जब सुखदेव के ताने का भगत सिंह ने दिया जवाब

शहीद भगत सिंह
भगत सिंह लाहौर के नेशनल कॉलेज के छात्र थे. एक सुंदर-सी लड़की आते-जाते उन्हें देखकर मुस्कुरा देती थी और सिर्फ भगत सिंह की वजह से वह भी क्रांतिकारी दल के करीब आ गई. जब असेंबली में बम फेंकने की योजना बन रही थी तो भगत सिंह को दल की जरूरत बताकर साथियों ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौपने से इंकार कर दिया. भगत सिंह के करीबी मित्र सुखदेव ने उन्हें ताना मारा कि तुम मरने से डरते हो और ऐसा उस लड़की की वजह से है. इसे सुन भगत सिंह ने दोबारा दल की मीटिंग बुलाई और असेंबली में बम फेंकने का जिम्मा जोर देकर अपने नाम करवाया.

आठ अप्रैल, 1929 को असेंबली में बम फेंकने से पहले सम्भवतः 5 अप्रैल को दिल्ली के सीताराम बाजार के घर में उन्होंने सुखदेव को यह पत्र लिखा था, जिसे शिव वर्मा ने उन तक पहुंचाया. यह 13 अप्रैल को सुखदेव की गिरफ़्तारी के वक्त उनके पास से बरामद किया गया और लाहौर षड्यंत्र केस में सबूत के तौर पर पेश किया गया.

प्रिय भाई,

जैसे ही यह पत्र तुम्हे मिलेगा, मैं जा चुका हूंगा. दूर एक मंजिल की तरफ. मैं तुम्हें विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आज बहुत खुश हूं. हमेशा से ज्यादा. मैं यात्रा के लिए तैयार हूं. अनेक-अनेक मधुर स्मृतियों और अपने जीवन की सब खुशियों के होते भी, एक बात जो मेरे मन में चुभ रही थी कि मेरे भाई, मेरे अपने भाई ने मुझे गलत समझा. मुझ पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाए- कमजोरी का. आज मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं. पहले से कहीं अधिक. आज मैं महसूस करता हूं कि वह बात कुछ भी नहीं थी, एक गलतफहमी थी. मेरे खुले व्यवहार को मेरा बातूनीपन समझा गया और मेरी आत्मस्वीकृति को मेरी कमजोरी. मैं कमजोर नहीं हूं. अपनों में से किसी से भी कमजोर नहीं.


भाई! मैं साफ दिल से विदा होऊंगा। क्या तुम भी साफ होगे? यह तुम्हारी बड़ी दयालुता होगी. लेकिन ख्याल रखना कि तुम्हें जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए. गंभीरता और शांति से तुम्हें काम को आगे बढ़ाना है, जल्दबाजी में मौका पा लेने का प्रयत्न न करना. जनता के प्रति तुम्हारा कुछ कर्तव्य है. उसे निभाते हुए काम को निरंतर सावधानी से करते रहना.

सलाह के तौर पर मैं कहना चाहूंगा कि शास्त्री मुझे पहले से ज्यादा अच्छे लग रहे हैं. मैं उन्हें मैदान में लाने की कोशिश करूंगा, बशर्ते की वे स्वेच्छा से और साफ़-साफ़ बात यह है की निश्चित रूप से, एक अंधेरे भविष्य के प्रति समर्पित होने को तैयार हों. उन्हें दूसरे लोगों के साथ मिलने दो और उनके हाव-भाव का अध्यन्न होने दो. यदि वे ठीक भावना से अपना काम करेंगे तो उपयोगी और बहुत मूल्यवान सिद्ध होंगे. लेकिन जल्दी न करना. तुम स्वयं अच्छे निर्णायक होगे. जैसी सुविधा हो, वैसी व्यवस्था करना. आओ भाई, अब हम बहुत खुश हो लें.

