फीचर स्टोरी. छत्तीसगढ़ को जैविक राज्य बनाने की दिशा में सरकार लगातार काम कर रही है. सरकार का पूरा फोकस छत्तीसगढ़ को जैविक राज्य बनाना है. लिहाजा सरकार ने इस दिशा में कई कारगर कदम उठाए हैं. सरकार ने गोबर खरीदी के बाद गोमूत्र खरीदी की शुरुआत की. गोमूत्र जैविक खेती के लिए जीवामृत का काम कर रहा है.

जैविक खेती की इस कोशिश में महिला समूहों की भागीदारी भी पूरी है. महिलाओं को इससे रोजगार भी मिल रहा है. किसानों और खेतों को इससे लाभ भी हो रहा है. हालांकि अभी यह बहुत ही प्रारंभिक चरण में है, लेकिन इसका व्यापक असर प्रदेश में आने वाले कुछ वर्षों में दिखने लगेगा, क्योंकि सरकार तमाम चुनौतियों के बीच इस पर प्राथमिकता से काम कर रही है. गोधन न्याय योजना की शुरुआत के साथ ही सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि राज्य में गोबर को न सिर्फ उपयोगी और मूल्यवान बनाना है, बल्कि गाय से प्राप्त गोबर और गो-मूत्र को खेती में भी प्राथमिकता से लाना है.

आँकड़े सरकार की नीति-रीति और प्राथमिकता को सिद्ध भी करते हैं. राज्य सरकार की ओर से जारी किए गए आँकड़े बताते हैं कि गोधन न्याय योजना के तहत अब तक प्रदेश में हितग्राहियों को 342.40 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है. इसमें गोबर से वर्मी कम्पोस्ट और गौमूत्र से ब्रम्हास्त्र और जीवामृत बना रहे महिला समूह शामिल है. महिला समूहों को अब तक 81.84 करोड़ रूपए की आय प्राप्त हो चुकी है. राज्य के 81 गौठानों में गौमूत्र की खरीदी की जा रही है. अब तक गौठानों में 35 हजार 346 लीटर क्रय किए गए गौमूत्र से 16,500 लीटर कीट नियंत्रक ब्रम्हास्त्र और वृद्धिवर्धक जीवामृत तैयार किया गया है, जिसमें से 8400 लीटर ब्रम्हास्त्र और जीवमृत की बिक्री से 3.85 लाख रूपए की आय हुई है.

जैविक खेती की ओर बढ़ते कदम को सरकार की ओर जारी किए गए इन आँकड़ों से भी समझिए. राज्य में अब तक 10,624 गांवों में गौठानों के निर्माण की स्वीकृति दी गई है, जिसमें से 8408 गौठान निर्मित एवं 1758 गौठान निर्माणाधीन है. गोधन न्याय योजना से 2 लाख 78 हजार से अधिक ग्रामीण, पशुपालक किसान लाभान्वित हो रहे हैं. गोबर बेचकर अतिरिक्त आय अर्जित करने वालों में 46 प्रतिशत महिलाएं है. गौठानों में महिला समूहों द्वारा 17.80 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट तथा 5.30 लाख क्विंटल से अधिक सुपर कम्पोस्ट एवं 18,924 क्विंटल सुपर कम्पोस्ट प्लस खाद का निर्माण किया जा चुका है, जिसे सोसायटियों के माध्यम से क्रमशः 10 रूपए, 6 रूपए तथा 6.50 रूपए प्रतिकिलो की दर पर विक्रय किया जा रहा है.

बता दें कि राज्य में जिस तरह से 20 जुलाई 2020 को गोधन न्याय योजना की शुरुआत हुई थी. इस योजना के तहत 2 रुपये प्रतिकिलो गोबर खरीदी सरकार ने प्रारंभ की थी, ठीक इसी तरह 28 जुलाई 2022 हरेली तिहार के मौके पर सरकार ने गो-मुत्र खरीदी की शुरुआत की. सरकार राज्य में 4 रुपये लीटर की दर से गो-मुत्र की खरीदी की कर रही है. इसके पीछे उद्देश्य रासायनिक कीटनाशकों का खेती में कम उपयोग करना है. इस योजना से लोगों को आजीविका का जरिया मिल गया है. जिले के दो गोठानों शिवतराई एवं पौंसरी में भी चार रूपये प्रति लीटर की दर से अब तक 1627 लीटर गोमूत्र खरीदी की जा चुकी है. दवा-खाद के जानकारों की माने तो गोमूत्र कीटनाशक बाजार में मिलने वाले पेस्टीसाइड का बेहतर और सस्ता विकल्प है. इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता रासायनिक कीटनाशक से कई गुना अधिक है.

