधिक साजिश) के तहत एस.के. त्यागी और अन्य के खिलाफ आरोप लगाए गए.

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1986 में, सीबीआई ने दो अलग-अलग बैंक धोखाधड़ी की शिकायतों को मिलाकर यह मुकदमा दर्ज किया था. दो साल बाद, 1988 में, कई आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई और सालों बाद, दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने उन पर आरोप लगाए. उसी समय से, एसके त्यागी मुकदमा लड़ रहे हैं.

2019 में मामला दिल्ली की राउज एवेन्यू अदालत में भेजा गया. 29 जनवरी 2025 को एस.के. त्यागी ने राउज एवेन्यू कोर्ट में अपनी याचिका पर विचार किया, जिसमें उन्होंने कहा कि वह अपने खिलाफ लगे आरोपों को स्वीकार करना चाहते हैं. कोर्ट ने उन्हें इसके परिणाम बताया, लेकिन फिर भी उन्होंने दोषी ठहराने की इच्छा जताई. कोर्ट ने उनका बयान स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया.

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CBI ने अधिकतम सजा देने की मांग की

CBI के वकील ने अदालत से अधिकतम सजा देने की मांग की ताकि समाज में सख्त संदेश जाए और ऐसे अपराधों में संलिप्त होने वालों को हतोत्साहित किया जा सके. कोर्ट ने इस पर विचार करते हुए कहा कि अधिकतम सजा देना कठोर होगा क्योंकि दोषी ने पश्चाताप की भावना दिखाई है और उन्हें सुधार का उचित अवसर दिया जाना चाहिए ताकि वे देश का एक उपयोगी नागरिक बन सके.