पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. ऐसा पहली बार हुआ है कि 22 माह के कार्यकाल में दूसरी बार सरपंच को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. पहले अनियमितता के आरोप में बर्खास्त किया गया था. कोर्ट से स्टे लेकर दोबारा कुर्सी संभाली तो इस बार पंचों ने अविश्वास प्रस्ताव पारित कर हटा दिया.

मामला मैनपुर जनपद के चर्चित ग्राम पंचायत कांडकेला का है. सरपंच नंद किशोर के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर आज मतदान हुआ. अमलीपदर तहसीलदार रमाकांत साहू पीठासीन अधिकारी के रूप में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान करवाया. जनपद से पंचायत इंस्पेक्टर आरके ध्रुवा व वरिष्ठ लेखापाल पतिराम साहू मौजूद थे. भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मतदान दोपहर को शुरू हुआ. सरपंच के विरूद्ध बने माहौल के मुताबिक ही परिणाम आया.

19 वार्ड पंच व सरपंच समेत 20 मतदान होने थे. सरपंच को कुर्सी बचाने केवल 6 मत की आवश्यकता थी. पीठासीन अधिकारी रमाकांत केवर्त ने बताया कि अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 15 मत और अविश्वास के खिलाफ 5 मत पड़े थे. उनमें से 1 रिजेक्ट हो गया. सरपंच के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव पारित हो गया. आगे की कार्यवाही के लिए रिपोर्ट एसडीएम मैनपुर को भेज दिया गया है.

योजनाओं में गड़बड़ी का लगा था आरोप
फरवरी 2020 को पंचायत कार्यकाल शुरू हुआ. पहली मर्तबा 16 माह के कार्यकाल में सरपंच, सचिव पर 26 लाख की योजनाओं में गड़बड़ी का आरोप लगा. मामले की जांच के लिए एक खेमा ने धुरूवागूड़ी पर चक्काजाम भी किया. मामले की जांच के बाद तत्कालीन एसडीम सूरज साहू ने तत्कालीन सचिव दुरूप सोनवानी को निलंबित कर सरपंच को अक्टूबर 2021 में बर्खास्त कर दिया. 8 माह पंच ने सरपंच की कुर्सी संभाली. इस बीच हाईकोर्ट से स्टे आर्डर लाकर सरपंच ने 30 जून 2022 को दोबारा कुर्सी पा लिया. बीते 6 माह के भीतर दोबारा सरपंच पर ग्राम विकास मद में गड़बड़ी, बगैर प्रस्ताव के लाखों के आहरण व पंचों की अनदेखी का आरोप लगाकर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, जो आज पारित हो गया.

चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला था, विरोधी खेमा बने रोड़ा
चालू सत्र में वर्तमान पंचायत बॉडी को कुल 30 माह हो रहे हैं, जिसमें 22 माह के भीतर दो बार सरपंच की कुर्सी गई. 2 सचिव निलंबित हुए. बीच के 8 माह के अल्पकाल के लिए प्रभारी सरपंच रही वार्ड नंबर 1 की पंच रामिन बाई कोमर्रा के कार्यकाल में भी निर्माण कार्यों में अनियमितता के आरोप लगे. जांच हुई पर रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं किया गया. इन सब के पीछे गांव में चुनाव के समय हुए गुटबाजी प्रमुख कारण है. 2000 मतदाता वाले पंचायत में नन्दकिशोर केवल 181 मतों से जीता था. मुकाबला त्रिकोणीय था. व्यवहार से सरपंच को भोला भाला कहा जाता है, जो विरोधी खेमे के रडार में बार-बार आ रहा है. बताया जाता है कि पहली बार धारा 40 में हुए बर्खास्त के पीछे कोई ठोस व प्रमाणिक आधार नहीं थे. आर्थिक आधार पर भी अनियमितता नहीं पाया गया था इसलिए वसूली का प्रकरण नहीं बना और कोर्ट ने आसानी से बर्खास्तगी पर स्टे दे दिया था.

गड़बड़ी हो रही तो अन्य जवाबदारों पर कार्यवाही क्यों नहीं
कांडकेला में अगर बार-बार अनियमितता पाई जा रही है, दो पंचायत सचिव को निलंबित भी किया गया है तो सवाल उठता है कि अन्य दोषियों पर कार्यवाही क्यों नहीं हुई. डीएससी भुगतान पैटर्न में भुगतान के पूर्व मूल्यांकन व सत्यापन करने वाले अफसर भी आर्थिक अनियमितता के भागीदार है. अब सम्पूर्ण जांच कर अन्य दोषियों पर भी कार्यवाही की मांग उठ रही है.