लेखक- संदीप अखिल, स्टेट न्यूज़ कॉर्डिनेटर लल्लूराम डॉट कॉम

माता सीता का विलक्षण चरित्र रामचरितमानस में वर्णित है माता सीता के लिए लिखा गया।

।। आदि शक्ति जेहिं जग उपजाया
सो अवतरहि मोर ये माया ।।

महाराज जनक जब उनके राज्य में अनावृष्टि से आकाल पड़ा था तो संत सम्मति से महाराज जनक ने हल चलाया था, तब माता सीता भूमि से प्रकट हुई थी अतः उन्हें भूमिजा भी कहा जाता है। हल के नुकीले भाग को “सीत” कहते हैं इसलिए उन्हें सीता भी कहा गया। जनक की पुत्री के रूप में उन्हें जानकी कहा गया।

।। श्रुति सेतु पालक राम तुम, जगदीश माया जानकी
जो सृजति पालति, संहरति, रूख,पाई कृपा निधान की ।।

माता सीता सृजन, पालन, संहार करती हैं परंतु सबसे आवश्यक बिंदु है श्री राम जी की अंर्तस्वीकृति अर्थात श्री राम की “रुख” मतलब राम की इच्छा से इसलिए.

।। रुख पाई कृपा निधान की ।।
आइए विषय में प्रवेश करते हैं माता सीता दो बार दांव पर लगाई गई । एक बार महराज जनक ने सीता स्वयंबर में सीता जी को धनुष पर दांव में लगा दिया , जो शिव धनुष तोड़ देगा सीता उसकी हो जाएंगी ,वह कोई साधारण धनुष नहीं था , शिव पिनाक था । धनुष के लिए मानस में लिखा..
।। जानि कठिन शिव चाप विसूरति ।।
।। नृप भुजबल शिव धनु रहहु
गरुड़ कठोर विदित सब काहू ।।
पुष्प वाटिका में माता सीता ने श्री राम को देखा तो सितंबर के महीने में उन्हें फूल तोड़ने में पसीना हो निकाल रहा था , इतने सुकुमार हैं “श्री राम”

।। प्रीति पुरातन लखें नहिं कोई ।।
हाथ में फूल का दोना, माथे पर पसीने की बूंदें थी ऐसा लग रहा था श्री राम फूल तोड़ने में थक गये थे ।
“ माल तिलक श्रम बिंदु सुहाए”

माता ने सीता ने सोचा जिन्हें फूल तोड़ने में पसीना आ रहा है वो भला वे शिव के कठोर पिनाक को कैसे तोड़ पायेंगे । अब प्रश्न है उस वजनदार धनुष को श्री राम के लिए हल्का किसने किया ?

दूसरी बार सीता जी को दांव भट , सुमट, महामट, दारूण भट से भरी सभा उनके धर्म के बेटे अंगद ने रावण की सभा में दांव पर लगा दिया ,जब रावण ने श्रीराम को तपस्वी, निर्वासित कहकर अपमानित किया और श्रीराम के सैन्य बल को चुनौती दी । तब अंगद क्रोधित होकर कहा

।। जो मम चरण सकेसि कर टारी, फिरैं राम सीता मैं हारी ।।
और कहा तेरे ये कोई भी योद्धा मेरे चरण को थोड़ा भी हिला देंगे तो मैं माँ सीता को हार जाऊंगा । इस तरह अंगद ने माता सीता को दांव पर लगा दिया ।

एक वानर का पैर का क्या वजन होता है ,क्या पकड़ हो सकती है । तो उस अंगद के पैर को वजनदार किसने किया ? और धनुष को हल्का किसने किया । इसे मानस के आधार पर समझने का प्रयास करेंगे। दोनों प्रसंगों के मूल में सीता जी ही दांव पर है । अब दोनों प्रसंगों के दृश्य को समझने का प्रयास करते हैं । धनुष यज्ञ में राजा गण उठते थे धनुष को उठाने का प्रयास करते थे पर टस से मस नहीं कर पाये।

।। तमकि, ताकी, तकि शिवधनु घरही, उठहि न कोहि भांति बल करहीं ।
सब बड़े बड़े योद्धा थक कर बैठ जाते हैं , जनक जी को क्षोभ होता है ,इधर माता सीता धनुष के पास जाकर धनुष से कहती है वो बड़ा आनंद दायक प्रसंग है।

