राकेश चतुर्वेदी, भोपाल। यशोदानंदन श्रीकृष्ण पढ़ाई के लिए मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी आए थे। जहां उन्होंने 64 विद्या और 16 कलाओं का अध्ययन किया तो मध्य प्रदेश की धरती पर ही सुदामा ने श्रीकृष्ण के हिस्से के चने छुपकर खाए थे। प्रदेश की धरती पर आज भी श्रीकृष्ण-सुदामा की लकड़ियों की गठरियां रखी हुई हैं तो इसी धरती पर कान्हा से योगेश्वर बने कर्मयोगी कान्हा को सुदर्शन भी इसी माटी पर प्राप्त हुआ। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर पढ़िए हमारी ये खास रिपोर्ट…

महाकाल की नगरी उज्जैन स्थित महाप्रभु सांदीपनि का ये वहीं आश्रम है, जहां श्रीकृष्ण विद्याअर्जन के लिए आए थे। इसी स्थान पर बैठकर कान्हा ने 64 दिन में सभी विद्याएं अर्जित कीं। इन 64 दिन में 64 विद्या, 16 कलाओं के साथ चारों वेद, 6 शास्त्र, 18 पुरानों का अध्ययन किया तो गीता ज्ञान अर्जित किया। इस आश्रम में नारायण बाल स्वरूप में अपने भ्राता बलराम और परम सखा सुदामा के साथ विराजित हैं। ये तीनों शिष्य महाप्रभु सांदीपनिजी के सामने आलती-पालती की मुद्रा में बैठै हैं। सामने गुरुवर हैं और आसन पर बैठे तीनों शिक्ष्य के हाथों में कलम और तख्ती है। महर्षि सांदीपति कुलोत्पन्न पं. रूपम व्यासजी का कहना है कि सीएम डॉ मोहन यादव की पहल पर अब यहां वैदिक गुरुकुल खुलने जा रहा है। यहां अब विद्यार्थियों को भी 64 विद्या और 16 कलाओं की शिक्षा दी जाएगी।

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अब जानिए स्वर्णगिरी पर्वत के बारे में

गुरुमाता की आज्ञा ये कृष्ण अपने सखा सुदामा के साथ यहां लकड़ियां बीनने पहुंचे थे। इस पर्वत के पत्थर आज भी अपने आराध्य का ध्वनिवंदन करते हैं। जिन पत्थरों पर कृष्णरज पड़ी उनकी ध्वनि बदल गई है। एक पत्थर से दूसरे पत्थर को ठोकने पर इन पत्थरों से घंटी जैसी आवाज आती है। इस स्वर्णागिरी पर्वत पर मुरलीधर की अनूठी अनुभूति का आभाष होता है। यह पर्वत उज्जैन ने 23 किमी दूर स्थित है।

आज भी मौजूद हैं कृष्ण-सुदामा की गट्ठर की लड़कियां

उज्जैन से करीब 22 किलोमीटर दूर नारायणा धाम स्थित है। स्वर्णागिरी पर्वत से लकड़ियां लेकर श्रीकृष्ण और सुदामा संदापिनी आश्रम की ओर वापस जा रहे थे तो रास्ते में तेज बारिश होने पर दोनों यहां रुक गए थे। दोनों ने गठरियां नीचे रखीं और पेड़ की ओर ली। इस दौरान सुदामा ने भूख लगने पर गुरुमाता के दिए श्रीकृष्ण के हिस्से के चने भी खा लिए थे। कृष्ण और सुदामा की गठरियां यहां आज भी नजर आती हैं। इनकी खासियत यह है कि नीचे की ओर आपस में गठरी की तरह आपस में लिपटी हुई सूखी टहनियां हैं और ऊपर कोपल फूटी हुई हैं। इनके दर्शन के लिए दूर-दराज से भक्त आते हैं। यहां श्रीकृष्ण और सुदामा का मनभावन मंदिर भी है। सीएम डॉ मोहन यादव ने नारायणा थाम का जीर्णोद्धार कर इसे श्रीकृष्ण तीर्थ के रूप में विकसित करने की कार्ययोजना बनाई है।

श्रीकृष्ण को यहां मिला सुदर्शन

अब जानते हैं जानापाव को… श्रीकृष्ण पाथेय योजना के तहत इस धाम का भी जीर्णोद्धार होने जा रहा है। इसी स्थान पर भगवान परशुराम ने श्रीकृष्ण को अमोघ अस्त्र सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। सुदर्शन चक्र भगवान शिव से भगवान विष्णु को मिला। श्रीविष्णु ने अग्नि देव को सौंपाण् अग्नि देव ने वरुण देव, वरुण देव ने भगवान परशुराम को सुदर्शन चक्र सौंपा। भगवान परशुराम ने कृष्ण को सुदर्शन चक्र जानापाव में प्रदान किया था। विनम्रता और श्रद्धा से भगवान श्रीकृष्ण ने परशुराम जी से सुदर्शन चक्र प्राप्त किया।

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अमझेरा में हुआ था रुक्मणी का हरण

राजकुमारी रुक्मिणी के संदेश व उनके अनुरोध पर भगवान कृष्ण द्वारिका से चलकर तत्कालीन विदर्भ राज्य के कुंदनपुर गांव पहुंचे थे। इसी कुंदनपुर गांव को आज धार जिले के अमझेरा गांव के नाम से जाना जाता है। श्रीमद् भागवत में उल्लेख है कि रुक्मिणी के भाई रुक्मी ने भोपावर में दोनों यानि श्री कृष्ण और रुक्मिणी का पीछा किया और उन्हें रोक लिया। वर्तमान में अमझेरा से 15 किलोमीटर दूर यह स्थान है। यहां राजकुमार रुक्मी भगवान कृष्ण से हार गए थे। इसके बाद भगवान कृष्ण रुक्मिणी को साथ लेकर द्वारिका चले गए। इस स्थान पर अमका-झमका मंदिर मौजूद है। जहां मंदिर के पीछे भगवान कृष्ण भक्तों का बनवाया गया सीमेंट से बना घोड़े का प्रतीकात्मक रथ मौजूद है।

प्रमुख तीन यात्राएं

भगवान श्रीकृष्ण ने मालवा क्षेत्र में तीन यात्राएं की हैं। पहली यात्रा विद्यार्जन के लिए थी। दूसरी मित्रंविदा से विवाह और तीसरी रुक्मणी से विवाह के लिए हुई। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के निर्देश पर राज्य सरकार ने श्रीकृष्ण पाथेय की जो कार्ययोजना तैयार की है उसके अनुसार 18 विभाग और एजेसियां सहयोग करेंगी। सभी विभागों को श्रीकृष्ण पाथेय के लिए अलग से बजट आवंटित किया जाएगा। महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ उज्जैन नोडल एजेंसी होगी। योजना में प्रदेश के बाहर के श्रीकृष्ण से जुड़े स्थलों को भी शामिल किया गया है। इसके तहत सांस्कृतिक आयोजनों के लिए द्वारिका, अमरावती, मथुरा, सोमनाथ और रणथंबोर शामिल हैं।

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