पंजाब का ये प्रमुख त्यौहार आज पूरे भारत और विदेशों मेें भी धूमधाम से मनाया जाता है. रीति-रिवाज लोगों को करीब लाकर एकसूत्र में बांधती हैं. इसी में से एक पर्व है लोहड़ी. इसका संबंध मौसम के साथ गहरा जुड़ा है. पौष माह की कड़ाके की सर्दी से बचने के लिए भाईचारक सांझ और अग्नि की तपिश का सुकून लेने के लिए लोहड़ी मनाई जाती है.

राजधानी में होता खास आयोजन

रायपुर के सिख समुदाय में इसका अलग ही अंदाज देखने को मिलता है. लोहड़ी की शाम को बीच में आग जलाकर सभी आग के फेरे लेते हैं. आग में तिल, गुड डाला जाता है और यह प्रार्थना की जाती है कि जलती आग में उनके दु:ख नष्ट हो जाएं. क्या आप जानते है कि लोहड़ी क्यों मनाई जाती है? इन तीन शब्दों का अर्थ क्या होता है? Read More – Body को गर्म रखने के लिए पिएं ये Drinks, तेज ठंड में मिलेगी राहत …

इस गीत के बिना अधूरा है ये पर्व

सुंदर मुंदरिए होए, तेरा कौन विचारा, होए।
दुल्ला भट्टीवाला, होए, दुल्ले दी धी व्याही, होए।।

लोहड़ी का त्योहार सर्दियों की फसलों के पकने के और एक नई फसल के मौसम की शुरुआत का जश्न होता है.

लोहड़ी का आधुनिकीकरण हो गया

लोहड़ी हर्ष और उल्लास का पर्व है. लोहड़ी मुख्यत: तीन शब्दों को जोड़ कर बना है. ल (लकड़ी) ओह (सूखे उपले) और ड़ी (रेवड़ी). लोहड़ी के पर्व की दस्तक के साथ ही पहले ‘सुंदर-मुंदरिए’, ‘दे माई लोहड़ी जीवे तेरी जोड़ी’ आदि लोक गीत गाकर लोहड़ी मांगने का रिवाज था. समय बदलने के साथ कई पुरानी रस्मों का आधुनिकीकरण हो गया है. अब लोहड़ी का आधुनिकीकरण हो गया. अब गांव में लड़के-लड़कियां लोहड़ी मांगते हुए ‘परम्परागत गीत’ गाते दिखलाई नहीं देते. गीतों का स्थान ‘डीजे’ ने ले लिया. Read More – Today’s Recipe : अब कढ़ाई पर आसानी से बनाएं Garlic Bread, ओवन की नहीं पड़ेगी जरूरत …

क्या गीत के पीछे की कथा

मान्यता के अनुसार पंजाब में दुल्ला भट्टी नाम के एक व्यक्ति रहते थे. दुल्ला भट्टी उस काल में पंजाब की लड़कियों के रक्षक के रूप में उभरे थे. नायक की उपाधि से सम्मानित इस मसीहा ने लड़कियों का विवाह भी करवाया था. उन्हीं का स्मरण करते हुए लोहड़ी पर यह गीत गाया जाता है. पंजाब के हर युवक को दुल्ला भट्टी की तरह ही नारी जाति के सम्मान के लिए प्रेरित किया जाता है.

साथ ही लड़कियां भी कामना करती हैं कि हर परिस्थिति में दुल्ला भट्टी जैसा शख्स उनकी रक्षा करने जरूर आएगा. मुसीबत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने ब्राह्मण की मदद की और लड़के वालों को मनाकर एक जंगल में आग जलाकर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवा कर स्वयं उनका कन्यादान किया. कहावत है कि दुल्ले ने शगुन के रूप में उन दोनों को शक्कर दी.