सकल सभा के भई मति मोरी, अब मोहि शंभू चाप गति तोरी ।

धनुष मानो सजीव होकर माता सीता जी से बोला तो मां मैं क्या करूं । मैं दुष्ट राजाओं के स्पर्श से मुझ में और जड़ता आ गई क्या करूं , माता सीता ने कहा
“निज जड़ता लोगन पर डारी ”

धनुष ने माता सीता से पूछा क्या करूं ,माता सीता ने कहां हे शिव पिनाक तुम हल्के हो जाओ ,धनुष ने पूछा मां कितना हल्का हो जाऊं 5 ग्राम, 10 ग्राम कितना हल्का ? माता सीता ने सोचा ,जिन्हेंफूल तोड़ने में पसीना आता है , 10 ग्राम बोल दी कहीं नहीं उठा पाये तो ? गोस्वामी जी का विलक्षण काव्य सृजन कौशल देखिये । माता सीता ने सोचा धनुष की वजन की सीमा निर्धारित करना उचित नहीं होगा , माता जी के क्या बढ़िया बात कही..
“होहु हरू रघुपति हिं निहारी”

जितना श्रीराम उठा सके उतना हल्का हो जाना । जब श्री राम धनुष तोड़ने उठाते हैं तो दृश्य को देखिए श्री राम ने धनुष के पहले माता सीता की ओर देखा, फिर धनुष की ओर देखा माता सीता की ओर देखकर माना पूछा हो धनुष को आपने सब समझा दिया है न ?
“सियहिं बिलोकि तकेऊ धनुष कैसे, गरुड़ चितई लघु व्यालहिं जैसे ”

वह धनुष ऐसे छोटा हो गया जैसे गरूड़ को देखकर सर्प सिकुड़ जाता है । अब आप समझ गए होंगे कि धनुष को हल्का किसने किया ?
और रावण के दरबार में जब अंगद ने पृथ्वी पर पैर जमा कर रावण को चुनौती दी.

” जो मम चरण सकेसि सठ टारी, फिरहैहिं राम सीता मै हारी ”
तो राक्षस अंगद के पैर की ओर झपटे
।। पुनि पुनि झपटहिं सुर आ राती, डगहिं ना कीस चरन एहि भाँती ।।
फिर नीचे के दोहे में दोनों प्रसंगों का निचोड़ मानो गोस्वामी जी ने लिख दिया
भूमि ना छाँड़त कपि चरण देखत रिपु मद भाग
कोटी विघ्न ते संत कर, मन जिमि नीति न त्याग ||

तात्पर्य अंगद के पैर को भूमि पकड़ रखा था ,उसी ने उसे वजनदार कर दिया और सीता जी के स्वयंबर में जब दुष्ट राजा धनुष तोड़ने जाते थे तो भी भूमि ने पकड़ रखा था । इजी उन्हें कहते भी हैं ।

अब आप सभी प्रसंगों को आप एक साथ जोड़कर समझने का प्रयास करेंगे
धनुष तोड़ने की बात तो कई बड़े बड़े शूरवीर थे जो लोग धनुष को भूमि से तिल भर हिला नहीं पाये मतलब यहां भी भूमि ने धनुष को पकड़ रखा था ,श्री राम के लिये भूमि ने धनुष को छोड़ा और सीता जी के कारण धनुष हल्का हुआ ,दोनों प्रसंगों में भूमि की महत्वपूर्ण भूमिका है , क्योंकि माता सीता भूमिजा हैं ,भूमि की पुत्री है और मां तब तक अपनी पुत्री का हाथ नहीं छोड़ती जब तक वह सुरक्षित ना हो जाये । तो इस प्रकार माता सीता दो बार दांव पर लगी हैं.

तृण ते कुलिस कुलिस तृन करही
तासु दूत पन कह किमि टरहीं ।
सीता नवमी के पावन अवसर पर माता सीता को प्रणाम ।।

लेखक- संदीप अखिल, स्टेट न्यूज़ कॉर्डिनेटर लल्लूराम डॉट कॉम