राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर उन्हे सादर नमन करता हूं। मैं अपनी विचार यात्रा को अपने बाल्यकाल के संस्मरणों से जोड़ते हुए स्वराज पर कुछ लिखना और बोलना चाहता हूं। छत्तीसगढ़ बेमेतरा जिले के एक प्रतिष्ठित परिवार से मैं रहा ,मेरे दादाजी स्वर्गीय गर्जन सिंह दुबे गांधीवादी विचारधारा के सहज सरल व्यक्ति थे, वे नगर के गणमान्य स्थापित साहित्यकार लेखक कवि थे. वह हमेशा हमें बापू के बारे में बताया करते थे प्रति शनिवार के दिन बापू जुड़े कोई एक प्रसंग को वो विस्तार से हम सभी बच्चों को बताते थे,हमारे शहर से 20 किलोमीटर दूर ग्राम जाता के गांधी आश्रम के बारे में सबसे पहले उन्हीं ने हमको बताया था, गांधी जी के असाधारण व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे साधारण से साधारण थे। उनकी दृष्टि में स्वराज की जो कल्पना थी वो बहुत व्यापक अर्थ लिये हुये थी।

देश में शासन और सत्ता का अधिकार प्राप्त करना ही बापू की दृष्टि में ही स्वराज्य था यह सोचना अनुचित मानता हूँ क्योंकि बापू केवल सत्ता के हस्तांतरण को स्वराज नहीं मानते थे, बापू की दृष्टि में स्वराज की बड़ी व्यापक, विस्तृत परिभाषा थी, बापू के स्वराज का मतलब व्यक्ति का स्वयं पर शासन और अनुशासन से था, व्यक्ति के अपनी इंद्रियों के नियंत्रण से था, इसलिए बापू के स्वराज का मतलब केवल देश की आजादी ही है, यह मानना उनके दृष्टिकोण को सीमित करने जैसा कृत्य मानता हूँ।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी एक असाधारण व्यक्तित्व थे, उनके जैसा व्यक्ति ही यह सोच रख सकता है कि व्यक्ति का व्यक्ति पर शासन उचित नहीं है, व्यक्ति का स्वयं पर शासन होना चाहिए, उनकी इसी सोच ने उन्हें विश्व में सम्मान दिलाया, उनकी महानता को सम्पूर्ण विश्व ने स्वीकारा इसका प्रमाण है कि पूज्य बापू का जन्म दिवस अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है, संयुक्त राष्ट्र संघ के लगभग 140 देशों ने इस प्रस्ताव को अपना समर्थन दिया, विश्व समुदाय की पूज्य बापू के प्रति यह भावना हम सब भारतीयों को गौरव का अनुभव कराती है।

यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस बात को समझाने का प्रयास किया कि हमें दूसरों पर शासन करने की इच्छा को नियंत्रित करना चाहिए साथ ही हमारा यह भी प्रयास हो कि हम पर किसी का शासन न हो हम नैतिक दृष्टि से इतने श्रेष्ठ हो कि हम स्वअनुशासित हो, बापू ने इसी भाव से लाखों लोगों को सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के लिए प्रेरित किया, यह भी हमारे लिये गर्व का विषय है कि शांति के लिये दिये जाने वाला प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित 5 महापुरूष मार्टिन लुथर किंग जूनियर, दलाई लामा, आंग सान सू की, नेल्सन मंडेला और अदोल्फो पेरेज एस्क्वीवेल (अर्जेंटीना) ने औपचारिक रूप से यह स्वीकार किया कि वे गांधी दर्शन से प्रभावित रहे, बापू के प्रति महान व्यक्तियों के यह विचार निश्चित ही हम भारतवासियों को सम्मान का बोध कराते हैं।

बापू के स्वराज को समझने के लिए हमें अपना हृदय उदार और विचारों की पवित्रता को अपनाना होगा, बापू जैसा बन पाना तो केवल एक कल्पना ही है, हम उनके जीवन से कुछ ही गुण सीख लें तो हमारा जीवन सफल हो सकता है, मुझे बापू के विषय में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट ऑइस्टिन का कहा हुआ कथन स्मरण में आता है जिसमें उन्होंने कहा था- ‘‘आने वाली पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करना मुश्किल होगा कि गांधी जैसा कोई व्यक्ति इस धरती पर चला करता था‘‘ अर्थात् बापू का जीवन जीतना सरल था, उतना कठिन भी था उन्होंने अपने जीवन का क्षण-क्षण मानवता को समर्पित किया, हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि हम पूज्य बापू के आदर्शाें का अनुसरण कर उसे आत्मसात करें और उनकी स्वराज की परिभाषा को समझने का प्रयास करें।

बापू के स्वराज को समझने के लिए उनके एक दिये गये भाषण के कुछ अंश मैं रखना चाहता हूँ, आजादी के पूर्व भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते हुए बापू ने कहा था ‘‘मैं एक ऐसे भारत के लिए काम करूंगा जिसमेें गरीब से गरीब भी यह महसूस करे कि यह देश उसका है और इसके निर्माण में उसकी जोरदार आवाज है, ऐसे भारत में जिसमें ऊँच-नीच वर्गों का भेद नहीं होगा, जिसमें सभी जातियां मेल-मिलाप के साथ रहेंगी, छुआछूत और नशेबाजी के लिए कोई स्थान नहीं होगा, स्त्रियों और पुरूषों के समान अधिकार होंगे, हम शेष दुनिया के साथ शांति-संबंध कायम करेंगे, न शोषण करेंगे और न शोषण होने देंगे, ऐसे तमाम हितों का जो लाखों भोले-भाले लोगों के हितों के विरूद्ध नहीं है, उदारता के साथ आदर किया जाएगा, यही है मेरे स्वप्नों का भारत‘‘, बापू के उद्बोधन के अंश से उनके स्वराज की कल्पना को समझा जा सकता है।

बापू का स्वराज था, समाज में मानवता की स्थापना हो, बापू का स्वराज था, व्यक्ति आत्म-नियंत्रित हो, बापू का स्वराज था, संस्कृति और सभ्यताओं में परस्पर सम्मान हो, बापू का स्वराज था, धर्म, पंथ के मध्य आपस में विरोध न हो, बापू का स्वराज था, रंग, रूप, धर्म जाति, क्षेत्र में समाज न बंटे और समाज के अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति तक शासन की सुविधाओं का लाभ पहुँचे और सभी नागरिकों को अपने ढंग से जीवन जीने का अधिकार मिले, यही बापू का स्वराज था।

बापू के स्वराज को समझने के लिये हमें उनके आदर्शों को आत्मसात करना होगा, उसे अपने व्यवहार में उतारना होगा तभी हम बापू के स्वराज को अनुभव कर पायेंगे और उनकी राम राज्य की कल्पना साकार हो सकेगी।

  • लेखक lalluram.com, न्यूज़ 24 एमपीसीजी में सीनियर एडवाइजर हैं.