कुंभ क्षेत्र प्रयागराज. उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामि अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी की उपस्थिति में संवत् २०८१ माघ कृष्ण द्वितिया 15 जनवरी बुधवार को परम धर्म संसद में प्रश्नोत्तर काल के बाद विचार हुआ कि हिंदू शब्द को परिभाषित करने के पीछे का कारण भ्रांति निर्मूलन है. भारत के विभाजन के समय हिन्दू शब्द के दुष्प्रचार से कई लोगों ने अपने को हिन्दू न गिनवाकर आर्य आदि गिनवाया. फलस्वरूप हिन्दुओं की संख्या कम होने पर पंजाब का वह प्रान्त जो हिन्दुस्थान में रहना चाहिए था, पाकिस्तान में चला गया. अतः हिंदू शब्द को आधुनिक या विदेशियों की देन समझने वालों के आक्षेप या भ्रांति का निरसन करना अत्यावश्यक है. हिंदू शब्द प्राचीन ही नहीं वेदों को भी मान्य है. वेदों के बाद स्मृतियों, पुराणों और तंत्र साहित्यमें भी परिलक्षित-परिभाषित हुआ है.
शंकराचार्य महाराज ने कहा कि समस्त सनातन वैदिक हिन्दू आर्य परमधर्म के मानने वालों के लिए ये परमधर्मादेश जारी करती है कि हिन्दू शब्द वैदिक है और वेदों से ही व्युत्पन्न हुआ है. एक मात्र हिन्द संस्कृति में ही यज्ञ यागादि सर्वविध इष्टापूर्त सम्बन्धी अनुष्ठानों में, श्राद्धादि पितृकार्य में, आयुर्वेदिक उपचारों में, सवत्सा गाय का वत्सपान अवशिष्ट दूध ही ग्राह्य माना जाता है. अन्य लोग तो केवल दूध मात्र के इच्छुक हैं. फिर चाहे वह पशु को डरा-धमका कर या मशीनों के द्वारा ही बलात क्यों न सूता गया हो. ‘हिङ्कृण्वती दुहाम्’ शब्दों में वत्सदर्शनसंजातहर्षा-अतएव प्रसन्नता सूचक ‘हिं हिं’ शब्द करती हुई गाय का दोहन करने वाली हिन्द जाति का निर्वचन पूर्वक हिं-दु शब्द बना है. हिंकार करती गाय को दुहने वाली जाति हिन्दु है.
इसे भी पढ़ें : Mahakumbh 2025 : महाकुंभ में कला, संस्कृति और विरासत का भव्य संगम, प्रख्यात गायक शंकर महादेवन देंगे प्रस्तुति
हिङ्कृण्वती दुहामश्विभ्याम् (अथर्व० ६।१०।५) स्मृति के अनुसार हिंसा से जो दुःखित होता है, सदाचार के लिए जो तत्पर है ऐसी गाय, वेद और प्रतिमा की सेवा करने वाले वर्णाश्रमधर्मी हिन्दु हैं. अतः हिन्दू वह है जो हिंसा से दूर रहे, सदाचार में तत्पर हो, गो सेवक, वेदनिष्ठ, मूर्तिपूजा में श्रद्धान्वित और वर्णाश्रम पालक हो.
‘हिंसया दूयते यश्च सदाचरण तत्पर’ गो-वेद-प्रतिमा-सेवी स हिन्दुमुखवर्णभाक्वृ. द्ध- स्मृति तैत्तिरीय उपनिषद् की शिक्षावल्ली १.११ आधारित सनातन वैदिक हिन्दू धर्म की आचार संहिता, जिसमें आचार्य स्नातक को माता-पिता-आचार्य–अतिथि को देव मानकर उनकी सेवा करने का, आचार्य के अनिंदनीय कार्य का अनुसरण करने का और वर्णोचित कन्या का पाणिग्रहण कर गृहस्थ धर्म में प्रवेश कर प्रजातंतु के संवाहक बनने का, यज्ञ-यज्ञादिसे देवताओं को, श्राद्धादि से पितरों को, वेदाध्ययन/अध्यापन से ऋषियोंके प्रति कर्तव्य का निर्वहन करने का उपदेश करते हैं. यह हिंदुओं की आचार संहिता का मूल है. हिन्दुओं को इसी अनुसार वेद, स्मृति और सदाचार के अनुसार आचरण करना चाहिए.
इसे भी पढ़ें : Mahakumbh 2025 : दस देशों का प्रतिनिधिमंडल पहुंचा महाकुंभ, चंदन लगाकर किया गया स्वागत, विदेशी मेहमानों ने लगाई संगम में डुबकी
हिन्दू धर्म के दो रूप हैं -सामान्य और विशेष. हर हिन्दू को सामान्य धर्मों का पालन करने के साथ-साथ अपना नाम, अपने पिता, दादा आदि का नाम, आस्पद, गोत्र, प्रवर, वेद, शाखा, शिखा, सूत्र, कुलदेवी-देवता आदि की जानकारी होना, कम से कम (कण्ठी या जनेऊ) एक संस्कार करवाना, तिलक चोटी धारण करना और हिन्दू तिथि से मनाए जाने वाले अपने पर्व/उत्सव ही मनाया जाना अनिवार्य है.
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें