मध्यप्रदेश में शीतला सप्तमी का पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। शीतला सप्तमी पर्व प्रदेश के अलीराजपुर, देपालपुर और धार जिले में देर रात से ही महिलाएं शीतला मंदिरों में पहुंची थीं। एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) मेवे, मिठाई, पूरी, दाल-भात आदि का देवी को भोग लगाकर पूजा की और मंदिर की दीवारों पर हाथ के पंजे से शुभ निशान बनाएं। नीम की पत्ती चढ़ाकर महिलाओं ने परिवार के सुख समृद्धि और स्वस्थ्य जीवन की कामना की। शीतला माता को चावल और घी मिलाकर चढ़ाने से देवी प्रसन्न होती हैं। इससे आपके घर में हमेशा बरक्कत होगी। शीतला सप्तमी पर ठंडा एक दिन पहले बना भोजन चढ़ाए जाने का एक वैज्ञानिक कारण भी है। माना जाता है गर्मियों में ठंडा खाना खाने से पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है। इससे शरीर का तापमान भी नियंत्रित रहता है।
मान्यता है कि शीतला देवी की पूजा-अर्चना से माता, चेचक, खसरा आदि बीमारी दूर हो जाती है। माता शीतला को शक्ति के दो स्वरुप देवी दुर्गा और देवी पार्वती के रूप में पूजी जाती है। महिलाओं ने पूजा अर्चना कर परिवार और खासकर बच्चों के सुखी और स्वस्थ्य जीवन की कामना की।
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सुनील जोशी अलीराजपुर। जिले में शीतला सप्तमी का पर्व पर शीतला माता मंदिर में देर रात से ही पूजन के लिए महिलाएं मंदिर पहुंची। मंदिर में देवी की पूजा के लिए दोपहर तक श्रुद्धालु महिलाओं की लंबी कतार लगी रही। जिले के राक्सा जोबट में डोही नदी स्थित देवी मंदिर पर महिलाओं की भीड़ दिनभर लगी रही।
यत्नेश सेन, देपालपुर। देपालपुर के वार्ड नंबर 2 में स्थित शीतला माता मंदिर में रात 12.10 बजे से दोपहर तक पूजा जारी रही। पार्षद रवि चौरसिया पिछले 16 सालों से शीतला सप्तमी के अवसर लाइट और पीने के पानी सहित बैठने की व्यवस्था करते आ रहे है। यहां पर महिलाओं द्वारा विधि-विधान से देवी शीतला की पूजा की गई। इस दौरान महिलाओं को शीतला सप्तमी की कथा भी सुनाई गई।
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रेणु अग्रवाल धार। शीतल सप्तमी पर देवी मंदिर में पहुंचकर महिलाओं ने माता को पूरी, मीठे पुए, राबड़ी, चावल, रोटी, लापसी, खाजे नारियल और जल चढ़ाकर परिक्रमा की। जिसके बाद हल्दी के थापे लगाकर कहानी सुनाई गई। चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी का पर्व मना गया। महिलाओं ने माता शीतला की पूजा कर परिवार में सुख शांति और समृद्धि की कामना की। महिलाओं ने बताया कि आज से ही गर्मी की शुरुआत हो जाती है और आज बासी भोजन माता जी को अर्पित करने और आज के बाद बासी भोजन नहीं खाने की परंपरा है।
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