दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High court) ने राजद के अध्यक्ष और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव(Lalu Prasad Yadav) की याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने ‘जमीन के बदले नौकरी’ घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी. इस मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा की गई थी. लालू यादव की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उच्च न्यायालय में दायर याचिका में कहा था कि इस मामले में प्राथमिकी और जांच प्रक्रिया कानूनी रूप से उचित नहीं है.
याचिका में यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि यदि प्राथमिकी और जांच में कोई वैधता नहीं है, तो आरोपपत्र कानूनी रूप से स्थायी नहीं हो सकता. इस मामले में, सीबीआई ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत पूर्व केंद्रीय मंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक पूर्व मंजूरी प्राप्त करने में असफलता दिखाई है, जो कि कानून की अनिवार्य आवश्यकता है.
सिब्बल ने बताया कि सत्र अदालत 2 जून को आरोपों पर सुनवाई करेगी. सीबीआई की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता डी. पी. सिंह ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार विरोधी कानून की धारा 19 के तहत आवश्यक मंजूरी प्राप्त की जा चुकी है.
29 मई को राउज एवेन्यू अदालत ने भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (IRCTC) होटल भ्रष्टाचार मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. इस मामले में पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, उनके बेटे तेजस्वी यादव और अन्य आरोपी शामिल हैं. विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने इस मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई के लिए निर्धारित की है.
सीबीआई के अधिवक्ताओं ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि लालू प्रसाद और अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं. यह मामला उस अवधि से संबंधित है जब लालू प्रसाद 2004 से 2009 तक रेल मंत्री थे. सीबीआई का आरोप है कि लालू प्रसाद और उनके परिवार के सदस्य आईआरसीटीसी के दो होटलों के रखरखाव के ठेके एक निजी कंपनी को देने में भ्रष्टाचार और साजिश में संलिप्त थे.
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