पुणे. कहते हैं एक अच्छा टीचर अपने स्टूडेंट्स की जिंदगी में उतने बदलाव ला सकता है जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते हैं. एक ऐसे टीचर हैं जो सिर्फ एक बच्चे को रोजाना पढ़ाने के लिए पहाड़ पार कर स्कूल तक जाते हैं.
महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भोर, इस कस्बे में एक गांव है चंदर. पिछले 2 साल से यहां एक सरकारी टीचर रजनीकांत मेंढे बिना नागा एक 8 साल के बच्चे युवराज सिंह को पढ़ाने आते हैं. इस कहानी में अब तक कुछ भी खास नहीं है. खास है तो ये कि हर रोज रजनीकांत पहाड़ पारकर 12 किलोमीटर का रास्ता पारकर बच्चे को पढ़ाने आते हैं.


रजनीकांत सरकारी टीचर हैं. वो जिस चंदर गांव में पढ़ाने जाते हैं. उसमें करीब दर्जन भर झोपड़ियां हैं. जिनमें बेहद गरीब आधा सैकड़ा लोग रहते हैं. खास बात ये है कि इनमें से सिर्फ एक बच्चा ही स्कूल में पढ़ने आता है. खास बात ये है कि रजनीकांत को सिर्फ पहाड़ ही पार नहीं करना होता है. उनको स्कूल पहुंचने के बाद सबसे मुश्किल होती है बच्चे युवराज को खोजने की. क्योंकि बिना किसी साथी के वो स्कूल आने में अनिच्छा दिखाता है. कभी वो पेड़ों के पीछे छिप जाता है तो कभी किसी झोपड़ी में. रजनीकांत बेहद मशक्कत और समझा-बुझाकर युवराज को स्कूल लाते हैं औऱ उसे बेहद तल्लीनता से पढ़ाते हैं.
खास बात ये है कि ये इलाका सांपों की बहुतायत के लिए बदनाम है. इस इलाके में लोगों से ज्यादा आबादी सांपों की है. कभी कभी तो पढ़ाते-पढ़ाते सांप निकल आते हैं. कभी सांप स्कूल की टीनशेड की छत से नीचे गिर जाते हैं. इन सबके बावजूद रजनीकांत दो साल से बेहद धीरज और शिद्दत के साथ अपना काम करने में जुटे हैं. उनका कहना है कि पहले लगभग दर्जन भर बच्चे स्कूल में पढ़ते थे लेकिन वे सब बेहद दूर-दूर से आते थे. धीरे-धीरे सब स्कूल छोड़ते गए और अब सिर्फ युवराज बचा है.
पहाड़ पार करना, सांपों का कहर झेलना, बच्चे की शरारतों के साथ अपना काम बड़ी शिद्दत के साथ करना रजनीकांत को दूसरे टीचर्स से अलग करता है. वाकई, देश के हर स्कूल को अगर रजनीकांत मेंढे जैसा टीचर मिल जाए तो देश में होनहार छात्रों की पूरी नस्ल तैयार हो सकती है. रजनीकांत के इस जज्बे को बड़ा वाला सलाम, हर उस छात्र की तरफ से, जिसे पूरी जिंदगी एक अदद अच्छे टीचर की बड़ी शिद्दत से जरुरत महसूस हुई.