दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court)ने गुरुवार को फीस न चुकाने के मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि छात्रों और उनके अभिभावकों पर दबाव डालने के लिए बाउंसरों (bouncers) की नियुक्ति एक गलत प्रथा है. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कोई भी स्कूल फीस वसूली के लिए इस प्रकार के अमानवीय और अपमानजनक तरीकों का सहारा नहीं ले सकता.
हाईकोर्ट ने डीपीएस द्वारका के मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि फीस के लिए दबाव बनाना मानसिक उत्पीड़न के समान है. न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने स्पष्ट किया कि स्कूलों को अपनी सेवाओं के लिए फीस लेनी चाहिए, लेकिन उन्हें पूरी तरह से वाणिज्यिक दृष्टिकोण से नहीं चलाना चाहिए. पीठ ने छात्रों के अधिकारों और उनके सम्मान की रक्षा के महत्व पर जोर दिया.
दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) द्वारका ने उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि उसने फीस न चुकाने के कारण 31 छात्रों के निलंबन के अपने निर्णय को वापस ले लिया है. न्यायालय ने स्कूल के बुनियादी ढांचे को बनाए रखने, कर्मचारियों को वेतन देने और एक अनुकूल शिक्षण वातावरण सुनिश्चित करने के लिए उचित शुल्क वसूलने के अधिकार को मान्यता दी. इसके साथ ही, न्यायालय ने छात्रों के प्रति संस्थान के नैतिक दायित्वों को भी महत्वपूर्ण बताया.
मनमानी नहीं रुकी
डीपीएस द्वारका ने फीस जमा न कराने के कारण 40 छात्रों को सेक्शन आवंटित नहीं किया और उन्हें व्हाट्सएप ग्रुप में भी शामिल नहीं किया गया. लगभग बीस छात्रों को 20 मार्च से लाइब्रेरी में बैठने के लिए कहा गया था, और एक अप्रैल से नए सत्र में ऐसे छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई. शिक्षा निदेशालय की टीम ने 4 अप्रैल को डीएम स्कूल का दौरा किया, जहां अभिभावकों की शिकायतें सही पाई गईं. इसके बावजूद, छात्रों को कोई राहत नहीं मिली, जिसके परिणामस्वरूप अभिभावकों को उच्च न्यायालय का सहारा लेना पड़ा.
शिक्षा विधेयक में अभिभावकों की मांगें शामिल की जाएं
अभिभावक निजी स्कूलों की फीस में वृद्धि के खिलाफ लगातार आवाज उठा रहे हैं. इस मुद्दे पर विभिन्न संगठन दिल्ली स्कूल शिक्षा विधेयक 2025 में अभिभावकों की मांगों को शामिल करने के लिए मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री को पत्र लिखने की योजना बना रहे हैं. मॉडल टाउन अभिभावक संघ के प्रतिनिधि नितिन गुप्ता ने बताया कि उनकी प्रमुख मांग है कि विधेयक को विधानसभा में पेश करने से पहले सार्वजनिक किया जाए. इसके अलावा, स्कूल प्रबंधन समितियों (एसएमसी) में अभिभावकों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए, जिसमें प्रत्येक एसएमसी में कम से कम पांच निर्वाचित अभिभावकों को पूरे मतदान अधिकारों के साथ शामिल किया जाए. इन अभिभावकों को फीस बढ़ोतरी के प्रस्तावों को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार भी दिया जाना चाहिए. इस प्रकार की कुल 15 मांगें अभिभावकों द्वारा प्रस्तुत की गई हैं.
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