फीचर स्टोरी।

तस्वीर एक – सरगुजा के सीतापुर ब्लॉक का लिचिरमा गांव के गौठान में काम करने वाली महिलाओं की ज़िंदगी पूरी तरह बदल चुकी है. ज्योति स्वयं सहायता समूह की 21 महिलाओं ने गौठान से वर्मी कंपोस्ट, सब्जी, दाल और दूसरे उत्पाद बेचकर करीब 1 लाख 40 हज़ार रुपये कमाए हैं.

तस्वीर 2- कोरबा जिले के पाली विकासखण्ड के ग्राम सेन्द्रीपाली गौठान से जुड़ी महामाया महिला स्व-सहायता समूह और पोड़ी उपरोड़ा विकासखण्ड के ग्राम महोरा भावर गौठान की सांई स्व-सहायता समूह की 13 महिलाओं ने वर्मी खाद के उत्पादन से एक लाख 58 हजार 630 रूपए कमाए हैं.

तस्वीर 3 – कांकेर जिले में तो वर्मी कंपोस्ट बनाने वाली महिलाओं ने तो कमाल ही कर दिया है. यहां उन्होंने 2 करोड़ 17 लाख का वर्मी कम्पोस्ट बेचकर रिकॉर्ड बना दिया है.

तीन तस्वीरों में एक ही कहानी बयां हो रही है. गोबर से वर्मी कंपोस्ट और उससे महिलाओं की लाखों की कमाई. लेकिन इसके आगे की कहानी और सुकून देने वाली है. गोबर से शुरु हुए सफर ने इन महिलाओं की जिंदगी, उनकी पारिवारिक और सामाजिक हैसियत पूरी तरह से बदल दी है. हर छोटे काम के लिए पतियों पर निर्भर रहने वाली महिलाओं का दर्जा अब उनकी बराबरी पर है. घर के छोटे-मोटे निर्णय लेने में ये महिलाएं सक्षम हैं. घूंघट के पीछे रहने वाली छवि से बाहर निकलकर अब ये महिलाएं बोलने और फैसले लेने वाली के रुप में पहचानी जाने लगी हैं.

बदलाव की ये एक बड़ी तस्वीर है. लेकिन वर्मी कंपोस्ट सिर्फ सामाजिक ढांचे को बेहतर नहीं कर रही हैं बल्कि ये हमारे जीवन और पोषण को भी बेहतर बना रही हैं. कैसे इसे समझने से पहले क्यूबा की कृषि के संकट और उसके समाधान की कहानी को जान लेते हैं.

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद क्यूबा की कृषि व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई. खाद्यपदार्थों के उत्पादन के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशकों की भारी किल्लत हो गई. खेती गड़बडा गई. खाद्य संकट पैदा हो गया. लेकिन आस्ते-आस्ते एक नई व्यवस्था को अपनाते हुए क्यूबा ने 2007 में अपने उत्पादन को 1888 की तुलना में सब्जियों में करीब डेढ़ गुना बढ़ा लिया, वो भी जैविक तरीके से. खेती के मामले में विदेशों पर निर्भर राष्ट्र से स्वावललंबी राष्ट्र बनने में सबसे अहम योगदान रहा- वर्मी कंपोस्ट और पशुपालन का. जिसने उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर कर लिया. 

क्यूबा की मजबूरी की कहानी में बाकी मुल्कों के लिए एक विश्वास निकलकर सामने आया कि जैविक खेती में इतनी क्षमता है कि जैविक खेती से जनता के भोजन की ज़रुरतों को पूरा किया जा सकता है. बस इस काम को सतत जारी रखना पड़ता है. छत्तीसगढ़ सरकार ने इस बात को समझा और अपने खेतों में रासायिक के साथ जैविक खाद के रुप में वर्मी कंपोस्ट को डालने को प्रोत्साहित किया.

भारत में रासायनिक खेती का दुष्प्रभाव पंजाब में ज़ाहिर था लेकिन छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में भी दिखने लगा था. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस खतरे को भांप लिया था. सत्ता में आते ही उन्होंने इस चुनौती को समझा और एक नारे नरवा, गरुआ,घुरवा अऊ बारी के नारे के साथ ग्राम सुराजी अभियान शुरु किया. इस फ्लैगशिप योजना में एक अहम घटक था गौठानो में वर्मी कंपोस्ट का निर्माण. वर्मी कंपोस्ट के ज़रिए मुख्यमंत्री ने रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर निर्भरता कम करने का शुरुआत की. 

