फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार गौठानों से आमदनी, सेवा-सत्कार और खुशियां बांट रही है. शासन की महत्वाकांक्षी गोधन न्याय योजना पशुपालकों की तकदीर लिख रही है. गौठानों से लोगों को वित्तीय मदद के साथ-साथ रोजगार भी मिल रहा है. गोठानों से ग्राम स्वावलंबन का सपना साकार हो रहा है. गौठानों ने गौवंश और गौ पालकों की तकदीर बदलकर रख दी है. गायों को गर्मी से बचाने शेड और फ़ॉगर की सुविधाएं की गई हैं. इसके साथ ही महिला समूह भी खुशहाल हो रहे हैं. आइये जानते हैं बघेल सरकार ने कैसे बदली सीरत और सूरत ?

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गौकाष्ठ और गोबर से 32 तरह के उत्पाद तैयार

दरअसल, छत्तीसगढ़ सरकार की गौठान योजना का क्रियान्वयन करते हुए रायपुर नगर निगम द्वारा फुंडहर, गोकुल नगर, जरवाय के गौठानों में गौवंशीय पशुओं के बेहतर रख-रखाव के साथ ही आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में अभिनव पहल की जा रही हैं. गोकुल नगर गौठान में महिला स्व-सहायता समूह की महिलाएं गौमूत्र का अर्क तैयार करने के साथ ही साथ ब्रम्हास्त्र जैविक कीटनाशक, पौधों के पोषण में उपयोगी जीवा अमृत, गौकाष्ठ और गोबर से 32 तरह के उत्पाद तैयार कर अपने आर्थिक स्तर में बड़ा बदलाव ला रही है.

लावारिस गायों को रखने की सभी व्यवस्थाएं

जरवाय गौठान में दीवारों की पुताई के लिए पेंट तैयार किया जा रहा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर अब नगर निगम सहित शासकीय भवनों को इस पेंट से ही पुताई की जा रही है. फुन्डहर गौठान, जहां परित्यक्त, घायल ,बीमार व सड़कों पर विचरण करते लावारिस गौ वंशियों को रखने की सभी व्यवस्थाएं की गई हैं. इस गौठान में 281 गायें हैं.

गर्मी के मौसम में ठंडक देने फ़ॉगर की व्यवस्था

गर्मी के मौसम में इन्हें ठंडक देने फ़ॉगर की व्यवस्था के साथ ही सब्ज़ी बाज़ार से चारे, तरकारी आदि भी नगर निगम द्वारा ख़रीदकर दिए जा रहे हैं. इस गौठान में 24 घंटे पशु चिकित्सक की सेवा उपलब्ध है. 10 कर्मचारी गौठान में नियमित साफ-सफाई, चारे, पानी हेतु शिफ्ट में काम करते हैं. गायों की संख्या बढ़ने पर इन पशुओं को ग्रामीण गौठानॉ में स्थानांतरित किया जाता है. सड़कों पर लावारिस हालत में यहां लाए गए पशु की पहचान कर पशु मालिक नियत जुर्माना अदा कर वापस भी ले जाते हैं.

स्व-सहायता समूहों का जीवन स्तर भी बदला

रायपुर नगर निगम द्वारा इस समय शहर में तीन गौठानों का संचालन किया जा रहा है. इन गौठानों में परित्यक्त व दुर्घटना में घायल गौधन के देखभाल की व्यवस्था की जाती है. इन गौठानों के बेहतर प्रबंधन से न केवल गौवंशीय पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है, बल्कि गौ सेवा में जुटे स्व-सहायता समूहों का जीवन स्तर भी बदला है. गोकुल नगर में “एक पहल महिला स्व-सहायता समूह“ की महिलाएं अर्क निकालने 4 रूपये लीटर पर गौमूत्र क्रय कर रही हैं.

जैविक कीटनाशक ब्रम्हास्त्र की अत्यधिक मांग

समूह द्वारा उत्पादित जैविक कीटनाशक ब्रम्हास्त्र की भी अत्यधिक मांग है और 50 रूपये लीटर में इस कीटनाशक की बिक्री इस गौठान से की जा रही है. पौधों के लिए उपयोगी जीवा अमृत नामक पोषक भी इस गौठान में उत्पादित हो रहा है. महिलाएं बताती है कि 50 रूपये लीटर बिकने वाले इस जीवा अमृत में पौधों को जीवन प्रदान करने की अद्भुत शक्ति है.

बिलौना घी, पनीर, दूध, दही से गौठान की अपनी अलग पहचान

इन महिलाओं ने बरसों पुराने मोटे ठूंठ को इसी गौठान में ही वृक्ष के रूप में पुनर्जीवित करने का कार्य भी किया है. महिला समूह द्वारा निर्मित गोबर से बने सूटकेश, दीये, मूर्तियां, पूजन सामग्री, सजावटी सामान की मांग भी बहुतायत है. इसके अलावा वैदिक पद्धति से तैयार बिलौना घी, पनीर, दूध, दही से गौठान की अपनी अलग पहचान बनी है.

वंश वृद्धि के लिए गौठान में कृत्रिम गर्भाधान पद्धति

महिला समूह की सचिव श्रीमती नोमिल पाल बताती है कि कई घायल गौवंशीय के स्वास्थ्य में निरंतर सुधार के बाद अब इन पशुओं के लिए गौठान अब स्थायी बसेरा है. घायल अवस्था में दो साल पहले गौठान पहुंचे मुर्रा नस्ल की भैंस अब बच्चे को जन्म देने वाली है. गौवंशीय के वंश वृद्धि के लिए गौठान में कृत्रिम गर्भाधान पद्धति अपनायी जाती थी, किन्तु अब इनके जोड़े भी गौठान में तैयार हो चुके हैं.

छत्तीसगढ़ की कोसली नस्ल के गाय

इस गौठान में छत्तीसगढ़ की कोसली नस्ल के गाय, बछड़ों के अलावा, साहीवाल, थारपार, गिर नस्ल के गौधन भी हैं, जो घायल अवस्था में पशु पालकों द्वारा सड़कों पर छोड़ दिए गए थे, यही गौधन अब स्वस्थ्य होकर दुग्ध व अन्य उत्पादों से महिला समूहों के लिए नये आर्थिक स्त्रोत सृजित करने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं.

दीवारों को रंगने के लिए गोबर से पेंट का उत्पादन

जरवाय के गौठान में दीवारों को रंगने के लिए गोबर से पेंट का उत्पादन किया जा रहा है. इस उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी स्वयं पहल की है. उनके निर्देश पर रायपुर नगर निगम मुख्यालय सहित अन्य भवनों की दीवारों को गोबर से बने पेंट से ही रंगने की शुरूआत की जा चुकी है.

स्व-सहायता समूह के जीवन में भी बड़े बदलाव की आहट

समूह की महिलाएं बताती है कि यह पेंट किसी भी रसायनिक पेंट से ज्यादा उपयोगी है. गोबर पेंट किफायती होने के साथ ही साथ एंटीबैक्टीरियल, एंटी फंगल, नॉन टॉक्सिक और इको फ्रेंडली पेंट के रूप में जाना जाता है, जो कि कैमिकल पेंट की तुलना में अधिक आकर्षक और प्रभावशाली है. समूह की महिलाएं इसे गौठान योजना का बेहतर उत्पाद मानते हुए इसे कृषि आधारित उद्योगों में एक क्रांतिकारी बदलाव के रूप में देखती है. इन सब प्रयासों से गौठानों की आत्म निर्भरता बढ़ रही है और इससे जुड़े स्व-सहायता समूह के जीवन में भी बड़े बदलाव की आहट है.

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