भगत सिंह ने ही सिखाया- जिंदगी अपने दम पर जी ही जाती है

अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह की गुरुवार को जयंती है. भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था. उन्होंने शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार से जिस साहस के साथ मुकाबला किया, उसे भुलाया नहीं जा सकता है.

अमृतसर में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला. भगत सिंह उस समय केवल 12 साल के थे. इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से कई मील पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंच गए थे.

क्रांतिकारी भगत सिंह की जिंदगी से हमें कई तरह की प्रेरणाएं मिलती हैं. उनके कई विचार ऐसे हैं, जिनसे किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं. भगत सिंह का मानना था कि जिंदगी तो सिर्फ अपने दम पर ही जी जाती है. भगत सिंह कहते थे कि आमतौर पर लोग जैसी चीजें हैं, उसी के आदी हो जाते हैं. वे बदलाव में विश्वास नहीं रखते और महज उसका विचार आने से ही कांपने लगते हैं. ऐसे में यदि हमें कुछ करना है तो निष्क्रियता की भावना को बदलना होगा. हमें क्रांतिकारी भावना अपनानी होगी.

उन्होंने कहा था कि राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है. मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद हैं. बता दें कि भगत सिंह ने मौत की सजा मिलने के बाद भी माफीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था. बाद में 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई थी.

भगत सिंह का आज 110वां जन्मदिन है

भारत की आज़ादी के नायकों में एक भगत सिंह का आज 110वां जन्मदिन है। उन पर हजारों शोध हुए, सैकड़ों किताबें लिखी गईं हैं। उनके जीवन पर 1970 के दौर में तीन फिल्में बनीं। इसके बाद 2000 में  भी उन पर कई फिल्में आईं। यही वजह है कि आजादी के नायक से नई पीढ़ि भी पूरी तरह वाकिफ है। इसके बावजूद यह कम लोग जानते हैं कि उनके असल फोटो केवल चार हैं। पहला फोटो 12 साल की उम्र में खींचा गया था और उनका अंतिम फोटो 1927 में लाहौर जेल का है।

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भगत सिंह के जीवन पर बनी फिल्में 

शहीद-ए-आजम भगत सिंह (1954)
शहीद भगत सिंह (1963)
शहीद (1965)
द लीजेंड ऑफ भगत सिंह (2002)
शहीद
शहीद-ए-आजम (2002)
रंग दे बसंती (2006)

क्रांतिकारी भगत सिंह ने आगरा में बनाया था बम

क्रांतिकारी भगत सिंह ने आगरा में बनाया था बम

महान क्रांतिकारी भगत सिंह का आगरा से गहरा रिश्ता रहा है। भगत सिंह ने आगरा के नूरी दरवाजा, नाई की मंडी, हींग की मंडी में काफी समय गुजारा। यहां पर वह छात्र बनकर किराए के मकान में रहे। इस मकान में ही क्रांतिकारी बम बनाते थे। यहीं पर बने बम से लाहौर असेम्बली में विस्फोट किया गया था। इतिहासकारों के मुताबिक, भगत सिंह ने आगरा में रहकर असेम्बली में बम कांड को अंजाम दिए जाने की तैयारी की थी। लाला लाजपत राय नहीं चाहते थे, लेकिन भगत सिंह ने फिर भी सबको मना कर इस कार्य को अंजाम दिया। नवंबर 1928 में अंग्रेज अधिकारी सांडर्स को मारने के बाद भगत सिंह अज्ञातवास के लिए आगरा आए थे।

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पांच रुपए प्रतिमाह के किराए पर दिया था मकान

सांडर्स मर्डर केस में गवाही के दौरान केस के गवाह और भवन के तत्कालीन स्वामी छन्नो ने स्वीकारा था कि उसने पांच रुपए मासिक दर पर भगत सिंह को किराए पर कमरा दिया था. उन्हें ढाई रुपए पेशगी मिली थी. घासी राम और बेनी प्रसाद ने कहा कि युवक उनकी दुकान पर दूध पीने व अन्य जरूरी चीजें खरीदने आते थे।