कंचन ज्वाला ‘कुंदन’ महासमुंद।  गुलाब के फूल भला किसे अच्छे नहीं लगते, लेकिन गुलाब की खेती में भविष्य देखने की हिम्मत बहुत कम ही लोग जुटा पाते हैं। मोहंदी गाँव के एक 27 साल के युवक तुषार ने ऐसी हिम्मत दिखाई और अब इनके चेहरे गुलाब की तरह खिले हुए हैं। तुषार ने आरआईटी रायपुर से पढ़ाई की। पढ़ाई के बाद 3 साल तक इन्दौर में इंजीनियर की नौकरी की। फिर मिट्टी की मोहब्बत ने तुषार को अपने गांव खींच लाया ।
फूल सिर्फ प्रियतम को लुभाने और भगवान के चरणों में चढ़ाने के लिए ही नहीं होते हैं। फूलों की महक से उदासी तो जाती ही है, तन-मन प्रसन्न हो जाते हैं। बहुत लोगों को फूलों से प्यार हो जाता है, तो कुछ लोग उसे आत्मसात कर लेते हैं और अपने मजबूत जीवन-यापन का साधन बना लेते हैं, जो फूलों से दोस्ती कर लेते हैं, उनका बगिया रूपी परिवार सुगंधित हो उठता है। मोहंदी गांव का एक युवक है तुषार चंद्राकर। तुषार 6  एकड़ में गुलाब फूलों की खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं। तुषार बताते हैं कि इस खेती से उनका सालाना 60 लाख रूपये का टर्नओवर है, जिसमें  सालाना 15 लाख रूपये उनकी शुद्ध कमाई है।
मोहंदी गाँव के फूलों की खेती आसपास के गांवों के  लिए मिसाल व प्रेरणा बन गया है। और भी कई किसान इससे प्रेरणा लेकर अब फूलों की खेती पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। तुषार ने पॉली हाउस बनवा लिया है अब ग्रीन हाउस भी बनवाना चाहते हैं। फूलों की खेती से तुषार  के जीवन की बगिया महक उठी है। ग्राम मोहंदी  निवासी तुषार चंद्राकर आज एक सफल पुष्प उत्पादक हैं। तुषार  पहले इंदौर में नौकरी करते थे। उन्होंने नौकरी छोड़ी और अब गुलाब की खेती कर नौकरी से दस गुना ज्यादा कमा रहे हैं। तुषार आगे कहते हैं कि वे फिलहाल अभी डच रोज की खेती कर रहे हैं। वे प्रत्येक दिन के अंतराल पर 1200  से 1500 नग तक फूल तोड़ते हैं..तुषार के फूलों की सप्लाई रायपुर, बिलासपुर, भुवनेश्वर, विशाखा पट्टनम और कोलकाता तक में होती है। तुषार आगे बताते हैं कि गुलाबों को एक बार लगा देने से चार साल तक फूल तोड़े जा सकते हैं।
तुषार  जब आरआईटी रायपुर में पढ़ाई कर रहे थे तब एक शैक्षणिक टूर के लिए पुणे गए थे । वहां खिले हुए गुलाबों ने तुषार को चिढ़ाया कि आखिर उनकी जिंदगी इन गुलाबों की तरह खिली हुयी क्यों नहीं है। फूलों की खेती में मुनाफा देखते हुए तुषार ने  नौकरी की जगह मिट्टी से मोहब्बत करना बेहतर समझा और फूल की खेती में जुट गए। धुन के पक्के तुषार ने पुष्प उत्पादन के संबंध में योजनाओं की जानकारी प्राप्त की। इस विषय में विस्तृत जानकारी के लिए उद्यान विभाग के अधिकारियों से भी मिले। इसके बाद उन्होंने फूलों के उत्पादन के लिए पॉली हाउस लगाने का निर्णय लिया। काम शुरू करने के लिए बैंक से 50 लाख रुपये का ऋण लिया और  इस पर भी प्रदेश सरकार से उन्हें 20  लाख रुपये की सब्सिडी मिली। तुषार कहते हैं कि फूलों की खेती तभी सफल हो सकती है, जब सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो।
बहुत कम किसान हैं जो अपनी परंपरागत खेती के साथ किसी तरह का प्रयोग करने का साहस कर पाते हैं और जो करते हैं उनकी जिंदगी गुलाबी हो उठती है.. इस बात के गवाह हैं तुषार चंद्राकर जो आज बेहद खुश हैं। इसका राज उनके फायदेमंद गुलों के राजा गुलाब की खेती में छिपा है। अक्सर यह कहा जाता है कि खेती आजकल लाभ का उपक्रम नहीं है। किन्तु गाँव मोहंदी  के युवक तुषार ने इस धारणा को ध्वस्त कर दिया है..पूरी तरह गलत साबित कर पुरानी धारणा ही बदल दिया है। तुषार चंद्राकर के मिट्टी की मोहब्बत जैसे हर युवा से कुछ यूँ कह रहा हो।
तुम्हें लगता है ये सिर्फ लहलहाते गुलाबों की ताजगी है
ये मेरे लिए मिट्टी के मोहब्बत की मिसाल है, बानगी है