पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। य तस्वीरें मजबूरी की हैं, ये तस्वीरें बेबसी की हैं, इन तस्वीरों में बदकिस्मती है, इन तस्वीरों में जिंदगी पर कहर बनकर टूटी आफत है, जो एक पिता के हाथों में शराब की शीशी और बेटे के मुहं में नशे की घूंट है. कटे पांव में जब दर्द उठता है, तो बेटा कराह उठता है और पिता का कलेजा कांप जाता है. बेटे की कराह परिवार के आखों में आंसू परोस रहा है. बेबस और लाचार पिता को मदद की दरकार है, जो काश इनकी नर्क में जाती जिंदगी में खुशियों की चमक दे सके.

गरीब परिवार पर टूटा आफत का पहाड़

दरअसल, ये तस्वीरें छत्तीसगढ़ के गरियाबंद की हैं. जहां गरीब परिवार पर आफत का पहाड़ टूट पड़ा है. इलाज के अभाव में बीमारी से बड़े बेटे की मौत हो गई, तो सड़क दुर्घटना में घायल छोटे बेटे के पांव काटने पड़े. मुश्किल से गुजारा के बीच बेटे का परिवार इलाज करा रहा है. हालात ऐसे भी बनते हैं कि कभी कभी महंगे दवा के अभाव में दारू पिलाकर बेटे का दर्द दूर करते हैं.

बाइक की टक्कर में कट गए पैर के नश

देवभोग ब्लॉक के झराबहाल में रहने वाले गरीब मायाराम यादव को वर्ष 2022 कभी न भूल पाने वाला दर्द दे गया है. शादीशुदा दोनों बेटे हमाली और मजदूरी कर परिवार चला रहे थे, लेकिन छोटे बेटे टंकधर 31 वर्ष का 20 सितम्बर 2022 को नेशनल हाइवे पर लापरवाही पूर्वक बाइक चला रहे डोहेल निवासी युवक ने टक्कर मार दिया. जबरदस्त टक्कर में पैर के नश कट गए थे. उसके पांव काटना पड़ा.

संकट में डूबा परिवार

इस बीच बड़ा बेटा राजेश 32 वर्ष भी बीमार पड़ा है. गरियाबंद जिला अस्पताल में इलाज भी चला, आधा अधूरा इलाज करा कर राजेश घर लौट आया. 09 दिसम्बर 2022 को उसकी मौत हो गई. कमाने वाले दो जवान बेटे के साथ घटी घटना से परिवार अब संकट में आ गया है.

सोना चांदी बिके, पत्नी छोड़कर भाग गई, कर्ज चुका रहा बाप

मायाराम ने बताया कि घटना के बाद छोटे बेटे को देवभोग अस्पताल ने रेफर कर दिया. एम्स पहुंचे तो वहां इलाज कराने वालों की कतार लगी थी. प्रबंधन ने 6 दिन की वेटिंग बताया. इधर पांव का इंफेक्शन बढ़ रहा था. बात घायल बेटे की जिंदगी और मौत के बीच आकर अटक गई. मजबूर परिवार ने राजधानी के एक निजी अस्पताल में बेटे का इलाज कराया. फैल चुके इंफेक्शन के कारण दाहिना पांव काटना पड़ा.

लगभग ढाई लाख खर्च हुए, जिसकी भरपाई घर में रखे सोने चांदी बेचने के अलावा घर मे मौजूद जमीन को गिरवी रखना पड़ा. अलावा परिजनों के मदद से की गई. टंकधर 15 दिन बाद जब घर लौटा तो पति की सेवा करने के बजाए पत्नी मालती घर छोड़ कर मायके भाग गई.

अब बूढ़े मा बाप उसकी जतन कर रहे हैं. बड़े बेटे की मौत छोटे बेटे के पांव कटने के बाद बड़ी बहू, दो पोते, पत्नी की परवरिश का जिम्मा बूढे कंधे पर आन पड़ा है. अज्ञानतावश परिवार सरकारी योजनाओं से नहीं जुड़ पाया. परिवार के पास न तो आयुष्मान कार्ड है और न कोई पेंशन योजना. गरीबी रेखा कार्ड से मिलने वाला चावल और महिलाओं की मजदूरी ही सहारा है.

हर एक दिन बाद 600 रुपये का खर्च

पांव काटने के बाद उसके घाव को सुखाने, दर्द कम करने और ड्रेसिंग हर एक दिन बाद करना है. इस मुकाम तक आने के बाद भी परिवार को सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला. घटना से प्रशासन भी इत्तेफाक रखता है, लेकिन सरकारी योजना से जुड़े उसकी पहल ग्राम स्तर पर तैनात किसी भी जिम्मेदार ने नहीं किया. परिवार एक निजी चिकित्सक की मदद से ड्रेसिंग करवा रहा है.

पीडित का चाचा परमानंद यादव ने बताया कि हर दूसरे दिन 600 का खर्च है. जब तक हिम्मत हुई परिवार खर्च करता रहा है. इलाज करने वाले ने भी अपने क्रेडिट में दवा दिलवा कर मदद कर रहा है. कर्ज बढ़ गया है तो कभी कभी एक सप्ताह भी गेप करना पड़ रहा है. दर्द असहनीय हो जाने पर दवा के अभाव में उसे शराब देना पड़ता है, ताकि उसे नींद आ सके.

हमें कोई जानकारी नहीं- BMO

मामले में BMO सुनील रेड्डी ने कहा कि पीड़ित परिवार अब तक इसकी जानकारी नहीं दी, न ही अस्पताल तक आए हैं. इस तरह के केसेस को भर्ती कर के उपचार की पूरी सुविधा मौजूद है. एंटीबायोटिक भी पर्याप्त है. ड्रेसिंग भी किया जा सकता है. मामले को दिखवाता हूं, यथासम्भव पीड़ित परिवार को प्रावधानिक योजना के तहत मदद की जाएगी.

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