श्रावण मास : बेल पत्र का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. सावन माह में बेल पत्र चढ़ाने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. तीन दलों से अधिक दलों वाले बेल पत्र दुलर्भ से ही मिलते है. बेल का पेड़ शिव का स्वरूप है, इसे श्री वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है. मां लक्ष्मी के रूपरूप में यह वृक्ष होता है. बेलपत्र से भोले नाथ प्रसन्न होते है. बेल वृक्ष की जो भक्त सेवा करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. बिल्व पत्र चार प्रकार के होते हैं.

अखंड बिल्व पत्र, तीन पत्तियों के बिल्व पत्र, 6 से 21 पत्तियों के बिल्व पत्र और श्वेत बिल्व पत्र. इन सभी बिल्व पत्रों का अपना-अपना आध्यात्मिक महत्व भी है. अखंड बिल्व पत्र का वर्णन बिल्वाष्टक में है. यह अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है. मान्यता है कि 3 से ज्यादा पत्ते वाली बेलपत्र दुर्लभ होती है यह बहुत अधिक शुभ भी मानी जाती है. साथ ही कभी इनके दलों की संख्या 7 या उससे ऊपर है तो अति दुर्लभ गिनती में आती है.

ऐसे पेड़ भारत में लाखों में एक पाए जाते हैं. ये पेड़ ज्यादातर नेपाल में मिलते हैं. भगवान शंकर के त्रिनेत्र और त्रिशूल के साथ ही 3 लोकों के स्वरुप बेलपत्र के 12 दलों वाली पत्तियों को बारह ज्योतिर्लिंगों जैसा महत्व दिया जाता है. मंडला जिला मुख्यालय से करीब 7 किमी दूर वर्षों पुराना एक ऐसा ही पेड़ है, जिसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. इस पेड़ के दर्शन करने और इसकी पत्तियों की चाह में शिव भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं. मंडला जिले के हिरदेनगर की शिव वाटिका में जो बेल पत्र पाए जाते हैं, इन बेल पत्र में पांच और इक्कीस पत्तियां तक होती हैं. इस वाटिका में एक पेड़ है जिसकी उम्र करीब 50 साल है और इसी पेड़ और उसके आसपास के पेड़ों में बेलपत्र लगती है.

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