जब हालात ने हर रास्ता बंद कर दिया, तब एक महिला ने सिलाई मशीन को अपना हथियार बनाया… और उस हथियार से एक ऐसा साम्राज्य खड़ा किया, जिसकी चमक आज ग्लोबल ब्रांड्स को भी चौंका रही है. यह कहानी है सरला आहूजा की जिन्होंने न सिर्फ खुद के लिए एक पहचान गढ़ी, बल्कि हजारों महिलाओं की किस्मत भी बदली.
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सरला आहूजा
दर्द, बिछड़ाव और संघर्ष से शुरू हुआ सफर
साल 1947, देश आज़ाद हो चुका था लेकिन सरला की जिंदगी जंजीरों में जकड़ गई थी. सिंध (अब पाकिस्तान) से भारत आने के बाद उनका परिवार दर-दर भटकने को मजबूर था. सिर्फ 10 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर, अपनी पहचान और अपना बचपन खो दिया.
दिल्ली पहुंचने के बाद हालात ऐसे थे कि पढ़ाई तो दूर, पेट भरना मुश्किल हो गया. मजबूरी में सरला ने कम उम्र में ही सिलाई फैक्ट्री में काम करना शुरू किया.
16 की उम्र में शादी, फिर घरेलू जिम्मेदारियां… ऐसा लगने लगा था जैसे उनका सपना अब यहीं दम तोड़ देगा. लेकिन सरला ने ठान लिया था, जो दुनिया कहती है “नहीं हो सकता”, वहीं से शुरू करना है.
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जब सिलाई मशीन ने बदली किस्मत
1974 में, उन्होंने अपने घर के एक छोटे से कमरे से “शाही एक्सपोर्ट्स” की शुरुआत की, सिर्फ एक सिलाई मशीन और 5,000 रुपये के साथ.
शुरुआत आसान नहीं थी. सीमित संसाधन, पड़ोसियों की शिकायतें, दिन-रात की मेहनत… लेकिन सरला ने हार नहीं मानी. धीरे-धीरे उनके बनाए कपड़े अमेरिका और यूरोप तक पहुंचने लगे.
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सिर्फ व्यापार नहीं, मिशन था महिलाओं को मजबूत बनाना
उस दौर में जब महिलाओं का बाहर निकलना भी सामाजिक पाबंदी थी, सरला झुग्गी-झोपड़ियों में गईं, महिलाओं को सिलाई सिखाई, उन्हें रोजगार दिया. उनके लिए ये बिजनेस नहीं, क्रांति थी.
आज शाही एक्सपोर्ट्स में 86,000 से ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं. 2007 में Gap Inc. के साथ साझेदारी करके उन्होंने 75,000 महिलाओं को ट्रेनिंग भी दिलवाई, कम्युनिकेशन, डिसीजन मेकिंग, टाइम मैनेजमेंट और फाइनेंशियल लिटरेसी जैसे स्किल्स के साथ.
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8,244 करोड़ की कंपनी, 51 फैक्ट्री, 1.15 लाख कर्मचारी
आज शाही एक्सपोर्ट्स भारत की सबसे बड़ी अपैरल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बन चुकी है. वॉलमार्ट, H&M, ज़ारा और GAP जैसे दिग्गज ब्रांड्स को कपड़े सप्लाई करने वाली यह कंपनी 8,244 करोड़ रुपये के टर्नओवर पर पहुंच गई है.
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प्रकृति के लिए भी आगे
सरला की सोच सिर्फ मुनाफे तक सीमित नहीं थी. उन्होंने कर्नाटक में दो सोलर पावर प्लांट और महाराष्ट्र में एक विंड एनर्जी प्लांट शुरू किया. पर्यावरण के लिए उनका योगदान भी उतना ही मजबूत रहा जितना सामाजिक मोर्चे पर.
आज भी है प्रेरणा, भले ही 88 की उम्र में रिटायर हो चुकी हों
सरला आहूजा ने दिखाया कि एक महिला अगर ठान ले, तो समाज की कोई भी पाबंदी उसके रास्ते में रुकावट नहीं बन सकती. उन्होंने साबित किया कि सपनों के लिए उम्र, हालात या पैसा, कुछ भी सीमा नहीं होती. उनकी कहानी आज हर उस लड़की के लिए मशाल बन चुकी है, जो सोचती है कि “मैं अकेली क्या कर सकती हूं?”
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