ज्योतिष शास्त्र में शनि की अहम् भूमिका है. नवग्रहों में शनि को न्यायाधिपति माना गया है. ज्योतिष फ़लकथन में शनि की स्थिति व दृष्टि बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है. किसी भी जातक की जन्मपत्रिका का परीक्षण कर उसके भविष्य के बारे में संकेत करने के लिए जन्मपत्रिका में शनि के प्रभाव का आंकलन करना अति-आवश्यक है. आज शनि प्रदोष शनिदेव की इस वंदना को सुनने से कष्ट संकट व शनि साढ़ेसाती से छुटकारा मिलता है.
शनि स्वभाव से क्रूर व अलगाववादी ग्रह हैं. जब ये जन्मपत्रिका में किसी अशुभ भाव के स्वामी बनकर किसी शुभ भाव में स्थित होते हैं तब जातक के अशुभ फ़ल में अतीव वृद्धि कर देते हैं. शनि मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं. शनि एक राशि में ढाई वर्ष तक रहते हैं.
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ज्योतिर्विद् पं. हेमंत रिछारिया के अनुसार शनि दु:ख के स्वामी भी है अत: शनि के शुभ होने पर व्यक्ति सुखी और अशुभ होने पर सदैव दु:खी व चिंतित रहता है. शुभ शनि अपनी साढ़ेसाती व ढैय्या में जातक को आशातीत लाभ प्रदान करते हैं वहीं अशुभ शनि अपनी साढ़ेसाती व ढैय्या में जातक को घोर व असहनीय कष्ट देते हैं.
वर्ष 2020 में शनि की साढ़ेसाती से प्रभावित होने वाली राशियां
– वर्ष 2020 में धनु, मकर एवं कुंभ राशि वाले जातक वर्ष पर्यंत शनि की साढ़ेसाती से प्रभावित रहेंगे.
वर्ष 2020 में शनि की ढैय्या से प्रभावित होने वाली राशियां-
– वर्ष 2020 में मिथुन एवं तुला राशि वाले जातक वर्ष पर्यन्त शनि की ढैय्या से प्रभावित रहेंगे.
शनि के अशुभ प्रभाव को कम करने हेतु आवश्यक उपाय-
- प्रत्येक शनिवार छाया दान करें. (लोहे की कटोरी में तेल भरकर उसमें अपना मुख देखकर उस तेल को कटोरी सहित दान करें)
- सात शनिवार 7 बादाम शनि मंदिर में चढ़ाएं.
- शनिवार को लंगर या भंडारे में कोयला दान करें.
- प्रत्येक शनिवार सवा किलो काले चने, सवा किलो उड़द, काली मिर्च, कोयला, चमड़ा, लोहा काले, वस्त्र में लपेटकर दान करें.
- प्रत्येक शनिवार चींटियों को शकर मिश्रित आटा डालें.
- प्रतिदिन पीपल में जल चढ़ाएं.
- प्रतिदिन स्नान के जल में सौंफ़, खस, सुरमा व काले तिल डालकर स्नान करें.
- प्रतिदिन “ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:” का जाप करें.
- प्रतिदिन दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें.
- साढ़ेसाती व ढैय्या की अवधि में काले व नीले वस्त्र धारण ना करें.
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