Sawan 2025: सावन मास जब भी आता है तो यूपी और बिहार में ‘कजरी’ (Kajari) का जिक्र होता है. जिक्र ही नहीं बल्कि सावन ‘कजरी’ (Kajri song) के बिना अधूरा सा लगता है. दरअसल, कजरी उत्तर प्रदेश और बिहार के भोजपुरी क्षेत्र का एक लोकगीत और नृत्य है. जिसे सावन के महीने में गाया जाता है.
कजरी (Kajri Geet), पति-पत्नी के बीच खूबसूरत प्रेम संबंधों को लोगों तक पहुंचाने का एक विधा-जरिया माना जाता है. इसमें लोकगीत गाए जाते हैं. जिसमें ननद-भौजाई, देवर-भाभी की पवित्र रिश्ते की बानगी बयां करनी हो या फिर सास-बहू के रिश्ते की नटखटता को बताना हो. इन सब विधाओं को आम जनमानस तक पहुंचाने का काम कजरी करती है.
150 साल पहले का इतिहास
कजरी के दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना के साथ कजरी गाती हैं. बताया जाता है कि लगभग 150 साल पहले यूपी-बिहार के लोग मॉरिशस, फिजी, बांम्बे, सुरीनाम जैसे अन्य देशों में तो उनकी पत्नी अपने पतियों की याद में, उनकी याद में, विरह में रो-रोकर एक गीत गाती थी, जिसे कजली या कजरी कहा गया.
एक मान्यता ये भी है…
एक किंवदंती और है कि एक महिला का नाम कजरी था. कई सौ साल पहले जब उसके पति दूर देश चले गए थे, तो वह ‘कजमली देवी’ के चरण में बैठकर पति के विरह में रो-रोकर गीत गाती थी. वहीं इस गीत का नाम कजली पड़ गया. हालांकि कुछ लोग यह भी कहते हैं कि कजरी बारिश में गायी जाती है, क्योंकि जब मानसून आता है तो सब का मन रसमय हो जाता है. मन में प्रेम जागता है.

रिश्तों का आईना ही कजरी
हालांकि कजरी गीत कई प्रकार के होते हैं… जिसमें जब पति परदेस से घर आते हैं तो पत्नियां खुशी में गाती हैं. तो इसे भी कजरी कहा गया है. कजरी की अनेक परिभाषा हैं. लेकिन इन सब में एक परिभाषा है कि नवविवाहित के सम्बंध और रिश्तों का आईना ही कजरी है.
सावन के महीने में गाया जाता है कजरी
लेकिन खास तौर पर यह बारिश के मौसम का लोकगीत है. इसे सावन के महीने में गाया जाता है. यह अर्ध-शास्त्रीय गायन की विधा के रूप में भी विकसित हुआ है. कजरी गीतों में वर्षा ऋतु का वर्णन विरह-वर्णन एवं राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन अधिकतर मिलता है. कजरी की प्रकृति क्षुद्र है. इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है.
कान्तित के राजा की लड़की का नाम कजरी था
आज कजरी के वर्ण्य-विषय काफ़ी विस्तृत हैं, लेकिन कजरी गायन की शुरुआत देवी गीत से ही होता है. कुछ लोगों का मानना है कि कान्तित के राजा की लड़की का नाम कजरी था. वो अपने पति से बेहद प्यार करती थी. जिसे उस समय उससे अलग कर दिया गया था. उनकी याद में जो वो प्यार के गीत गाती थी. उसे मिर्जापुर के लोग कजरी के नाम से याद करते हैं. वे उन्हीं की याद में कजरी महोत्सव मनाते हैं. हिन्दू धर्मग्रंथों में श्रावण मास का विशेष महत्त्व है.

कजरी की ये विधाएं भी खूब गायी जाती है
विरह वेदना के वर्णन के अलावा श्रृंगार कजरी, बारहमासा कजरी चौमासा कजरी, ननद भाभी और सास के रिश्ते में छेड़छाड़ को लेकर बनी कजरी भी खूब प्रचलन में है. सावन में इसे खूब गाया जाता है.
मिर्ज़ापुर से हुई कजरी की उत्पत्ति
कजरी लोकगीत की शुरुआत उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले से मानी जाती है. कजरी को बाद में बनारस घराना के संगीतकारों द्वारा शास्त्रीय दायरे में लाया गया. बनारस घराना के संगीतकारों जैसे रसूलन बाई, सिद्धेश्वरी देवी और गिरिजा देवी द्वारा इसे बनाए रखा गया और शास्त्रीय दायरे में लाया गया.
कजरी ‘लोकगीतों की रानी’
करीब ढ़ेड़ दशक पहले तक पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में कजरी की खासी धूम हुआ करती थी, लेकिन अब इसको जानने वाले लोग गिने चुने रह गये हैं. सावन के शुरूआत से ही कजरी के बोल और झूले गांव-गांव की पहचान बन जाते थे. दिन ढ़लने के बाद गांव में कजरी गायन की मंडलियां जुटती थीं. देररात तक महिलाओं का समूह में कजरी का दौर चलता था. गांवों में आज भी ये लोकविधा आपको आसानी से सावन में देखने को मिल जाएगी. ‘लोकगीतों की रानी’ कजरी सिर्फ गाने भर ही नहीं है बल्कि यह सावन की सुन्दरता और उल्लास को दिखाती है.
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