खुशी के वातावरण में मैं कह सकता हूं कि जिस प्रश्न पर हमारी बहस है, उसमें अपना पक्ष लिए बिना नहीं रह सकता. मैं पूरे जोर से कहता हूं कि मैं आशाओं और आकांक्षाओं से भरपूर हूं और जीवन की आनंदमयी रंगीनियों ओत-प्रोत हूं, पर आवश्यकता के वक्त सब कुछ कुर्बान कर सकता हूं और यही वास्तविक बलिदान है. ये चीजें कभी मनुष्य के रास्ते में रुकावट नहीं बन सकतीं, बशर्ते कि वह मनुष्य हो. निकट भविष्य में ही तुम्हें प्रत्यक्ष प्रमाण मिल जाएगा.

किसी व्यक्ति के चरित्र के बारे में बातचीत करते हुए एक बात सोचनी चाहिए कि क्या प्यार कभी किसी मनुष्य के लिए सहायक सिद्ध हुआ है? मैं आज इस प्रश्न का उत्तर देता हूं – हां, यह मेजिनी था. तुमने अवश्य ही पढ़ा होगा की अपनी पहली विद्रोही असफलता, मन को कुचल डालने वाली हार, मरे हुए साथियों की याद वह बर्दाश्त नहीं कर सकता था. वह पागल हो जाता या आत्महत्या कर लेता, लेकिन अपनी प्रेमिका के एक ही पत्र से वह, यही नहीं कि किसी एक से मजबूत हो गया, बल्कि सबसे अधिक मजबूत हो गया.

जहां तक प्यार के नैतिक स्तर का संबंध है, मैं यह कह सकता हूं कि यह अपने में कुछ नहीं है, सिवाए एक आवेग के, लेकिन यह पाशविक वृत्ति नहीं, एक मानवीय अत्यंत मधुर भावना है. प्यार अपने आप में कभी भी पाशविक वृत्ति नहीं है. प्यार तो हमेशा मनुष्य के चरित्र को ऊपर उठाता है. सच्चा प्यार कभी भी गढ़ा नहीं जा सकता. वह अपने ही मार्ग से आता है, लेकिन कोई नहीं कह सकता कि कब?

हाँ, मैं यह कह सकता हूँ कि एक युवक और एक युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं, अपनी पवित्रता बनाये रख सकते हैं. मैं यहाँ एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि जब मैंने कहा था की प्यार इंसानी कमजोरी है, तो यह एक साधारण आदमी के लिए नहीं कहा था, जिस स्तर पर कि आम आदमी होते हैं. वह एक अत्यंत आदर्श स्थिति है, जहाँ मनुष्य प्यार-घृणा आदि के आवेगों पर काबू पा लेगा, जब मनुष्य अपने कार्यों का आधार आत्मा के निर्देश को बना लेगा, लेकिन आधुनिक समय में यह कोई बुराई नहीं है, बल्कि मनुष्य के लिए अच्छा और लाभदायक है. मैंने एक आदमी के एक आदमी से प्यार की निंदा की है, पर वह भी एक आदर्श स्तर पर. इसके होते हुए भी मनुष्य में प्यार की गहरी भावना होनी चाहिए, जिसे की वह एक ही आदमी में सिमित न कर दे बल्कि विश्वमय रखे.

मैं सोचता हूँ,मैंने अपनी स्थिति अब स्पष्ट कर दी है.एक बात मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ की क्रांतिकारी विचारों के होते हुए हम नैतिकता के सम्बन्ध में आर्यसमाजी ढंग की कट्टर धारणा नहीं अपना सकते. हम बढ़-चढ़ कर बात कर सकते हैं और इसे आसानी से छिपा सकते हैं, पर असल जिंदगी में हम झट थर-थर कांपना शुरू कर देते हैं.

मैं तुम्हे कहूँगा की यह छोड़ दो. क्या मैं अपने मन में बिना किसी गलत अंदाज के गहरी नम्रता के साथ निवेदन कर सकता हूँ की तुममे जो अति आदर्शवाद है, उसे जरा कम कर दो. और उनकी तरह से तीखे न रहो, जो पीछे रहेंगे और मेरे जैसी बिमारी का शिकार होंगे. उनकी भर्त्सना कर उनके दुखों-तकलीफों को न बढ़ाना. उन्हें तुम्हारी सहानभूति की आवशयकता है.

