फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ राज्य जैविक राज्य की ओर अग्रसर हो गया. राज्य में अब किसान जैविक खेती में काफी रुचि ले रहे हैं. सरकार की ओर से भी जैविक खेती को काफी प्रोत्साहित किया ज रहा है. कई तरह की योजनाएं जैविक खेती को केंद्र में रखकर बनाई जा रही है. खास तौर पर नरवा-गरवा, घुरवा-बारी और गोधन योजना का असर जैविक खेती पर दिखाई दे रहा है. गोबर खाद की मांग राज्य में तेजी से बढ़ गई है. सरकार की ओर 2 रुपये में गोबर खरीदी जा रही है और फिर वर्मी कम्पोस्ट बनाकर किसानों को बेची भी जा रही है. इसके साथ ही कुछ किसान स्वयं भी वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर रहे हैं. इस रिपोर्ट में हम कुछ उन्नतशील और जैविक खेती करने वाले किसानों के बारे में बताएंगे.

जैविक खेती से किसानी में नई शुरुआत

दुर्ग जिले के बोरई के रहने वाले किसान झवेन्द्र वैष्णव भी प्रदेश के ज्यादातर किसानों की तरह ही कुछ समय पहले तक रासायनिक खेती करते थे. इससे उन्हें उत्पादन में लाभ तो मिल रहा है, लेकिन धीरे-धीरे खेती भी खराब होते जा रहा था. वह यह समझ चुका था कि रासायनिक खेती वर्तमान में फायदा तो है, लेकिन भविष्य में नुकसान ही होना है. साथ ही वह रासायनिक खादों के संकट को भी भाँप चुका था.

इस बीच राज्य सरकार की ओर से जैविक खेती में दी जा रही कई तरह की छूट और प्रोत्साहन के बारे में भी उसे जानकारी हो चुकी थी. लेकिन झवेन्द्र को अच्छी और तकनीकी जानकारी जैविक खेती पर नहीं थी. लिहाजा उन्होंने कुछ विशेषज्ञों से जानकारी ली. उन्हें यह जानकारी मिली की देवभोग सुगंधित धान की जैविक खेती करना फायदेमंद हो सकता है.

उन्होंने कृषि विश्वविद्यालय सुगंधित धान संबंधी जानकारी और बीज प्राप्त कर लिया. जैविक खेती को परखने झवेन्द्र ने पाँच एकड़ में से एक एकड़ में सुगंधित धान बोने का फैसला किया. झवेन्द्र का यह फैसला कुछ महीनों बाद सही साबित हुआ. झवेन्द्र का खेत धान की सुनहरी बालियों से लहलहा रहा था, धान की खुशबू दूर-दूर फैली हुई थी. मिंजाई के बाद का आंकड़ा जो आया वह भी काफी बढ़िया. जिस खेत से अभी तक 15 क्विंटल का उत्पादन वह भी रासायनिक खाद से, उसी खेत अब 16 क्विंटल का उत्पादन हुआ, वह भी जैविक खाद से. जैविक खेती के फायदे को देकखर झवेन्द्र इतना खुश हुआ है कि उन्होंने अब समूचे पाँच एकड़ में जैविक खेती ही करने का फैसला किया है.

सरकार की सही नीति से बदली खेती

झवेन्द्र की तरह ही डॉ. टीकम सिंह साहू भी अब जैविक खेती को अपना चुके हैं. टीकम सिंह कहते हैं कि हमारे पुरखे गोबर खाद का ही इस्तेमाल खेतों में किया करते थे. लेकिन एक पीढ़ी ऐसी भी आई कि जैविक खेती को छोड़
रासायनिक खेती करने लगी. अब सरकार ने सही सोच और भविष्य को ध्यान में रखकर जो नीति और योजनाएं बनाई है उससे खेती बदली और बदलाव की बयार जारी है. वर्तमान पीढ़ी अब वापस परंपरागत खेती की ओर लौट रही है. सरकार ने भी इस दिशा को बढ़ावा दिया है. जैविक खेती में अहम हिस्सा नरवा-गरवा, घुरवा-बारी और गोबर. सरकार ने इसे योजना का रूप देकर लाभकारी बना दिया है.

टीकम सिंह कहते हैं कि इन दोनों ही योजनाओं से ग्रामीण संस्कृति एक बार फिर स्थापित हो गई है. वे बताते हैं कि जैविक खेती करने से उन्हें जो फायदा हो रहा है, वैसा ही फायदा राज्य के तमाम किसानों को होगा. उन्होंने अब रासायनिक खादों का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दिया है. जैविक खेती को अपनाने के बाद अब खेतों में नई जान आने लगी है. केमिकल की वजह मिट्टी खराब होने लगी थी. लेकिन अब मिट्टी वापस उपजाऊ बनती जा रही है. उन्होंने गोबर खाद के लिए पशुपालन की ओर भी अपने कदम बढ़ा दिए हैं. मैं तो अपने किसान भाइयों से अपील करूँगा कि वे भी रासायनिक खेती को छोड़ जैविक खेती से नाता जोड़े.

वर्मी कम्पोस्ट से खेतों की सुधरी सेहत

गनियारी के किसान इंद्रजीत भारद्वाज भी अब रासायनिक खेती छोड़ चुके हैं. उन्होंने भी जैविक खेती को अपना लिया है. वह यह मानते हैं कि जैविक खेती से खेतों की सेहत सुधर गई है. सरकार गोधन न्याय योजना के साथ जिस तरह से जैविक खाद को बढ़ावा दिया है, उससे प्रेरणा भी मिली और ताकत भी. वे अब घर में ही वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर रहे हैं. अपने साथी किसानों को भी इसके लिए प्रेरित करते रहते हैं.

गौठन समिति के मथुरा साहू बताती हैं कि शासन की योजनाओं का लाभ आम लोगों को मिले इस दिशा में काम किया जा रहा है. राज्य सरकार जैविक खाद को प्रमोट कर रही है. गौठान में वर्मी खाद तैयार किया ही जा रहा है, किसान खुद भी अपने घरों में वर्मी खाद बना रहे हैं. इसके लिए उन्हें केंचुआ भी उपलब्ध कराया जा रहा है. साथ किसानों को गौठान से भी वर्मी खाद उचित मूल्य पर दिया जा रहा है.

इस बार खेतों और बारी में जैविक खेती

बोराई क्षेत्र के एक और किसान हैं मिथलेश देशमुख. मिथलेश ने इस साल खेतों और बारी में जैविक खाद का इस्तेमाल किया है. राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ लेकर मिथलेश अब कई तरह की खेती करने की ओर अग्रसर हो चला है. वह धान के साथ-साथ फलों और वृक्षों की खेती ओर बढ़ रहे हैं. मिथलेश बताते हैं कि राजीव गांधी किसान न्याय योजना में वृक्षारोपण को भी खेती के रूप में शामिल किया गया है. इसमें किसानों को बोनस भी दिया जाएगा. सरकार के इस कदम से किसानों को बड़ा फायदा होने वाला है. किसान ऐसी भूमि जहाँ अन्य फसल का उत्पादन करना संभव नहीं है वृक्षों की खेती भी कर सकते हैं. इसके साथ-साथ तिलहन और दलहन की खेती अब पहले कहीं ज्यादा फायदेमंद है. इसमें कोई दो राय नहीं कि राज्य में किसानों की आर्थिक दशा काफी सुधरी और ग्रामीण कृषि अर्थवस्था को नई ताकत मिली है.