ये तस्वीर बिलासपुर जिले के कोटा विकासखंड के शिवतराई गांव की है. गांव में कार्यरत् माँ महामाया समूह की महिलाएं गो-मूत्र से ब्रम्हास्त्र और जीवामृत बनाते नजर आ रही हैं. समूह में 16 महिलाएं काम करती है. महिलाओं के पास गो मूत्र निर्माण का काम है. महिलाएं गोमूत्र से जीवामृत वृद्धिवर्द्धक और ब्रम्हास्त्र कीटनाशक बना रही हैं.महिलाओं ने यहां जीवामृत 700 लीटर एवं ब्रम्हास्त्र 100 लीटर बना लिया है.

इसी तरह विकासखण्ड बिल्हा के पौंसरी गोठान में श्रद्धा स्व सहायता समूह की 10 महिलाएं गोमूत्र से कीटनाशक बनाने में जुटी हुई हैं. उन्होंने अब तक 30 लीटर ब्रम्हास्त्र कीट नियंत्रक बना लिया है. जीवामृत 30 रुपए लीटर की दर से और ब्रम्हास्त्र 40 रुपए लीटर की दर से विक्रय की जा रही है.

गोमूत्र से कीटनाशक दवा बनाने में जुटी महिलाएं कहती है कि अभी तक हम केवल गोबर और उससे बने उत्पाद की बिक्री कर रहे थे, लेकिन अब गोमूत्र का उपयोग कर आय के नये स्त्रोत का सृजन हुआ है. जीवामृत के छिड़काव से पौधे में वृद्धि होगा. इसी प्रकार नीम, धतूरा, बेसरम, ऑक, तथा सीताफल और गोमूत्र के मिश्रण से ब्रम्हास्त्र बनाया जा रहा है। इसका प्रयोग खेतों में कीटनाशक के रूप में किया जा रहा है.

ये दूसरी तस्वीर जशपुर जिले की है. जशपुर जिले में विकासखंड कांसाबेल के बगिया गौठान की. यहाँ रानी स्व-सहायता समूह की महिलाएं गोमूत्र से कीटनाशक दवा निर्माण का काम कर रही हैं. इसके साथ ही वें विभिन्न रोजमूलक गतिविधियों से भी जुड़ी हुई हैं. बगिया गौठान में केंचुआ खाद का निर्माण भी किया जा रहा है. इसके साथ मुर्गी पालन, बकरी पालन, सब्जी की खेती भी महिलाएं कर रही हैं. महिला समूहों को लाखों रुपये की आय आज गौठान में संचालित रोजगारमूलक गतिविधियों हो रही है.

समूह की महिलाओं के मुताबिक अच्छी गुणवत्ता युक्त खाद बनाने के लिए केंचुआ तैयार किया जा रहा है और खाद बनाने के लिए भी केंचुआ का उपयोग किया जा रहा है. खेतों उर्वरता शक्ति को बढ़ाने के लिए और फसलों का उत्पादन बेहतर तरीके से हो इसके लिए जीवामृत दवाइयाँ भी बनाई जा रही है. इसका उपयोग खेतों में किया जाता है जिससे किसानों को खाद और कीटनाश दवा का छिड़काव करने की जरूरत नहीं पड़ती है. जीवा अमृत सभी प्रकार की फसलों, सब्जियों व फलों की खेती में उपयोग किया जाता है.

कृषि विज्ञानिकों की माने तो गोमूत्र से तैयार ब्रम्हास्त्र और जीवामृत खेतों के लिए बहुत ही उपयुक्त होता है. इसका उपयोग खेतों में करने से निषक्रीय जीवाणु सक्रिय हो जाते हैं और जमीन की उपजाऊ क्षमता बढ़ जाती है. रानी स्व सहायाता समूह की महिलाएं कहती हैं कि रोजगार से आर्थिक मजबूती आई है. चुनौतियाँ कम हुई है. संघर्ष के आगे जीत मिल रही है. आत्मविश्वास बढ़ रहा है. परिवार की जरुरते पूरी हो रही है. आत्मनिर्भर महिलाएं विकास में भागीदार बन रही है. खेतों और किसानों के साथ-साथ महिलाओं की सेहत भी सुधर रही है. क्योंकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गोधन न्याय योजना से मजबूती ही मिली है.