क्या मैं यह आशा कर सकता हूं कि किसी खास व्यक्ति से द्वेष रखे बिना तुम उनके साथ हमदर्दी करोगे, जिन्हें इसकी सबसे अधिक जरूरत है? लेकिन तुम तब तक इन बातों को नहीं समझ सकते जब तक तुम स्वयं उस चीज का शिकार न बनो. मैं यह सब क्यों लिख रहा हूं? मैं बिल्कुल स्पष्ट होना चाहता था. मैंने अपना दिल साफ कर दिया है.

तुम्हारी हर सफलता और प्रसन्न जीवन की कामना सहित,

तुम्हारा भाई
भगत सिंह

(1929)

भगत सिंह अगर हिन्दुस्तान हीरो है तो पाकिस्तान का बेटा है

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक भगत सिंह को ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स की हत्या के मामले 23  मार्च 1931 को फांसी दी गई थी. उनका जन्म 28 सितंबर 1907 में पाकिस्तान में हुआ था. उनकी फांसी के करीब 83 साल बाद पाकिस्तान की लाहौर कोर्ट में भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने कोर्ट में याचिका दायर की. इम्तियाज राशिद की याचिका पर दोबारा सुनवाई शुरू की गई. 24 मई 2013 को इस मुकदमे में पहली सुनवाई हुई.
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इम्तियाज कुरैशी का कहना है कि भगत सिंह की न्यायिक हत्या की गई थी वो बेगुनाह थे। इम्तियाज के मुताबिक जिस केस में भगत सिंह को फांसी दी गई उस एफआईआर में उनका नाम तक नहीं था ना ही इस केस में किसी की गवाही ली गई. उन्होंने कोर्ट से कहा कि भगत सिंह को खुद पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने भी श्रद्धांजलि दी थी. इम्तियाज़ ने कहा कि भगत सिंह हमारे लिए भी हीरो हैं.

सावल: आपके लिए भगत सिंह क्या हैं?
जवाब:  भगत सिंह पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया के लिए हीरो हैं। वो मज़लूम (जिसपर ज़ुल्म किया गया हो) और पिसे हुए लोगों की आवाज थे। मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि भगत सिंह जैसा बहादुर शख्स आज तक पाकिस्तान में पैदा नहीं हुआ।

सवाल : आपको ये ख़्याल कब आया कि भगत सिंह को इंसाफ मिलना चाहिए?
जवाब: मेरे बड़ों ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था और उन्हीं इनकलाबी लोगों का खून मेरे रगों में शामिल है। उन्होंने ही मुझे भगत सिंह को पढ़ने पर मजबूर किया। जब मैंने भगत सिंह को पढ़ा तो मुझे वो निर्दोष लगे। जब मैंने उनका पूरा केस पढ़ा तो मुझे पता चला कि उस वक्त 450 लोगों को सफाई का मौका ही नहीं दिया गया था। फिर 83 साल बाद कोर्ट से ऑर्डर लेकर मैंने वो एफआईआर निकलवाई। एफआईआर में मैंने देखा कि इसमें ना भगत सिंह का नाम था ना सुखदेव का नाम। बस एक शख्स का हुलिया उसमें दिया हुआ था जिससे बस इतना जाहिर हो रहा था कि वो शख्स हिंदू है। एफआईआर में लंबाई करीब 5 फुट लिखी हुई है। जब मैंने पूरा केस पढ़ा तो मुझे पता चला ये पूरा ट्रायल फेक था।

सवाल : हिन्दुस्तान में भगत सिंह हीरो हैं, क्या पाकिस्तान में भी भगत सिंह को हीरो के तौर पर देखा जाता है?
जवाब:  भगत सिंह दोनों ही मुल्कों के हीरो थे वो हमारी आज़ादी के हीरो थे। पाकिस्तान में हर साल हैंगिंग डे मनाया जाता है। भगत सिंह केस को दोबारा खोलने का मेरा एक और भी मकसद है। हम दुनिया को एक मैसेज देना चाहते हैं कि मुसलमान, अपने हीरो का एहतराम (इज्जत) करते हैं फिर चाहें वो किसी भी मुल्क का हो। अब जब इस केस का दोबारा ट्रायल शुरू होगा तो भगत सिंह और सुखदेव दोनों के परिवार हमारे साथ खड़े होंगे। सलमान खुर्शीद समेत कई बड़े वकील इस केस में हमारे साथ होंगे।