रायपुर- महिलाओं के लिये कभी युग नहीं बदलता, कलयुग हो या सतयुग सीता हर काल में सीता ही रहती है. ये कहानी है, छत्तीसगढ के जंगलों में पैदा हुई सीता की, जिसे वनवास मिला है. ठीक उसी तरह जिस तरह कलयुग में सीता को मिला था. फर्क बस इतना है कि ये वनवास उसे समाज ने दिया है. कलयुग की यह सीता अपने पति और बच्चों के साथ पिछले सात सालों से वनवास काट रही है. आप सोच रहे होंगे वन में रहने वाली सीता को क्या वनवास ? तो आपको बता दें कि ये वनवास सीता को तब मिला जब उसने जंगल से बाहर निकलकर किसी एेसे इंसान का हाथ थाम लिया, जो जंगल का नहीं था.
छत्तीसगढ की रहने वाली सीता कंवर आदिवासी है, जिसने 2012 में धमतरी जिले के भागीरथी साहू से प्रेम विवाह कर लिया था. सीता और भागीरथी का प्रेम विवाह इन दोनों ही समाज के लोगों को इतना नागवार गुजरा कि इन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया गया. शादी के बाद सीता अपने पति के साथ उसके गांव में रहती है, लेकिन गांव के किसी भी शख्स को इनसे बातचीत करने इनके सुख-दुख में शामिल होने या किसी सामाजिक कार्यक्रम में इन्हें शामिल करने की मनाही है. यहां तक की सीता के पति भागीरथी को अपने ही मां-बाप से मिलने या बात करने की इजाजत नहीं है. शादी को सात साल होने को आये इस दौरान इस दंपत्ति की दो बेटियां भी हुई.लेकिन इन बेटियों को नहीं पता कि इनके दादा-दादी कौन हैं. नान-नानी कौन हैं.
एक ही छत के नीचे रहते हैं पर अंजानों की तरह
भागीरथी अपने शादी के बाद भी अपने उसी घर में रहता है. जहां वो शादी के पहले अपने मां-बाप के साथ रहता था.पर शादी के बाद कुछ भी पहले जैसा नहीं है. एक घर में रहते हुए भी बद्री और उसका परिवार अजनबी हो चुके हैं. ये इनके समाज की मेहरबानी है. भागीरथी को अपने मां-बाप से बात करने की इजाजत नहीं है. ना ही भागीरथी के मां-बाप या उसके परिवार के लोग उससे बात कर सकते हैं.अगर एेसा होता है तो भागीरथी के मां-बाप को भी समाज से बहिष्कृत होना पड़ेगा.
बीमार मां-बाप से मिलने को तरस रही है सीता
वहीं सीता की हालत बद्री से भी खराब है. शादी के बाद से सीता वापस ना तो अपने गांव जा पाई है. ना ही अपने मां-बाप से मिल पाई है, सीता कंवर आदिवासी समाज से है. शादी के बाद कंवर समाज ने भी सीता को समाज से बाहर कर दिया है. मां-बाप से मिलना तो दूर बातचीत पर भी बंदिश है क्योंकि अगर सीता अपने मां-बाप से मिलती है तो उसके मां-बाप को गांव से निकाला जा सकता है औऱ सीता नहीं चाहती है कि इस उम्र में उसके मां-बाप को उसी की तरह दर-दर भटकना पड़े.
समाज में शामिल होने के लिये समाज के ठेकेदारों ने मांगी मोटी रकम
भागीरथी कहता है कि उसने अपने समाज में सामिल करने लिये कई बार गुहार लगाया.आवेदन दिया लेकिन बात नहीं बनी. समाज के पदाधिकारी समाज में शामिल करने के लिये उससे एक लाख रुपये की मांग कर रहे हैं. ये कहकर कि यही नियम है कि समाज में बिना एक लाख रुपये की रकम दिये शामिल नहीं किया जा सकता है. यानि एेसे तो अंतर्जातीय विवाह पाप है. जिसकी सजा सामाजिक बहिष्कार है पर एक लाख रुपये देने पर ये पाप धुल जायेगा. जब हमने साहु समाज के पदाधिकारी से बात की तो उन्होंने इस बात से साफ इंकार कर दिया .उनका कहना था कि सिर्फ एक आवेदन देने भर से काम हो जायेगा.पर सोचने वाली बात ये है कि अगर वाकई ये सब इतना आसान होता तो ये दंप्पति पिछले सात सालों से अपने मां-बाप से मिलने और समाज में शामिल होने के लिये दर-दर की ठोकरें नहीं खा रहा होता.