दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने पुलिस को निर्देश दिया कि यौन कर्मियों के साथ सम्मान के साथ पेश आएं. उनके साथ गाली-गलौज और शारीरिक या मौखिक दुर्व्यवहार ना किया जाए. शीर्ष अदालत ने मीडिया से भी कहा कि उन्हें यौन कर्मियों के चित्र प्रकाशित नहीं करने चाहिए और इन्हें सम्मान की निगाह से देखना चाहिए.

बता दें कि, कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि, मानवीय सम्मान और गौरव के संरक्षण का लाभ यौनकर्मियों को भी मिलना चाहिए, क्योंकि संविधान ने इन्हें भी वहीं अधिकार दिए हैं जो किसी सामान्य व्यक्ति को हासिल हैं. साथ ही शीर्ष अदालत ने मीडिया की लापरवाही पर कहा कि बचाव ऑपरेशन के दौरान जब उन्हें बचाया जाता है तो मीडिया उनकी पहचान उजागर कर देता है.

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अदालत ने कहा मीडिया ग्राहक/ मुवक्किल के साथ यौन कर्मियों के चित्र प्रकाशित करता है तो उस पर आईपीसी की धारा-354 (आंखों से यौन सुख लेने का अपराध) के तहत कार्रवाई होनी चाहिए. कोर्ट ने प्रेस कौंसिल को इस बारे में उचित दिशा-निर्देश बनाने का भी आदेश दिया है. न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ ने ये निर्देश संविधान के अनुच्छेद- 142 के तहत एक कमेटी की सिफारिश को स्वीकार करते हुए दिए है. यह कमेटी शीर्ष अदालत ने यौन कर्मियों के अधिकारों का अध्ययन करने के लिए बनाई बनाई थी.

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अदालत ने आगे कहा कि, इसमें संदेह नहीं कि पेशा चाहे कोई भी हो, देश के हर व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद- 21 के तहत गौरवपूर्ण जीवन जीने का अधिकार है. देश के सभी को संविधान ने अधिकार दिए हैं और इस बात को उन प्राधिकारियों को ध्यान में रखना चाहिए, जिन्हें अनैतिक व्यापार रोकने के लिए नियुक्त किया गया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह आदेश तब तक प्रभावी रहेंगे जब तक सरकार इस बारे में उचित कानून नहीं बना लेती.