सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ द्वारा एक ऐतिहासिक आदेश पारित किया गया है. इस आदेश में देशभर के वन प्रबंधन, टाइगर रिज़र्व संचालन और मानव-वन्यजीव संघर्ष से प्रभावित परिवारों के लिए नई दिशा तय कर दी है. आदेश में कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए हैं, जिनमें तत्काल प्रभाव से लागू किए जाने योग्य प्रावधान भी शामिल हैं. साथ ही कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसी घटनाओं में अगर किसी व्यक्ति की मौत होती है, तो राज्यों को अनिवार्य रूप से 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देनी ही होगी. यह मुआवजा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सीएसएस-आईडब्ल्यूडीएच योजना के तहत तय नियमों के मुताबिक होगा.

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह और ए.एस. चंदुरकर की पीठ ने टाइगर सफारी, बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन और संवेदनशील बाघ परिदृश्यों की सुरक्षा को लेकर कई दिशानिर्देश जारी किए. कोर्ट ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुए बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण और पेड़ कटाई के मुद्दे पर गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को स्वीकारते हुए राज्यों को समय-सीमा में पालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि तेजी से राहत दिलाने के लिए मानववन्यजीव संघर्ष को प्राकृतिक आपदा घोषित करने पर विचार होना चाहिए, जैसा कि उत्तर प्रदेश पहले ही कर चुका है.

6 माह में मॉडल गाइडलाइन तैयार करने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को 6 महीने के अंदर मानववन्यजीव संघर्ष पर मॉडल दिशानिर्देश तैयार करने के लिए कहा है. राज्यों को भी इसे 6 महीने में लागू करना होगा. कोर्ट ने कहा कि सभी राज्यों में मुआवजा प्रणाली सुलभ, सरल और समयबद्ध होनी चाहिए. साथ ही वन, राजस्व, पुलिस, आपदा प्रबंधन और पंचायती राज विभाग के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मुआवजा आसान, समावेशी और समयबद्ध होना चाहिए. पीठ ने विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें स्वीकार करते हुए कहा है कि प्रत्येक राज्य को मुआवजा प्रणाली स्थापित करनी होगी जो कि सुचारू और सुलभ हो.

जिम कॉर्बेट में अवैध निर्माण ढहाने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुए नुकसान की भरपाई के लिए तुरंत पुनर्स्थापना उपाय अपनाने का निर्देश दिया. तीन माह में सभी अवैध संरचनाओं को गिराने और अवैध पेड़ कटाई की भरपाई करने का आदेश दिया गया है। सीईसी पूरी पारिस्थितिक पुनर्स्थापना योजना की निगरानी करेगा. पीठ ने राज्य सरकार को अवैध रूप से काटे गए पेड़ों की भरपाई के लिए उपाय करने का निर्देश दिया.

पर्यटन बढ़ाना है तो ईको टूरिज्म हो- CJI

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि पर्यटन को बढ़ावा देना है, तो यह इको-टूरिज्म होना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमने फैसले में अपने परिवारों से दूर कोर क्षेत्र में काम करने वालों के साथ विशेष व्यवहार करने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर या सघन टाइगर प्रवास वाले क्षेत्रों में टाइगर सफारी की अनुमति नहीं दी जा सकती. टाइगर सफारी सिर्फ बफर जोन की बंजर या गैर-वन भूमि पर ही स्थापित की जा सकेगी, वह भी तब जब वह बाघ गलियारे में न आती हो. सफारी के साथ रिस्क्यू और रिहैबिलिटेशन सेंटर अनिवार्य होगा.

बफर जोन में इन गतिविधियों पर रहेगी रोक

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि बफर और फ्रिंज क्षेत्रों में कुछ गतिविधियों पर रोक लगा दी है.पीठ ने विशेषज्ञ समिति द्वारा तय की गई निषिद्ध गतिविधियों की सूची को मंजूरी दी. प्रमुख गतिविधियां जिस पर रोक रहेगी जैसे वाणिज्यिक खनन, आरा मिलें, प्रदूषणकारी उद्योग, वाणिज्यिक जलाऊ लकड़ी का उपयोग, प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएं, खतरनाक पदार्थ का उत्पादन, कम उड़ान वाले विमान और पर्यटन विमान. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नियंत्रित गतिविधियां भी तय की है, जिसमें कहत होटल, पानी का उपयोग, सड़क चौड़ीकरण और रात में वाहनों की आवाजाही, के लिए सख्त वन्यजीव सुरक्षा उपायों का पालन करना होगा और ये बाघ संरक्षण योजनाओं के अनुरूप होना चाहिए.

रिसॉर्ट्स प्रतिबंधित, रात के पर्यटन पर प्रतिबंध, शांत क्षेत्र अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने टाइगर रिजर्व के पास पर्यटन के लिए विशिष्ट निर्देश जारी किए. इसके तहत पर्यावरण के अनुकूल रिसॉर्ट्स को केवल बफर्स ​​में ही अनुमति दी जाएगी और वाहनों की वहन क्षमता लागू की जाए. रात्रि पर्यटन पर पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगी. आपातकालीन वाहनों को छोड़कर, मुख्य क्षेत्रों से गुजरने वाली सड़कें शाम से सुबह तक बंद रखी जाएं. इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि ईएसजेड सहित पूरा टाइगर रिजर्व तीन महीने के भीतर ध्वनि प्रदूषण नियमों के तहत साइलेंस जोन के रूप में अधिसूचित किया जाए.

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