खेती-किसानी में ‘गोबर’ की अहमियत को अच्छी तरह से समझने वाले राज्य के मुखिया भूपेश बघेल ने वर्मी कंपोस्ट निर्माण में तेजी लाने और गरीब तबके को आर्थिक रुप से और संबल बनाने के लिए  20 जुलाई 2020 को ऐतिहासिक शुरुआत की. उन्होंने देश में पहली बार गोबर खरीदी की योजना शुरु की. उन्होंने योजना के तहत पशुपालकों से गोबर खरीदना शुरू किया. खरीदे गए गोबर का गौठान में वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जाने लगा और  कम दामों पर इसे किसानों को बेचा जाने लगा.  इससे जहाँ जैविक खेती की ओर कदम बढ़ रहे हैं, तो वहीं पशुपालकों को भी लाखों रुपये मिल रहे हैं. साथ ही योजना से जुड़ीं महिला समूहों को इससे रोजगार मिला है और वें भी अच्छी-कमाई कर रही हैं.

जब पूरे देश में डीएपी और यूरिया का संकट पैदा हुआ तो पहले से बने वर्मी कंपोस्ट को खेतों तक पहुंचाकर भूपेश बघेल सरकार ने इसके फायदे से किसानों का साक्षात्कार करा दिया. खाद के संकट के बाद भी छत्तीसगढ़ ने जैविक खाद का इनपुट बढ़ाया और इसका परिणाम ये रहा कि प्रदेश में अब तक का सर्वाधिक धान का उत्पादन हुआ.

मुख्यमंत्री ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि वर्मी कम्पोस्ट और सुपर कम्पोस्ट खाद के उपयोग से खाद्यान्न की गुणवत्ता व उर्वरा शक्ति में सुधार और खेती की लागत में कमी आ रही है. जिसका लाभ किसानों को मिलने लगा है. मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्मी कंपोस्ट का खेती-किसानी में प्रयोग के बेहतर परिणाम देखने और सुनने को मिल रहे हैं.

आज गौठानों में वर्मी कंपोस्ट से राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा भी मिल रहा है. यह योजना साल भर में ही सफल क्रियान्वयन के साथ आज प्रदेश की देश भर की सबसे चर्चित योजनाओं में शुमार हो चुकी है. योजना की सफलता ने कई राज्यों को प्रभावित किया है. दूसरे प्रदेशों से अधिकारियों की टीम योजना को जानने और समझने के लिए पहुँचने लगी है.

झारखंड ने छत्तीसगढ़ की गोधन योजना को जस-का-तस अपनाया, बजट में शामिल किया. पशुपालन एवं डेयरी विभाग भारत सरकार के संयुक्त सचिव  (एन एल एम) डॉ ओ पी चौधरी ने आज यहां आरंग विकासखंड के पारागांव एवं बड़गांव गौठानों का अवलोकन किया. यूपी चुनाव में छत्तीसगढ़ के गोधन न्याय योजना की धूम रही. यहां जब आवारा पशु समस्या चुनावी मुद्दा बन गया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका समाधान छत्तीसगढ़ के गोधन न्याय योजना में दिखा, जिसकी बकायदा उन्होंने घोषणा की.

ये योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था के स्वालंबन के लिए राज्य सरकार का महत्वपूर्ण कदम है. ऐसी योजनाओं से स्थानीय स्तर पर ही ग्रामीणों को आमदनी का बेहतर साधन मिल रहा है और उनका आत्माविश्वास भी बढ़ रहा है.

दरअसल, वर्मी कंपोस्ट के कई फायदे हैं. वर्मी कंपोस्ट में कार्बन की मात्रा काफी ज़्यादा होती है जो खराब खेतों को ठीक करती है. भूमिगत जल इससे प्रदूषित  नहीं होता. किसानों को वर्मी कंपोस्ट के इस्तेमाल का तीसरा बड़ा फायदा है कि कीटों का प्रकोप कम होता है. इससे कीटनाशकों का इस्तेमाल कम करना पड़ता है. इस तरह पौधे जो इंसानी भोजन का निर्माण करते हैं तो वो स्वास्थवर्धक रहता है. जैविक खेती का एक फायदा होता है कि साल दर साल इससे उत्पादन बढ़ता है और इनपुट कास्ट कम होती है. लिहाज़ा अगले एक दो साल में इसका इस्तेमाल खेतों में शुरु होगा तो छत्त्तीसगढ़ के किसान की हालत, उनके खेत, पर्यावरण और सबकी सेहत दुरुस्त होगी.